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    JEE IIT : मोबाइल पर फिजिक्स के सवाल सॉल्व कराते हैं 'आइजी अंकल'

    By Kajal KumariEdited By:
    Updated: Mon, 13 Jun 2016 11:00 PM (IST)

    पूर्व डीजीपी अभयानंद छात्रों के बीच आइजी अंकल के रूप में जाने जाते हैं। उनके पढाने के जुनून के कारण रहमानी सुपर 30 की आधारशिला पड़ी।

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    पटना [भुवनेश्वर वात्स्यायन]। पढाने का जुनून हो, कुछ अलग करने का जुनून हो तो वक्त की कमी तो बस बहाना है। आइजी अंकल के नाम से मशहूर बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद को भी एक एेसा ही जुनून है- बच्चों को पढाना और आइआइटी की तैयारी कराना।

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    उनका मानना है कि बच्चों का जब रिजल्ट आता है तो लगता है मेरे खुद का रिजल्ट आया हो। इस साल भी उन्होंने 270 बच्चों को आइआइटी की परीक्षा में उत्तीर्णता हासिल कराई है।

    अभयानंद बताते हैं कि 14 साल पहले की बात है। जब मेरा तबादला बीएमपी में हो गया था। बीएमपी का स्थानांतरण उस समय 'शंट' करना माना जाता था। लेकिन मैंने ऐसा नहीं सोचा। बीएमपी में अपेक्षाकृत व्यस्तता कम रहने की वजह से मैंने अपने बेटे को पढ़ाने में ज्यादा समय देना शुरू किया। फिजिक्स पढ़ाने में मुझे खूब मजा आता था। मेरे बेटे ने आइआइटी क्रैक कर लिया।

    तब मैंने सोचा कि जब अपने बेटे को पढ़ा कर उसे आइआइटी भेज सकता हूं तो अन्य बच्चों को क्यों नहीं पढाकर उन्हें भी आइआइटी पहुंचाउं? यहीं से उन्होंने अपने बिजी शिड्यूस से वक्त निकालकर गणितज्ञ आनंद कुमार के सुपर-30 में फिजिक्स पढ़ाना शुरू किया। वहां बच्चे उन्हें आइजी अंकल कहते थे। एडीजी बनने के बाद भी बच्चे उन्हें इसी नाम से पुकारते थे।

    उनके शिक्षक रहते सुपर-30 आइआइटी को रिकार्डतोड़ सफलता मिली। फिर कुछ कारणों से अभयानंद सुपर-30 से अलग हो गए और इसी साल आइजी अंकल के पढाने के जुनून के कारण ही रहमानी सुपर 30 की आधारशिला पड़ी। इसके बच्चे हर साल आइआइटी में अपनी सफलता का परचम लहराते रहे हैं, इस बार भी रहमानी क्लासेज के 270 बच्चों ने आइआइटी क्रैक किया है। यह आइजी अंकल का ही कमाल है।

    रिटायरमेंट के बाद और मेहनत की

    सुपर-30 से अलग होने के बाद उन्होंने मुस्लिम बच्चों को पढ़ाने की योजना बनाई। यहीं से जन्म हुआ रहमानी सुपर थर्टी का। वली रहमानी ने जगह उपलब्ध करायी। मुस्लिम बच्चों ने भी सफलता हासिल की। बच्चों के आइजी अंकल एडीजी हुए और डीजीपी होने के बाद कुछ वर्ष पहले रिटायर भी हो गए हैं, पर पढ़ाने और पढऩे का सिलसिला आज भी जारी है।

    फोन पर भी सवाल हल कर देते हैं

    अभयानंद का शगल है- पढ़ाना। वे कहते हैं- अच्छा लगता जब बच्चे एक झोंक में आइआइटी क्रैक कर लेते हैं। मेरे पास अब काफी समय है। मैं अपना पूरा समय बच्चों को पढ़ाने पर दे रहा हूं। बच्चों को मैंने अपना मोबाइल नंबर दिया हुआ है। उन्हें स्वतंत्रता है कि जब चाहें प्राब्लम पूछ सकते हैं। मैं मोबाइल पर उन्हें प्राब्लम सॉल्व करा देता हूं। सब जगह जाना संभव नहीं इसलिए शिक्षकों की निगरानी करता हूं।

    इस बार 270 बच्चे सफल हुए

    अभयानंद बताते हैं कि इस बार उनके रहमानी सुपर थर्टी और देश के बाहर सीएसआर के तहत चल रहे संस्थानों से 270 बच्चों ने आइआइटी क्रैक किया है। तीन सौ बच्चे इस कतार में थे। वह कहते हैं कि मेरी यह धारणा बन रही है कि अब हर समाज के लोग यह कोशिश कर रहे हैं बच्चे पढ़ें। उन्हें यह समझ में आ गया है कि यह सरकार के बूते की बात नहीं। समाज की मदद से ही आंकड़ा बढ़ रहा है। यह अच्छा है।