काली मिर्च के उत्पादन की प्रखंड में है अपार संभावनाएं
निप्र. गलगलिया (किशनगंज) : जिंदगी की तेज रफ्तार में कृषि के पैमाने भी तेजी से बदल रहे है। कम क्षेत्रफल में अधिक मुनाफा कमाने में किसान भी पीछे नहीं रहना चाहते है। तभी तो ठाकुरगंज प्रखंड के चुरली ग्राम पंचायत स्थित ग्राम नावडुबा निवासी जय प्रकाश सिंह (68) काली मिर्च की खेती कर कम क्षेत्रफल में कम लागत से अधिक मुनाफा कमा रहे है। काली मिर्च की खेती कर जय प्रकाश सिंह क्षेत्र के लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गए है। मालूम हो कि काली मिर्च जो भारतीय व्यंजन में मसाले के रुप में प्रयोग के साथ-साथ औषधीय गुणों से भरपूर होती है। इस बावत श्री सिंह ने जागरण को बताया कि काली मिर्च (गोल मिर्च) के लिए यहां की भौगोलिक स्थिति के काफी उपयुक्त है। काली मिर्च का पौधे हरे भरे वृक्षों खासकर सुपारी के पौधों में चढ़कर खूब पनपता है। इसकी लताएं स्थूल व पुष्ट तथा पत्तियां चिकनी व अंडाकार होती है। यह बारहमासी पौधा साधारणतया 30-40 वर्षो तक फलता-फूलता रहता है। पौधों के विस्तार के लिए इनकी कलमें काटकर बोई जाती है। ऊंचे पेड़ों के आश्रय से काली मिर्च के पौधे 30 से 45 मीटर तक चढ़ जाते है। लेकिन फलों को सुविधापूर्वक उतारने के लिए इन्हें 6-9 मीटर तक ही बढ़ने दिया जाता है। श्री सिंह ने बताया कि प्रत्येक वर्ष एक पौधे से लगभग 4 से 6 किलोग्राम तक गोल मिर्च (काली मिर्च) मिल जाती है। जिससे एक पौधा से दो से तीन हजार रुपये की आमदनी सालाना होती है। काली मिर्च एक एकड़ क्षेत्रफल मे लगभग 1000 पौधे लगाए जा सकते है। जिसमें खर्च 25-30 हजार रुपये होते है। आमदनी दो से तीन लाख की होती है। इस बावत एमएच आजाद नेशनल कालेज ठाकुरगंज के वनस्पति विज्ञान के व्याख्यात प्रो. रियासत अली बताते है कि काली मिर्च के पौधे का मूल स्थान दक्षिण भारत माना जाता है। भारत से बाहर इंडोनेशिया, बोनियो, इंडोचीन, श्रीलंका आदि देशों में इसकी खेती होती है। काली मिर्च सुगंधित, उत्तेजक और स्फूर्तिदायक होती है। आयुर्वेद में इसका उपयोग कफ, वात, श्वास आदि रोगों में किया जाता है। भूख बढ़ाने और बुखार के लिए भी किया जाता है। खाद पदार्थो में मसाले के रुप में इसका उपयोग अधिक होता है।
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