'कानून' पढ़ा नहीं, लगा रहे हैं कोर्ट
नवीन कुमार मिश्र, पटना
बिना 'कानून' पढ़े कोई कोर्ट लगा सकता है? सहज उत्तर होगा नहीं। मगर बिहार में यह हो रहा है। शांति व्यवस्था बहाली, भूमि विवाद से जुड़े एहतियाती कार्रवाई के सिलसिले में कार्यपालक दंडाधिकारी के पद पर तैनात सुपरवाइजरी सेवा के अधिकारी कोर्ट लगा रहे हैं, जिन्होंने इससे संबंधित पढ़ाई भी नहीं की है। दो साल पहले तक बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी कार्यपालक दंडाधिकारी के पद पर तैनात होते थे। वे विधि व रेवेन्यू की परीक्षा पास करने के बाद ही इन पदों पर तैनात किए जाते थे।
जाहिर है वर्तमान व्यवस्था में इन 'अदालती' फैसलों का असर कानून-व्यवस्था पर पड़ेगा। प्रदेश में खासकर ग्रामीण इलाकों में हिंसा की वजह भूमि विवाद और प्रारंभिक स्तर पर ठोस सुरक्षात्मक कार्रवाई नहीं करना है। राज्य सरकार इस समस्या को महसूस करते हुए कुछ वर्षो के लिए फिर से यह काम बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को सौंपने की तैयारी में है। हाल ही मुख्य सचिव स्तर पर इस मसले पर बैठक हुई है। इन सुपरवाइजरी सेवाओं के अधिकारियों के खराब परफार्मेस को देखते हुए अनेक अधिकारियों की सेवा वापस भी लौटाई जा चुकी है।
2010 के प्रारंभ में राज्य सरकार ने बिहार प्रशासनिक सेवा के पुनर्गठन के साथ ही अलग ग्रामीण विकास सेवा एवं राजस्व सेवा के गठन का निर्णय किया। बीडीओ, सीओ, कार्यपालक दंडाधिकारी के पद से बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को वापस कर दिया गया। तात्कालिक व्यवस्था के तहत उनसे कम वेतनमान वाले सुपरवाइजरी सेवाओं के लोगों को तैनात कर काम चलाया जा रहा है। वर्तमान में ग्रामीण विकास विभाग के अधीन कार्यपालक दंडाधिकारी के 147 पद हैं। जिसमें पांच दर्जन से अधिक पद रिक्त हैं। खास बात यह भी ये अधिकारी ग्रामीण विकास विभाग के हैं मगर कार्यपालक दंडाधिकारी के रूप में शक्ति सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा सौंपी जाती है।
ये है काम
सीआरपीसी की धारा 20 के तहत कार्यपालक दंडाधिकारियों की नियुक्ति होती है। विधि-व्यवस्था की बहाली के लिए ये लाठी चार्ज एवं फायरिंग कराने के लिए मॉब कंट्रोल 'लीडर' की भूमिका में होते हैं। सीआरपीसी की धारा 133, 144, 145, 146, 147 के मामले में कोर्ट लगाते हैं। यानी दो पक्षों के बीच शांति भंग होने की आशंका, मारपीट, लैंड पोजेशन, लैंड अटैचमेंट, रैयती भूमि पर गैर कानूनी कब्जा, पानी और हवा को कोई रोकता है तो उसके मामले कोर्ट लगाकर फैसले करते हैं।
क्या है योजना
ग्रामीण विकास विभाग ने अपने नवगठित कैडर के लिए नियमित नियुक्ति की खातिर बिहार लोक सेवा आयोग को प्रस्ताव भेजा है। परीक्षा और चयन की प्रक्रिया के बाद नियुक्ति में समय लगेगा। और कार्यपालक दंडाधिकारी का मूल पद मूल कोटि से वरीय पद है। ऐसे में अनुमान है कि चार-पांच साल का समय लग जाएगा। तब तक बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को नियुक्त करने की योजना है।
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