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मेट्रो रेल : प्राचीन शहर में नहीं होगी भूमिगत लाइन, यहां दफन है सदियों की दास्तां

पटना को यातायात की सुविधा दिलाने के लिए मेट्रो रेल का सपना देखा गया। इसकी योजना बनी। मेट्रो रास्ता के रूप में दिखा, मगर नीतीश कुमार ने योजना के प्रारंभिक दौर में ही स्पष्ट कर दिया कि प्राचीन शहर के इलाके में भूमिगत लाइन नहीं होगी।

By Kajal KumariEdited By: Published: Thu, 04 Feb 2016 07:59 AM (IST)Updated: Thu, 04 Feb 2016 04:54 PM (IST)
मेट्रो रेल : प्राचीन शहर में नहीं होगी भूमिगत लाइन, यहां दफन है सदियों की दास्तां

पटना। नई तकनीक अक्सर पुरानी को पीछे छोड़ती और अपने लिए रास्ता बनाती हुई चलती है। यह बात शहरी सुविधाओं के विकास के मामले में भी पूरी तरह सच है। लेकिन, इस रास्ते में कई बार एतिहासिक धरोहर के अस्तित्व पर खतरा खड़ा हो जाता है।

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पटना के मामले में यह बात और शिद्दत से महसूस की जा सकती है। वर्तमान शहर के नीचे शहरी सभ्यता के कई स्तर दबे पड़े हैं।

आधुनिक यातायात सुविधा के लिए देखा सपना

दरअसल राजधानी पटना को यातायात की आधुनिक सुविधा दिलाने के लिए मेट्रो रेल का सपना देखा गया। इसकी योजना बनी। पुराना शहर पटना सिटी की सड़के सदियों पुरानी और संकीर्ण हैं। मेट्रो रास्ता के रूप में दिखा, मगर नीतीश कुमार ने योजना के प्रारंभिक दौर में ही स्पष्ट कर दिया कि प्राचीन शहर के इलाके में भूमिगत लाइन नहीं होगी।

धरोहर, इतिहास को लेकर चिंता

दरअसल, उनकी चिंता धरोहर, इतिहास को लेकर थी। कहीं मेट्रो के लिए भूमिगत रास्ता बनाने में अमूल्य थाती बर्बाद न हो जाए। नीतीश कुमार ने पहले ही कहा था, संभव है आने वाले दिनों में तकनीक शायद इतनी विकसित हो जाए कि हम यंत्रों के सहारे जमीन के भीतर छुपी अपनी थाती को झांक कर देख सकें। तब कोई विकल्प निकले।

मुख्यमंत्री की चिंता पूरी तरह सच है। पाटलिपुत्र की धरती हजारों साल का इतिहास छुपाए बैठी है। शायद कोई तकनीक भविष्य में चौंकाने वाले तथ्य पेश कर दे।

छठी शताब्दी ईसापूर्व से सभ्यता के प्रमाण

पुरातत्वविदों के अनुसार गंगा का बेहद उर्वर इलाका होने की वजह से यह पूरा क्षेत्र मानव रिहायश के लिए बेहद उपयुक्त था। मानव सभ्यता के प्रमाण यहां छठी शताब्दी ईसापूर्व से ही मिलने शुरू हो जाते हैं। सबसे रोचक बात यह है कि मानव सभ्यता का यह तारतम्य कहीं टूटता नहीं।

प्रमाणों का सिलसिला लगातार जारी रहता है। सामने आए पुरातात्विक अवशेषों से यह बात साफ हो चुकी है कि सम्राट अशोक के समय यह एक विशाल राज्य की राजधानी थी जिसकी सीमा अफगानिस्तान से लेकर बंगाल की खाड़ी तक फैली हुई थी।

प्राचीन पाटलीपुत्र शहर के अवशेष

पटना में प्राचीन पाटलीपुत्र शहर के अवशेष बहुतायत में मिले हैं। कुम्हरार स्थित अशोक के समय का अस्सी खंभों वाला हाल इसका बड़ा उदाहरण है। हालांकि, बाद में कुछ कारणों से यहां उत्खनन का काम रोक दिया गया। प्राप्त अवशेषों को परिसर में ही संभाल कर रख दिया गया है। ऐसे में आगे चल कर होने वाले उत्खनन से बहुत उम्मीदें हैं।

