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विहंगम योग सिद्घांत व साधना का समन्वय : विज्ञान देव

By Edited By: Published: Wed, 28 May 2014 06:06 PM (IST)Updated: Wed, 28 May 2014 06:06 PM (IST)

संसू कुदरा(कैमूर) : प्रखंड अंतर्गत उच्च विद्यालय जहानाबाद(कुदरा)के प्रांगण में मंगलवार की रात्रि में सदाफलदेव आश्रम झूसी के तत्वावधान में आयोजित प्रवचन में भक्तों को संबोधित करते हुए संत प्रवर विज्ञान देव जी महाराज ने कहा कि विहंगम योग सिद्घांत और साधना का समन्वय है। आध्यात्मिक सेवा सर्वोपरि है। सेवा अंत करण एवं आत्मा की शुद्घि का साधन है। सेवा से अहंकार दूर होता है। सेवा का अर्थ समर्पण, सहज और विनम्रता है। भारत का मतलव सदैव ध्यान, विद्या में रत रहना है। भारतीय जीवन आध्यात्मिक जीवन है। विहंगम योग अध्यात्म का शुद्घ प्रवाह है। मानव जीवन लक्ष्य विहीन नहीं होता है। शरीर की पुष्टि, इंद्रियां की तृप्ति, अर्थ काम का सेवन लक्ष्य नहीं है। जीवन ईश्वर का महान प्रसाद है। अपनी शक्ति का उपयोग सेवा कार्य में लगाना चाहिए। त्याग, समर्पण, कर्तव्यपालन, सौम्यता, करुणा, श्रम धैर्य में वास्तविक सुख है। ईष्या, द्वेष, कलह, अहंकार जीवन के पतन का कारण है। सृष्टि के निर्मित उत्पादन,साधारण तीन कारण है। सृष्टि के प्रत्येक घटना में नियम है। सृष्टि आकस्मिक नहीं होती है। ईश्वर सृष्टि का निर्मितकारण है। प्रकृति सृष्टि का उपादान कारण है। सृष्टि का समागम आत्मा है। संसार में सृष्टि के दो प्रयोजन है। जीव के उपभोग एवं मोक्ष के प्रयोजन है। संसार में रहना और उससे विरक्त रहने के काम को विहंगम योग बताता है। जो श्रेष्ठ, पवित्र, आचरणीय है वही धर्म है। अहंकार का शमन, अंत:करण की शुद्घि ही भक्ति है। कार्यक्रम को सफल बनाने में सुभाष सिंह, योगेन्द्र सिंह ,कचहरी पासवान, प्रो0 दामोदर शर्मा, रवीन्द्र सिंह, अप्पू जयसवाल, रामनारायण गुप्ता, राधेश्याम पासवान, सुरेन्द्र पासवान व सुमेर शर्मा की भूमिका सराहनीय रही।

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