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    बालिका दिवस विशेष: नजरिया बदलिए.....नजर खुद बदल जाएगी

    By Kajal KumariEdited By:
    Updated: Wed, 11 Oct 2017 11:26 PM (IST)

    आज अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस है। तेजी से बदल रहे समाज की मानसिकता बेटियों के लिए बदली है? हम चांद-सूरज पर जाने की बात करते हैं लेकिन समाज की मानसिकता कितनी बदली है, पढ़िए....

    बालिका दिवस विशेष: नजरिया बदलिए.....नजर खुद बदल जाएगी

    पटना [काजल]। नजरिया बदलिए....नजर खुद बदल जाएगी, तभी कोई बेटी यह कह पाएगी-अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो। क्या एेसा नहीं हो सकता? लेकिन एेसा तभी संभव है जब एक बेटी के जन्म लेने पर भी किसी के चेहरे पर शिकन ना आए, एेसा तभी हो सकता है, जब शादी के बाद उसे जलाया ना जाए, एेसा तभी हो सकता है जब उसे भी बेटे की तरह ही बराबरी का हक मिले।

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    समाज की है दोहरी मानसिकता

    बड़े-बड़े मंच से ये एेसी बातें हम रोज सुनते हैं, कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं। महिला सशक्तिकरण के तमाम दावे किए जा रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर आज भी लिंग जांच कराकर कोख में ही बेटी की हत्या की जा रही है। बेटी के जन्म लेने के बाद उसे कड़कड़ाती ठंड में, झुलसती धूप में कूड़े के ढ़ेर पर फेंक दिया जाता है।

    सड़क पर चल रही छोटी-छोटी पर भी छींटाकशी की जाती है, फिकरे कसे जाते हैं, बाहर की बात क्या करें बेटियां घर में भी कहां सुरक्षित हैं। बच्चियों के साथ हो रही अपराध की घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं, जबकि इसके लिए कितने कानून बनाए गए हैं, लेकिन क्या एेसी घटनाएं रुकी हैं। देश का कानून या कोई भी सरकार इस तरह की घटनाओं को रोक नहीं सकती, जबतक लोगों का नजरिया नहीं बदलता।

    वहीं, दूसरी ओर इसे लेकर तमाम तरह के लांछन लड़कियों पर लगाए जाते हैं कि कपड़े छोटे पहनने से एेसी घटनाएं होती हैं, रात में घूमने की वजह से एेसी घटनाएं होती हैं।तो क्या चार-पांच साल की बच्चियों के सात दुष्कर्म की घटना, दिन दहाड़े अपहरण कर इज्जत को तार-तार करने की घटना, क्या इसके लिए बेटियां ही जिम्मेदार हैं? सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर कब रूकेगा ये सब? समाज की एेसी दोहरी मानसिकता जाने कब 

    पूरे जीवन रहती है असुरक्षा की भावना

    एक लड़की को जन्म लेने से पहले ही ये असुरक्षा की भावना कि गर्भ में ही मार दिए जाएंगे? जन्म लेते ही लोगों की तीखी नजर और बेटी हुई है, मिठाई क्या खिलाना? बड़ी हुई तो मां-बाप को शादी की चिंता, दहेज की चिंता फिर दहेज ना दिया तो ससुराल में जलाकर मार डालने का डर, पति की प्रताड़ना-क्या यही जीवन है एक लड़की का?? क्या हम बेटियों को सुरक्षा नहीं दे सकते, उसे वो उड़ान दे सकते जो बेटों को देते हैं।

    जहां शहरों में लड़कियों के साथ होने वाले अपराध में बढोत्तरी हुई है तो वहीं गांवों में बेटियां आज भी बाल विवाह की शिकार हो रही हैं। हम चांद-सूरज पर जाने की बातें करते हेैं लेकिन आज भी कई बेटियां एेसी हैं जिनकी सिसकियां सुनने वाला कोई नहीं। समाज को अब तो नजरिया बदलना चाहिए....