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    UN कर्मचारियों पर चीन से मिलीभगत का गंभीर आरोप, व्हिसिलब्लोअर की गवाही से मची सनसनी

    By Agency Edited By: Nidhi Avinash
    Updated: Wed, 17 Apr 2024 09:00 PM (IST)

    मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की पूर्व कर्मचारी एम्मा रीली ने संयुक्त राष्ट्र और चीन के बीच मिलीभगत का गंभीर आरोप लगाया है।एम्मा ने जांच समिति के समक्ष अपनी गवाही में संयुक्त राष्ट्र पर चीन सरकार का पक्ष लेने को खतरनाक बताया। एम्मा ने आरोप लगाया कि चीन ताइवान से राजनयिक संबंध रखने वाले देशों को धन मुहैया न कराने को लेकर संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों पर गुप्त शर्ते भी थोपता रहा है।

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    UN कर्मचारियों पर चीन से मिलीभगत का गंभीर आरोप (IMAGE: X/ Emmareilly)

    एएनआइ, लंदन। मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की पूर्व कर्मचारी एम्मा रीली ने संयुक्त राष्ट्र और चीन के बीच मिलीभगत का गंभीर आरोप लगाया है। ब्रिटिश संसद की विदेशी मामलों की समिति ने बहुलवादी प्रणाली में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के इस लिखित साक्ष्य को प्रकाशित किया है।

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    व्हिसिलब्लोअर के रूप में काम कर रहीं एम्मा रीली ने जांच समिति के समक्ष अपनी गवाही में संयुक्त राष्ट्र पर चीन सरकार का पक्ष लेने को खतरनाक बताया।

    बीजिंग पर लगाया आरोप

    ब्रिटिश संसद की विदेशी मामलों की समित ने एक प्रेस रिलीज जारी कर यह जानकारी दी। रीली ने आरोप लगाया कि सतत विकास लक्ष्यों की दो साल की बातचीत के दौरान बीजिंग ने महासभा सत्र के दो पूर्व अध्यक्षों को रिश्वत दी, जिन्होंने अंतत: प्रक्रिया की देखरेख की और महासभा में रखे गए अंतिम पाठों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। एम्मा ने आरोप लगाया कि चीन ताइवान से राजनयिक संबंध रखने वाले देशों को धन मुहैया न कराने को लेकर संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों पर गुप्त शर्ते भी थोपता रहा है।

    मानव अधिकार परिषद की शाखा के प्रमुख पर आरोप

    एम्मा ने लिखित साक्ष्य में मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय में मानव अधिकार परिषद की शाखा के प्रमुख पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि फ्रांसीसी नागरिकता रखने वाले इस शख्स ने मानव अधिकार परिषद में शामिल होने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के बारे में अग्रिम सूचनाएं दीं। एम्मा रीली ने आरोप लगाया कि यूएन सचिवालय ने एनजीओ प्रतिनिधियों के नाम चीन को पहले ही बता दिए। उन्होंने कहा कि उन प्रतिनिधियों ने बताया कि इससे उनके परिवार के सदस्यों को चीन की पुलिस ने प्रताड़ित किया।

    उन्हें उनकी वकालत बंद करने के लिए फोन करने का विवश किया गया। कई को बिना कारण लंबे समय तक जेल में डाल दिया गया। उइगरों को एकांत शिविरों में रखकर प्रताडि़त किया गया। कुछ मामलों में उनके परिवार के सदस्यों की मौत तक हो गई।

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