बूथ मैनेजमेंट के साथ शुरू हुआ डैमेज कंट्रोल
दरभंगा । प्रत्याशियों को थका देने वाले डेढ माह के लंबे प्रचार अभियान से मंगलवार की शाम सुकून तो मिला
दरभंगा । प्रत्याशियों को थका देने वाले डेढ माह के लंबे प्रचार अभियान से मंगलवार की शाम सुकून तो मिला, लेकिन अब बूथ मैनेजमेंट के साथ डैमेज कंट्रोल की ¨चता सताये जा रही है। जन मानस को अपने पक्ष में करने के बाद उसे मतदान केंद्र तक पहुंचाना और अपने सिम्बॉल का ईवीएम बटन दबवाने के साथ समर्थन की ²ष्टि से कमजोर क्षेत्रों में पैठ बढ़ाकर कम से कम विरोधियों की राह में कांटे बिछाने की मुहिम अब शुरू हुई है। लेकिन, विभिन्न दलों के अलावा निर्दलीय प्रत्याशियों की इस मुहिम में आम कार्यकर्ता नहीं बल्कि, चाणक्य नीति के धुरंधरों की जगह दी जा रही है। मंगलवार और बुधवार की रात में करोड़ों का खेल होना है। प्रत्याशियों के बूथ मैनेजमेंट की ²ष्टि से इसे तीन श्रेणियों में बांटते हुए सबके लिए अलग राशि निर्धारित की है। बेहतर जनाधार वाले बूथों पर जीत की रेस में शामिल उम्मीदवार 5-10 हजार रुपये बतौर खर्च दे रहे हैं। दोनों ओर से बराबर की टक्कर वाले मतदान केंद्रों के लिए भी इतनी ही राशि का लिफाफा बनकर तैयार हो रहा है। इन लिफाफों में हस्ताक्षर किए गए पो¨लग एजेंट बनने का फार्म भी पैक है। जहां वोट कम है वहां 2 हजार रुपये बूथ के लिए निर्धारित किया जा रहा है। लेकिन, रोचक तथ्य यह है कि जिस बूथ पर किसी दल या प्रत्याशी को महसूस हो रहा है कि वहां उसे वोट नहीं है्, वहां के खर्च में कोई कटौती नहीं है। उसे भी 5-10 हजार रुपये देने की योजना है। इसका विशेष कारण है। हमको नहीं तो किसी को नहीं फार्मूले पर चलते हुए योजना यह बन रही है कि वहां मतदान का प्रतिशत धीमा कराया जाए। फर्जी मतदान के नाम पर कतार में खड़े लोगों और मतदान पार्टी को इतना भ्रमित किया जाय कि वहां बहुत कम मतदान हो। बूथ मैनेजमेंट के इन तीनों पहलुओं के अलावा डैमेज कंट्रोल वाली कयामत की रात भी प्रत्याशियों के पास मात्र 2 है। कुछ लोग और इलाके मुहल्ले ऐसे हैं जो विचार धारा से तो समर्थक हैं लेकिन, विशेष कारणों से विरोधी खेमे का राग अलाप रहे हैं। ऐसे लोगों को भी अपने पाले में लाने के लिए प्रत्याशियों का ¨थक टैंक बैठ चुका है। कौन किससे बेहतर ढंग से हैंडिल कर पाएगा ऐसे लोगों की सूची चकाचक लग्जरियस गाड़ी के साथ तैयार है। ऐसी गाडिय़ों पर झंडा, बैनर या पोस्टर लगाने से भी मना कर दिया गया है। प्रत्याशियों की नजर में कुछ मतदाता ऐसे हैं जो किसी दल-उम्मीदवार के प्रति समर्थन को लेकर आज भी हाशिये पर हैं। उन्हें मतदान से पहले वाली रात में मैनेज करने के लिए गाड़ी में तरकश के सारे तीर रखे ¨थक टैंक का एक अलग दल तैयार किया जा रहा है। प्रत्याशियों के साथ डेढ़ माह तक दिन रात गला फाड़ कर चिल्लाने वाले कार्यकर्ता पूछते हैं कि अंदर बंद कमरे में क्या हो रहा है। तो उन्हें समझा दिया जा रहा है कि वोटर लिस्ट और पो¨लग एजेंट फार्म पर हस्ताक्षर हो रहा है। सीधे सादे कार्यकर्ता तो प्रत्याशियों के इसी कथन को मान लेते हैं। लेकिन, इन्हें क्या पता कि यह तो वह रात है जिसे कयामत की रात कहा जाता है।