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    नोटबंदी से जूझ रहा बिहार : शहरों में थोड़ी खुशी, गांवों में थोड़ा गम

    By Kajal KumariEdited By:
    Updated: Thu, 22 Dec 2016 10:24 PM (IST)

    नोटबंदी के इतने दिन गुजर जाने के बाद जहां बिहार के शहरी इलाकों में थोड़ी-बहुत खुशी का माहौल बना हैे वहीं अभी भी गांवों में लोगों की परेशानी कम नहीं हुई हैं। पढ़ें ये रिपोर्ट...

    पटना [जेएनएन]। पीएम नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर को की रात को अचानक से नोटबंदी का ऐलान किया था। उनके एलान के बाद तो खाली दिखने वाले एटीएम और कभी-कभी ही बैंक जाने वाले लोग एक साथ उमड़कर बैंकों और एटीएम की ओर भागे। पत्नियों ने जो पैसे छुपाकर रखे थे रोते हुए निकालकर पति को सौंप दिया। जिनके पास ब्लैक मनी थी उनके पसीने छूट गए।

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    मेहनत से खून पसीने वाले लोग अपनी कमाई को सरकार के हिसाब से बैंकों में जमा करा दिया लेकिन कैशलेस होने के लिए अभी तो लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है। लोग अाज भी एटीएम से दो हजार के नोट लेकर खुशी नहीं दुख का भाव लिए निकलते हैं कि इसे चेंज करने में परेशानी आएगी।

    कैशलेस होना सीख रहा है पटना

    धीरे-धीरे पटना में भी लोग कैशलेस होना सीख रहे हैं। जो गृहणियां एटीएम के पैसे के लिए पति पर निर्भर थीं वो अब खुद ही जरूरत के पैसे अपने खुद के एटीएम से निकाल रही हैं। मध्यम वर्ग की महिलाएं जो अपना बजट बहुत सोच समझकर बनाती हैं उनका कहना है कि कैशलेस ने बचत करना भी सिखा दिया है और खासकर पैसे के मुश्किलों से कम में कैसे काम करना है ये भी सिखा दिया है।

    दादा-दादी भी सीख रहे नेटबैंकिंग और ई-पेमेंट

    वहीं अब घर के बड़े बुजुर्ग भी नेट फ्रेंडली हो रहे हैं और नेटबैंकिंग कैसे करना है नेट पेमेंट के मोड खुद भी सीख रहे हैं और पास-पड़ोस के लोगों को भी सिखा रहे हैं। नोटबंदी का प्रभाव युवाओं पर कुछ खास नहीं दिख रहा क्योंकि वो पहले से ही कैशलेस की आदत को अपनी दिनचर्या में शामिल कर चुके हैं।

    खूब निकलकर आ रहा है कालाधन

    वहीं कालेधन के रुप में आयकर विभाग का लेखा-जोखा और उसके बाद निगरानी टीम द्वारा लाखों-करोड़ों की निकासी इस नोटबंदी अभियान की बड़ी सफलता मानी जा रही है। रोज कहीं-न-कहीं से कालाधन बरामद हो रहा है। अब कोई भी कहीं भी अपना काला धन छुपाकर रख नहीं पाएगा। इसके लिए बैंकों के हेराफेरी करने पर उन्हें भी सजा मिली है।

    गांव में लोग हैं परेशान, किसानों को ज्यादा परेशानी

    लेकिन इसका सबसे बुरा प्रभाव ग्रामीण क्षेत्र में देखा जा रहा है। जहां एटीएम की संख्या कम है, एटीएम में पैसे नहीं हैं।सरकार की तरफ से अबतक बिहार के एक तिहाई से भी कम गांवों में ही बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट तैनात किए जा सके हैं और नोटबंदी से नकदी की उत्पन्न परेशानी को कम करने में ये कारगर साबित नहीं हो पा रहे।

    40 हजार गांवों में हैं मात्र 12 हजार बैंकिंग कारेस्पोंडेंट

    राज्य में 40 हजार से अधिक गांव हैं, वहीं बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट की संख्या महज 12 हजार है। इनकी नकदी की सीमा प्रतिदिन 50 हजार रुपये तक की ही है। ग्रामीण इलाके में एटीएम काम नहीं करने के कारण यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही है। किसानों का कहना है कि ना तो हमारे पास कालाधन है ना ही एटीएम है हम अपना काम कैसे करें? बैंक ही एक सहारा है बैंकों में भी स्थिति सामान्य नहीं हो पाई है।

    खेती-बारी में हो रही है दिक्कत

    हालांकि नोटबंदी के बाद सरकार ने गांवों में उत्पन्न नकदी की समस्या को देखते हुए बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट की लेन-देन की सीमा बढ़ाकर 50 हजार कर दी लेकिन अभी खेती-बारी का समय है, विशेष कर किसानों को खाद, बीज और मजदूरी के लिए पैसे की जरूरत अधिक है।

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    एक तरफ राज्य में जहां आधे से अधिक पंचायतों में बैंक की नियमित शाखा नहीं है वहीं दूसरी तरफ ज्यादातर गांवों में एटीम की सुविधा भी नहीं हैं। ऐसे में बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट काफी सहायक हो सकते थे, पर ऐसा नहीं हो पा रहा है। एक व्यक्ति को अधिकतम 2500 रुपये ये दे सकते हैं। इस दर से भी यह एक दिन में महज बीस लोगों को नकदी मुहैया करा सकते हैं। कई बार कॉरेस्पोंडेंट के पास भी नकदी की किल्लत रहती है।

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    एटीएम में अभी भी 500 और 100 के नोट कम मिल रहे

    एटीएम में 500 और 100 के नोट अब भी नहीं मिलने से लोगों की परेशानी बरकरार है। अधिकतर एटीएम में 2000 के नोट ही मिल रहे हैं। 2000 के नोट रोजमर्रा की जिंदगी में काम नहीं आ रहे हैं। बैंकों के लाख दावों के बाद भी एटीएम में 500 के नोट नहीं डाले जा रहे हैं। इस संबंध में बैंकों के अधिकारी बताते हैं कि 500 के नोटों की आपूर्ति ही कम हो रही है।