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    ऐसे कैसे होगी बिहार के किसानों की आमदनी दोगुनी

    By Amit AlokEdited By:
    Updated: Mon, 13 Nov 2017 08:08 PM (IST)

    बिहार में 15 नवंबर से धान खरीद की प्रक्रिया श्‍ुारू हो रही है। यह कृषि रोडमैप का पहला इम्तिहान है। आइए देखें सरकार की व्यवस्था एवं किसानों की लाचारी की पड़ताल करती इस रिपोर्ट को।

    ऐसे कैसे होगी बिहार के किसानों की आमदनी दोगुनी

    पटना [अरविंद शर्मा]। बिहार सरकार के कृषि रोडमैप का मकसद उत्पादन-उत्पादकता बढ़ाने के साथ-साथ किसानों की माली हालत में सुधार लाना भी है। इसके लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, किंतु किसानों को उपज की वाजिब कीमत दिलाना अभी भी बड़ी चुनौती है। भंडारण, प्रसंस्करण और विपणन के मोर्चे पर काफी काम बाकी हैं। जब तक अन्न उत्पादकों की जेबें नहीं भरेंगी, तब तक सारे प्रयास अव्यवहारिक होंगे।

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    बिहार में तीसरे कृषि रोडमैप के लोकार्पण के साथ ही किसानों के आर्थिक हितों की हिफाजत की चुनौती भी बढ़ गई है। साल दर साल पैदावार बढ़ रही है, लेकिन किसानों को उसकी वाजिब कीमत नहीं मिल पा रही। सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीदारी अपने आप में बड़ा झंझट है जबकि उपज खरीदारी की जो व्यवस्था बिहार में है, वह देश के अन्य राज्यों में नहीं है।

    अन्य राज्यों में मंडी सिस्टम है, जबकि बिहार में पंचायत स्तर तक पैक्सों एवं व्यापार मंडलों के जरिए किसानों से सीधे खरीदारी की व्यवस्था है। बिहार देश का पहला राज्य है, जहां के बटाईदार भी खरीद प्रक्रिया में शामिल कर लिए गए हैं जो अपना आवेदन खुद सत्यापित करके अधिकतम 50 क्विंटल धान बेच सकते हैं।

    जाहिर है, सरकार की इच्छाशक्ति में कमी नहीं है, किंतु बिचौलियों ने सारा खेल बिगाड़ रखा है। खरीद एजेंसियों की मनमानी अलग। कभी नमी अधिक तो कभी खराब क्वालिटी का बहाना। सबका असर सीधे किसानों पर पड़ता है। वे औने-पौने मूल्य पर फसल बेचने पर मजबूर हो जाते हैं।

    किसानों के हित में सरकार की कोशिशें और तीसरे कृषि रोडमैप की पहली परीक्षा धान खरीदारी से ही शुरू हो जाएगी। अगले पांच वर्षों में उपज बढ़ाने का लक्ष्य है। जिस हिसाब से उत्पादन बढ़ेगा, उसी हिसाब से खरीदारी की व्यवस्था को दुरुस्त करना भी कम बड़ी चुनौती नहीं होगी। ऑनलाइन आवेदन पहली बड़ी बाधा है।

    पिछले साल लगभग डेढ़ लाख किसानों के आवेदन को सिर्फ इसलिए निरस्त कर दिया गया था, क्योंकि उनमें कई तरह की त्रुटियां थीं। यह लफड़ा फिर आ सकता है, क्योंकि आवेदन का पैटर्न पुराना है। ऑनलाइन आवेदन कर रहे किसानों के सामने कागजात के सत्यापन को लेकर दिक्कत आनी तय है। भूमिहीन किसानों के पास न तो जरूरी कागजात होते हैं और न ही अनुभव। इसका फायदा बिचौलिए उठा ले जाते हैं। फिर आंकड़ों को सूचीबद्ध करने में भी दिक्कतें आनी तय हैं।

    हालांकि, पिछली बार की दिक्कतों को देखते हुए विभाग ने इस बार सितंबर से ही ऑनलाइन आवेदन लेने शुरू कर दिए हैं। पिछली बार यह प्रक्रिया नवंबर में शुरू हुई थी।


    किसानों के सामने दूसरी सबसे बड़ी बाधा धान में अत्यधिक नमी को लेकर आने वाली है। सरकारी एजेंसियां 17 फीसद से अधिक नमी वाला धान खरीदने से इनकार कर देती हैं। पिछले साल इसके चलते लक्ष्य के अनुरूप खरीदारी नहीं हो पाई थी। बैंकों द्वारा किसानों को भुगतान की गई राशि को मोबाइल एप पर नियमित अपलोड करने, किसानों के भुगतान और बकाये के आंकड़े को सूचीबद्ध करने की पर्याप्त तैयारी अगर नहीं हुई तो इस बार का नतीजा भी अलग नहीं होगा।

    सारे धान की होगी खरीदारी
    राज्य सरकार ने इस बार भी धान खरीद का कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया है। जितना धान आएगा, सरकार सारा खरीदेगी। पिछले साल औपबंधिक रूप से 30 लाख मीट्रिक टन से अधिक की खरीदारी का अनुमान था। इस बार भी इतना ही अंदाजा है। संयुक्त निबंधक आरपी सिंह ने सभी जिला सहकारिता पदाधिकारियों को जिलावार खरीदारी की रिपोर्ट प्रतिदिन अपडेट करने का निर्देश दिया है। प्रगति रिपोर्ट मुख्यालय को प्रतिदिन देनी है।


