बिहार में NDA की एकजुटता पर उठने लगे सवाल, घटक दलों में तालमेल का अभाव
बिहार में एनडीए के घटक दलों ने प्रदेश के महागठबंधन सरकार के खिलाफ कोई ठोस चुनौती खड़ा नहीं कर सका है। इसके घटक दलों में आपसी तालमेल और सामंजस्य की कमी साफ दिख रही है।
पटना [सुभाष पांडेय]। बिहार में एनडीए के घटक दलों में तालमेल व समन्वय की कमी से अब इसकी एकजुटता पर ही सवाल उठने लगे हैं। नीतीश कुमार को तीसरी बार सत्ता में आए आठ महीने होने जा रहे हैं, लेकिन एनडीए जनता से जुड़े सवालों पर सरकार के खिलाफ अभी तक कोई ठोस चुनौती नहीं खड़ा कर सका है।
प्रदेश में महागठबंधन सरकार के खिलाफ साझा कार्यक्रम की कौन कहे, आठ महीनों के दौरान एनडीए के घटक दलों की कोई संयुक्त बैठक तक नहीं हुई है। बीच बीच में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के अटपटे बयानों से एनडीए की किरकिरी हुई सो अलग।
पिछले दिनों तीन सांसद और तीन विधायकों (दो विधानसभा व एक विधान परिषद सदस्य) वाली पार्टी रालोसपा में आयी विभाजन की नौबत से स्थिति और हास्यास्पद हो गई है। गठबंधन में बड़े भाई की हैसियत वाली भाजपा भी रालोसपा को इस स्थिति से उबारने के लिए कोई प्रयास करती नहीं दिख रही। केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान जरूर मौका मिलते ही महागठबंधन सरकार पर तीखा हमला बोलते रहे हैं, लेकिन राजग के अन्य घटक उनके साथ कदमताल नहीं मिला पा रहे हैं।
दरअसल बिहार में एनडीए का गठन ही लालू प्रसाद को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए हुआ था। जार्ज फर्नांडीस और नीतीश कुमार की समता पार्टी ने इसी मकसद से 1996 में भाजपा से हाथ मिलाया था। 2013 तक बिहार में दोनों दल पक्ष में रहे या विपक्ष में पूरा समन्वय बना रहा।
नवंबर 2005 तक जदयू व भाजपा राज्य में विपक्ष की मजबूत भूमिका में रहे। इस दौरान समय समय पर राबड़ी सरकार के खिलाफ साझा आंदोलन भी चला। 24 नवंबर 2005 में बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी। तब 2013 तक दोनों ने सफलतापूर्वक सरकार भी चलाई। लेकिन नीतीश कुमार के हटते ही बिहार में एनडीए में कमजोरी दिखाई देने लगी।
2014 लोकसभा चुनाव लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने भाजपा के साथ मिलकर लड़ा। जबर्दस्त सफलता भी हासिल की। लेकिन, इसमें नरेंद्र मोदी के पक्ष में चल रही लहर का योगदान ही अधिक था। विधानसभा चुनावों से ऐन पहले जीतन राम मांझी का हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा भी एनडीए में शामिल हो गया। पर चार दलों के मिलकर चुनाव लडऩे पर भी विधानसभा चुनाव में एनडीए को कोई खास सफलता नहीं मिल पाई।
महागठबंधन के हाथों विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार से भी बिहार में एनडीए के नेताओं ने कोई सबक नहीं लिया। न कोई साझा कार्यक्रम तय किया गया और न ही कोई समन्वय समिति बनाई गई। राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है। अस्पतालों में दवा नहीं है। मेधा घोटाला हो गया। इससे बिहार की जगहंसाई हो रही है। इसके बावजूद एनडीए प्रदेश सरकार के खिलाफ कोई सशक्त साझा कार्यक्रम तक नहीं तैयार कर सका है।
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