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    भाजपा के लिए आसान नहीं होगा सीटों का बंटवारा

    By Amit AlokEdited By:
    Updated: Sun, 07 Jun 2015 10:37 AM (IST)

    बिहार विधान परिषद की 24 सीटों के लिए अपने सहयोगी दलों के साथ टिकट बंटवारे में भाजपा के प्रदेश नेतृत्व को भले ही कोई खास परेशानी न हो, पर विधानसभा चुनाव में यह काम आसान नहीं होगा।

    पटना [सुभाष पाण्डेय]। बिहार विधान परिषद की 24 सीटों के लिए अपने सहयोगी दलों के साथ टिकट बंटवारे में भाजपा के प्रदेश नेतृत्व को भले ही कोई खास परेशानी न हो, पर विधानसभा चुनाव में यह काम आसान नहीं होगा। इसकी एक प्रमुख वजह पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की नवगठित पार्टी हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (हम) भी है।

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    सूत्रों के अनुसार लोकसभा चुनाव में एनडीए के घटक दलों में सीटों का जिस तरह से बंटवारा हुआ था, विधानसभा चुनाव में भी करीब-करीब वही फार्मूला रहने की उम्मीद जताई जा रही थी। लोकसभा चुनाव में लोजपा ने सात और रालोसपा ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था।

    नालंदा और कटिहार को छोड़कर एक संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं। चूंकि लोजपा की लड़ी हुई सीटों में एक नालंदा की सीट भी थी, इसलिए इस फार्मूले पर लोजपा का कोटा 44 सीटों का बनता है। इस आधार पर रालोसपा का कोटा 18 सीट का है। अगर बंटवारा इन दो सहयोगियों के बीच करना रहे, तब तो कोई खास दिक्कत नहीं है। लेकिन, मांझी की पार्टी को भी एनडीए में शामिल कर लिया गया तब टिकट बंटवारे में परेशानी होगी।

    मिशन 175 के लक्ष्य को पूरा करने के लिए भाजपा खुद कम से कम इतनी ही सीटों पर चुनाव लडऩा चाहती है, ताकि सहयोगियों के साथ मिलकर लक्ष्य तक पहुंचा जा सके।इधर मांझी की धीरे-धीरे भाजपा नेतृत्व से बढ़ रही नजदीकियों को देखते हुए संभावना बन रही है कि वह एनडीए के साथ ही मिलकर चुनाव लड़े।

    मांझी के एनडीए गठबंधन में चुनाव लडऩे की स्थिति में भाजपा ही नहीं सहयोगियों की सीटें भी कम हो सकती हैं। यूं तो मांझी गुट लोजपा के बराबर ही विधानसभा की सीटें चाहता है, लेकिन यह भी सच है कि 'हम' के पास चुनाव लडऩे लायक दो दर्जन से अधिक दमदार उम्मीदवार भी नहीं है।