    यहां आ सकती है दिक्कत
    धान खरीद 15 नवंबर से शुरू होने वाली है। मुख्यमंत्री ने केंद्र से खरीद के लिए धान में नमी की न्यूनतम मात्रा को 17 से बढाकर 19 फीसद करने का आग्र्रह किया है, लेकिन अभी तक केंद्र से आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला है। एक बार खरीदारी शुरू होने पर किसानों के सामने पिछले साल की तरह फिर दिक्कत आ सकती है। अत्यधिक नमी की शिकायत शुरू में ही होती है। बाद के महीनों में यह धीरे-धीरे कम होती जाती है। इसलिए सरकार को चाहिए कि इस स्तर पर आने वाली दिक्कतों को अभी से दूर कर लिया जाए।


    यहां बदहाल
    सड़ जाती हैं 10 हजार करोड़ की सब्जियां
    किसानों की आय बढ़ाने में सबसे ज्यादा सहायक सब्जियों की खेती हो सकती है। सब्जी उत्पादन में बिहार की गिनती देश के प्रथम तीन राज्यों में है। सूबे में हर साल 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक की सब्जियां सड़ जाती हैं। इससे बड़ा नुकसान होता है। जैविक कॉरिडोर में सब्जियों की खेती को प्रोत्साहित करने के बाद उत्पादन के साथ-साथ नुकसान का आंकड़ा भी बढ़ सकता है। सब्जी किसानों को उचित मूल्य दिलाने एवं उपभोक्ताओं को बाजार से कम मूल्य पर सब्जी उपलब्ध कराने की दिशा में राज्य सरकार काम कर रही है। इसके लिए प्रखंड स्तर पर दूध की तरह सब्जी फेडरेशन बनाने की तैयारी है।

    नहीं बढ़ती गेहूं की खरीदारी
    आमतौर पर राज्य सरकार का फोकस सिर्फ धान खरीद पर होता है। ऐसे में गेहूं की खरीदारी में लगातार फिसड्डी साबित होती रही है। इस साल भी समर्थन मूल्य पर खरीदारी के एलान के बावजूद किसान अपना गेहूं लेकर सरकारी एजेंसियों तक नहीं पहुंचे। उन्हें खुले बाजार में ही ज्यादा कीमत मिल जाती है। ऐसे में समर्थन मूल्य को बढ़ाना ही एकमात्र विकल्प होता है ताकि किसानों को बाजार से ज्यादा कीमत सरकारी एजेंसियों से मिल सके। अगर बाजार में भी किसानों को वही रेट मिलेगा तो तो किसान पैक्सों या व्यापार मंडलों में अपना गेहूं क्यों बेचेंगे? बाजार की तुलना में न्यूनतम समर्थन मूल्य बढऩे पर खरीदारी अपने-आप बढ़ जाएगी।

    इनका कहना है
    'सरकार का उद्देश्य है किसानों को उपज का वास्तविक मूल्य दिलाना। इस बार भी धान की बेहतर उपज हुई है। ऐसे में खुले बाजार में कीमत नीचे आने के खतरे को देखते हुए समर्थन मूल्य में 80 रुपये की वृद्धि की गई है, ताकि किसान परेशान होकर औने-पौने दाम में धान बेचने पर मजबूर न हों। किसानों को नुकसान से बचाने की पूरी कवायद है। व्यवस्था पारदर्शी है। ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में थोड़ी बहुत शिकायत आना लाजिमी है।'

    - राणा रणधीर सिंह (सहकारिता मंत्री, बिहार)

    - किसानों की कुल संख्या : 1.50 करोड़

    - पैक्सों की संख्या : 8463 

    - व्यापार मंडल : 511 

    - पैक्स सदस्य : 1.16 करोड़ 

    उत्पादन की रफ्तार     
    वर्ष : उत्पादन
    2016-17 : 84.87
    2015-16 : 64.89
    2014-15 : 82.41
    2013-14 : 66.49
    2012-13 : 83.22
    2011-12 : 82.37
    2010-11 : 31.12
    उत्पादन (लाख टन चावल)     

    निबंधन का हाल (पिछला वर्ष)
    कुल आवेदन : 6.60 लाख
    स्वीकृत आवेदन : 5.14 लाख
    खरीदारी हुई : 2.89 लाख

    पर्याप्त नहीं आय के उपाय (कृषि आधारित उद्योग
    उद्योग इकाई चालू 
    चावल मिल 174 120
    गेहूं मिल 44 33
    मक्का प्रसंस्करण 43 32
    ग्रामीण कृषि व्यापार केंद्र 53 37
    फल-सब्जी प्रसंस्करण 16 8
    दूध प्रसंस्करण 9 6
    मखाना प्रसंस्करण 4 2
    शहद प्रसंस्करण 3 3
    बिस्कुट निर्माण 12 8
    खाद्य तेल फैक्ट्री 10 9
    फूड पार्क 2 0
    (स्रोत : खाद्य प्रसंस्करण निदेशालय, उद्योग विभाग)