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    सतावर की खेती, बदल रही किसानों की तकदीर

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    Updated: Sun, 04 Mar 2012 07:48 PM (IST)

    निज प्रतिनिधि, छौड़ाही (बेगूसराय)।

    छौड़ाही के किसान परंपरागत खेती के अलावे औषधीय खेती में भी हाथ आजमा रहे हैं। फायदा भी भरपूर मिल रहा है। अब तो यहां के एक किसान विमलेश चौधरी द्वारा उत्पादित सतावर का जलवा यूपी, एमपी तक फैल चुका है। इनमें प्रेरणा ले जिले के दर्जनभर किसानों ने इस वर्ष कई एकड़ जमीन में सतावर की व्यावसायिक खेती की है।

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    सतावर है गुणों की खान-

    सतावर जिसे शतावरी, सतसुता इत्यादि नामों से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम एस्येरेगस रेसिमोसा है। यह शक्ति व‌र्द्धक, दूध व‌र्द्धक, शारीरिक दर्द व पथरी निदान के रूप में होता है। वैज्ञानिकों ने इसमें ग्लूकोज की भरपूर मात्रा पाई है। इसकी खेती जल जमाव रहित बलुही दोमट मिट्टी में होती है। सतावर के बीच नर्सरी लगाकर पौधा तैयार कर 60 से 70 सेमी. की दूरी पर लगाया जाता है। फसल 20 से 30 महीना का होता है। अत: इसके साथ कालमेघ, अरहर आदि सह फसल लगायी जाती है। एक एकड़ में 25 टन तैयार सतावर प्राप्त होता है। लागत प्रति एकड़ 80 हजार से एक लाख रुपये आती है जबकि मुनाफा लगभग चार लाख प्रति एकड़ प्राप्त होता है।

    कहते हैं किसान -

    सिहमा के किसान विमलेश चौधरी कहते हैं कि विगत चार साल से सतावर की खेती कर रहे हैं। अब बिहार, बंगाल, झारखंड, उत्तर व मध्य प्रदेश तक के किसानों को प्लाटिंग मेटेरियल, तकनीकी व मार्केटिंग में सहयोग कर रहे हैं। बोले जिला के छौड़ाही, चेरिया बरियारपुर, खोदाबन्दपुर व साहेबपुर कमाल के 20 किसान 20 एकड़ में सतावर की खेती किये हैं। श्री चौधरी ने राज्य भर में 200 एकड़ में सतावर की खेती कराने की बात बतायी। बोले-उत्पादन को बनारस, जबलपुर, भोपाल आदि मंडियों में अच्छी कीमत में बेचा गया है। जिला में 100 एकड़ में सतावर खेती का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

    कहते हैं अधिकारी-

    जिला उद्यान पदाधिकारी निरंजन कुमार का कहना हुआ कि किसानों को सतावर की खेती करने हेतु अपेक्षित सहयोग व अनुदान दिया जा रहा है। प्रखंड कृषि पदाधिकारी अभिषेक कुमार किसान विमलेश के कार्य से प्रसन्न हैं। बोले सतावर के खेत में सिंचाई के स्प्रीकलर मशीन लगाने हेतु अनुदान दिलवाया है। श्री चौधरी ने प्रखंड का नाम अन्य राज्यों में रोशन करने का काम किया है।

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