विदेशों में भी मनाई जाती है होली, नाम अलग लेकिन एक जैसी है परंपरा
होली का त्योहार भारत ही नहीं, विदेशों में भी मनाया जाता है। वहां इसके नाम अलग-अलग हैं, लेकिन परंपरा समान है। भारत में भी कुछ इलाकों की होली की अपनी ख ...और पढ़ें

भोजपुर [विनोद सुमन]। होली हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। जहां कहीं भारतवंशी हैं, यह त्योहार भी है। लेकिन, यह दुनिया के कई अन्य देशों में गैर भारतवंशियों में भी प्रचलित है। इसके नाम अलग-अलग जरूर हैं, लेकिन मनाने की परंपरा भारत से बिलकुल मिलती-जुलती है।
वर्तमान समय में रंगों का यह त्योहार चीन, म्यांमार, यूनान, मॉरीशस आदि देशों में धूमधाम से मनाया जाता है। चीन में यह 'फोश्वेईच्ये' के नाम से जाना जाता है। इस मौके पर चीनी लोग एक-दूसरे को रंगों एवं पानी से सराबोर करते हैं।
यूनान में भी भारत से मिलती-जुलती होली मनाई जाती है। भारत की तरह यहां भी होलिका दहन वाला दिन छोटी होली के रूप में मनाया जाता है। इस दिन यहां के लोग एक-दूसरे पर रंग व पानी डालते हैं और उमंग के साथ नाचते गाते हैं।
चीन और यूनान की तरह म्यांमार में भी होली का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यहां होली को 'थिनर्जी' के नाम से जानते हैं। भारत और म्यांमार में मनाई जाने वाली होली में अंतर सिर्फ इतना है कि भारत की तरह यहां रंगों का प्रयोग नहीं किया जाता है। इस दिन म्यांमारवासी टोलियां बनाकर गाडिय़ों में पूरे शहर का भ्रमण करते हैं। मॉरीशस एवं सिंगापुर में तो बिल्कुल भारत की तरह होली मनाई जाती है।
भारत की बात करें तो ब्रज की होली काफी प्रसिद्ध है। यहां पूरे दिन एक सप्ताह तक होली मनायी जाती है। ब्रज की होली में कृष्ण की बाल-लीलाओं के रासलीला एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। जबकि, मथुरा, वृंदावन, नंदगांव एवं बरसाने की होली के अलग-अलग अंदाज हैं।
नंदगांव एवं बरसाने की होली काफी निराली होती है। बरसाने की लट्ठमार होली का अलग आकर्षण है। यहां युवतियां रंगों की बरसात के बीच डंडों से पुरुषों को पीटती है।
राजस्थान के बाडमेर क्षेत्र में पत्थरों से होली खेलने की परंपरा रही है। गुजरात में डांडिया नृत्य होली का विशेष आकर्षण माना जाता है। बनारस की होली का तेवर कुछ अलग ही होता है।
बिहार के सहरसा स्थित बनगांव में 'घुमौर होली' खेली जाती है। यह होली के एक दिन पहले मनाया जाता है। शाहाबाद क्षेत्र में मनाई जाने वाली होली का अंदाज भी खास है। यहां आज भी गांवों में फागुन महीना शुरू होते ही होली की धमक सुनायी पडऩे लगती है। गांव के चौपालों व दलानों में सामूहिक रूप से फगुआ गाने की परंपरा अपने आप में निराली है, जो लोगों में सामूहिकता एवं सामाजिक एकता को मजबूती प्रदान करती है।

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