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जैविक खाद का हब बना बांका

By Edited By: Published: Wed, 30 Jan 2013 09:31 PM (IST)Updated: Wed, 30 Jan 2013 11:32 PM (IST)

बांका, कार्यालय प्रतिनिधि : खेतों की संजीवनी कहे जाने वाले जैविक खादों के उत्पादन में बांका काफी आगे निकल चुका है। यहां निजी स्तर पर किसानों द्वारा इसके उत्पादन के साथ एक बड़ा प्लांट भी लग चुका है। फुल्लीडुमर के विसनपुर गांव में लगे इस प्लांट से सालाना तीन हजार मैट्रिक टन खाद के उत्पादन का लक्ष्य है। पिछले छह महीने में डेढ़ हजार मैट्रिक टन खाद का उत्पादन भी हो चुका है। यहां की जैविक खाद अब भागलपुर के साथ-साथ जमुई व मुंगेर तक पहुंचने लगी है।

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फुल्लीडुमर प्रखंड के तेलिया गांव निवासी सह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्वी भारत के सदस्य रह चुके दिनेश सिंह द्वारा यह प्लांट लगाया गया है। इस प्लांट को सरकार से अनुदान भी प्राप्त है। जिले में वृहत पैमाने पर जैविक खाद के उत्पादन से किसानों को भी काफी राहत मिली है। नाइट्रोजन व पोटाश की पूर्ति करने में सक्षम इस खाद से रसायनिक उर्वरक की किल्लत से जूझते स्थानीय किसानों को भी काफी राहत मिली है। इस खाद की खरीद में सरकार की अनुदान की व्यवस्था भी किसानों के लिए मददगार साबित हो रहा है। औसतन डेढ़ सौ रुपये में ही लोगों को पचास किलोग्राम जैविक खाद उपलब्ध हो रहा है। इधर सरकारी निर्देश के आलोक में इस बार श्रीविधि से गेहूं की बोआई में भी विभाग स्तर से किसानों को यही खाद मुहैया कराया गया है। लगभग चार सौ किसानों के खेतों में अबकी रसायनिक उर्वरक की जगह इस खाद के सहारे ही श्रीविधि से गेहूं की बोआई की गयी है।

क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक

कृषि वैज्ञानिकों की राय में इस खाद के उपयोग से खेतों की उर्वरा शक्ति में निरंतर वृद्धि होती है। जबकि रसायनिक खाद से उर्वरा शक्ति पर प्रतिकूल असर पड़ता है। अनुदान पर खाद मिलने से खेती में खर्च भी कम आता है। खासकर बांका के बंजर भूमि में इस खाद के उपयोग से क्रांतिकारी परिवर्तन की संभावना है।

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