अनवरत रहा सभ्यताओं का सिलसिला

प्राचीन पाटलीपुत्र शहर के अवशेष के अलावा शुंगकालीन, कुषाणकालीन, गुप्तकालीन, पालकालीन अवशेषों से यह बात साबित हो चुकी है कि यहां मौजूद सभ्यताओं का सिलसिला अनवरत रहा। मुगलकाल के दौरान पटना सिटी ही मुगल साम्राज्य की कई बरसों तक राजधानी रही। उस समय इसे अजीमाबाद नाम से जाना जाता रहा। 15वीं शताब्दी में शेर शाह सूरी द्वारा गंगा के किनारे बनवाए गए किले से इसका महत्व आंका जा सकता है।

कला के शानदार नमूने

इसके अलावा पटना सिटी के ही बुलंदीबाग, पश्चिम दरवाजा, पूरब दरवाजा आदि इलाके के महत्व को साबित करने के लिए काफी हैं। इस सिलसिले में संदलपुर में मिले लकड़ी के खंभे, लोहानीपुर में मिली शुंगकालीन यानी दूसरी शताब्दी ईसापूर्व से प्रथम ईसवी तक, मूर्तियों का भी जिक्र किया जा सकता है। ये अपने समय की कला का शानदार नमूना हैं।

पटना सिटी इलाके से मिले अधिकांश पुरावशेष

पटना सिटी इलाके से मिले अधिकांश पुरावशेष का सामने आना संयोग कहा जा सकता है। पटना सिटी के मंगलतालाब की उड़ाही के दौरान प्राचीन मूर्तियां सामने आई थीं। इसी सिलसिले में विश्वप्रसिद्ध यक्षिणी प्रतिमा का जिक्र भी किया जा सकता है। बताया जाता है कि गंगा घाट पर लंबे समय तक पड़ी रही इस मूर्ति की पीठ पर धोबी कपड़े धुला करते थे।

लगभग पांच साल पूर्व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के दल ने महेंद्रू घाट से शेर की दो मूर्तियां बरामद की थी। अनुमान लगाया गया कि कभी यह मूर्ति गंगा घाट पर मौजूद शानदार दरवाजे का हिस्सा रही होगी। एक अन्य मूर्ति की खोज की गई लेकिन अभी तक यह खोज किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकी है। कहा जाता है कि यह वही स्थान था जहां से सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपनी यात्रा शुरू की थी।

क्या है जालान हाउस के सुरंग का सच?

वर्तमान जालान किला हाउस भी अपने आप में तमाम जानकारियां समेटे हुए है। इस किले का निर्माण पंद्रहवीं सदी के अंत में शेरशाह सूरी ने कराया था। कहते हैं कि इस किले में सुरंग है जो गंगा के पार तक जाती है। इसका निर्माण दुश्मनों से बच निकलने के लिए किया गया था। हालांकि, अभी तक इस सुरंग का सच सामने आना बाकी है।

विधिवत उत्खनन से उजागर होंगे अनेक रहस्य

जानकारों की मानें तो विधिवत उत्खनन कराने से पूरे सिटी क्षेत्र में बेहद महत्वपूर्ण अवशेषों के सामने आने की उम्मीद है। तमाम ढीह, टीले और संरचनाएं ऐसी हैं जिनका पुरातात्विक अन्वेषण अभी बाकी है। तमाम स्थान अभी तक पुरातात्विक खोज के दायरे से बाहर रहे हैं।

इसमें गंगा किनारे मौजूद ऊंचे ऊंचे टीलों का उदाहरण दिया जा सकता है। माना जाता है कि यहां प्राचीन सभ्यता के तमाम अवशेष दफन है। ऐसे में मेट्रो प्रोजेक्ट का सिटी इलाके तक विस्तार न किया जाना पाटलीपुत्र की शानदार विरासत के हित में उठाया गया कदम है।


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