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    रामनाथ कोविंद और नीतीश का फैसला, लालू से बढ़ेंगी दूरियां!

    By Kajal KumariEdited By:
    Updated: Thu, 22 Jun 2017 10:15 PM (IST)

    एनडीए ने रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया है, जिसकी नीतीश ने तारीफ की है तो वहीं लालू ने इसपर अपनी असहमति जताई है।

    रामनाथ कोविंद और नीतीश का फैसला, लालू से बढ़ेंगी दूरियां!

    पटना [काजल]। नीतीश कुमार अपने फैसले लेने के लिए और उसपर अडिग रहने वाले नेता हैं और विभिन्न मुद्दों पर उन्होंने गठबंधन के बार्डर लाइन को पार एनडीए को अपना समर्थन दिया है। वक्त बेवक्त एेसे तमाम मुद्दे देखे गए हैं जहां नीतीश ने अपना स्वतंत्र फैसला लिया है। 

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    अब अभी ताजा मामला एनडीए के पद के प्रत्याशी रामनाथ कोविंद को समर्थन देने का है, जिसके लिए उन्होंने संकेत दे दिए हैं कि वो इस मामले में भी एनडीए के साथ हैं। उनके इस फैसले के बाद बिहार के महागठबंधन में खटास पड़ने की संभावना देखी जा रही है।

    एक ओर जहां जदयू रामनाथ कोविंद के पक्ष में दिख रहा है, वहीं राजद और कांग्रेस बीजेपी के उम्मीदवार को समर्थन देने को बिल्कुल तैयार नहीं है। 

    लालू और नीतीश का इस मुद्दे को लेकर मतभेद भी सामने आ गए हैं। नीतीश जिस तरह खुशी जाहिर करते हुए रामनाथ कोविंद को बधाई देने पहुंचे, उससे तो यही साबित होता है कि ये उनका अपना फैसला है। वैसे नीतीश कुमार अपने फैसले खुद लेते हैं और किसी का दबाव बर्दाश्त नहीं करते। लेकिन लालू यादव और कांग्रेस इसपर सहमत नहीं हैं।

    वैसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बीच अलग-अलग मुद्दों पर असहमति होना कतई आश्चर्यजनक नहीं है। इससे पहले भी नोटबंदी और बेनामी संपत्ति पर लगाम लगाने के केंद्र सरकार के फैसले को नीतीश ने उचित ठहराया था तो वहीं लालू ने इसका जमकर विरोध किया था।  

    सोमवार को बीजेपी ने रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी चुनकर विपक्ष को असमंजस में डाल दिया है तो वहीं लालू-नीतीश के रिश्ते में भी इसे लेकर खलल पड़ सकती है। कोविंद दलित समाज से ताल्लुक रखते हैं, और एनडीए की इस पसंद से असहमति जताना लालू सहित विपक्षी पार्टियों के लिए काफी दुरूह कार्य साबित होगा।  

    जहां एक ओर नीतीश और जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने कोविंद के नाम की घोषणा के बाद उनकी जमकर तारीफ की थी और लालू ने विपक्ष से उम्मीदवार खड़ा करने को अब जरूरी बताया है। वैसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्ष के इस संयुक्त मोर्चे का काफी अहम हिस्सा हैं, लेकिन वो अपने फैसले पर अटल रहने वाले नेता हैं।

    जहां नीतीश ने कोविंद की बीजेपी से जुड़ी जड़ों के बावजूद उनके द्वारा बिहार सरकार के साथ 'आदर्श संबंध' बनाए रखने और किसी भी तरह का पक्षपात नहीं करने के लिए  नीतीश ने राज्यपाल की काफी तारीफ की और कहा कि उनकी पार्टी गुरुवार की बैठक में अपना रुख साफ करेगी।

    हालांकि नीतीश के करीबी सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री मानते हैं कि दलितों के कल्याण के लिए काम करने वाली बीजेपी की इकाई के साथ जुड़े रह चुके रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी का विरोध करने का कोई आधार नहीं है।

    वर्ष 2012 में नीतीश कुमार ने तत्कालीन केंद्र सरकार की पसंद डॉ प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद के लिए वोट देने की खातिर विपक्षी पार्टियों के उस गठबंधन से अलग रास्ता अपनाया था, जिसका वह स्वयं भी हिस्सा थे।

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    कहा जाता है कि नीतीश कुमार अब भी विपक्ष द्वारा किसी प्रत्याशी को खड़ा करने के खिलाफ हैं, जबकि राज्य सरकार में उनके प्रमुख सहयोगी लालू प्रसाद यादव तथा कांग्रेस का मानना है कि चुनाव करवाना बेहद ज़रूरी हो गया है, क्योंकि यह संदेश साफ-साफ दिया जाना आवश्यक है कि वे राष्ट्रपति बनने जा रहे किसी बीजेपी नेता के पीछे खड़े नहीं हो सकते।

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