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    World War 1: एक नींबू से हुआ था जर्मन जासूस का पर्दाफाश, पढ़ें प्रथम विश्व युद्ध की अनसुनी कहानी!

    प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कार्ल मुलर नामक एक जर्मन जासूस ने ब्रिटेन में घुसपैठ की। उसने नींबू के रस का उपयोग अदृश्य स्याही के रूप में संदेश भेजने के लिए किया। ब्रिटिश खुफिया एजेंसी MI5 ने उसे पकड़ लिया। उसके सहायक जॉन हैन को भी गिरफ्तार किया गया। मुलर को जासूसी के आरोप में फांसी दी गई।

    By Digital Desk Edited By: Abhishek Pratap Singh Updated: Thu, 28 Aug 2025 08:45 PM (IST)
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    नींबू के जरिए जर्मनी तक पहुंचाता था ब्रिटेन की खबरें।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। क्या एक नींबू किसी को मौत की सजा दिला सकता है? यह एक ऐसा सवाल है, जो हाल-फिलहाल में सामने आया है। इसका जवाब है हां और ऐसा एक सदी से भी पहले हुआ था।

    1915 में जब वर्ल्ड वॉर अपने चरम पर था, उस वक्त एक नींबू ने जर्मन जासूस की जान ले ली थी। अब वो नींबू समय के साथ काला पड़ चुका है और रुई के अंदर सुरक्षित रखा हुआ है। ये वही नींबू है, जिसका इस्तेमाल कभी अदृश्य स्याही छिपाने के लिए किया जाता था। इस साल की शुरुआत में लंदन के क्यू स्थित राष्ट्रीय अभिलेखागार में MI5 की पहली सार्वजनिक प्रदर्शनी में प्रदर्शित सबसे दिलचस्प अवशेषों में से एक था।

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    ब्रिटेन में कौन लेकर आया ये नींबू?

    ब्रिटेन में इस नींबू को कार्ल मुलर नाम का एक शख्स लेकर आया था, जो जर्मनी का रहने वाला था। उसने अपनी पहचान एक रशियन शिपिंग ब्रोकर की बताई थी और बिटेन के अंदर 1915 में उस वक्त आया था, जब वर्ल्ड वॉर फर्स्ट चरम पर था।

    वह जाली कागजात और वालरस मूछों के जरिए ब्रिटेन में घुसा और खुद को बेल्जियम से आया एक आम शरणार्थी बताया था। जबकि, असलियत में मुलर जर्मनी का खुफिया एजेंट था और इसे ब्रिटिश सैनिकों की गतिविधियों पर नजर रखने का काम सौंपा गया था।

    जर्मन जासूस ने नींबू को बनाया अपना हथियार

    ब्रिटेन की गतिविधियां जर्मनी तक पहुंचाने के लिए उसने नींबू को अपना हथियार बनाया था। मुलर ने कलम की नोंक से नींबू में छेद करके अक्षरों के पीछे संदेश लिखने के लिए इसके रस का इस्तेमाल किया। इन शब्दों को देखने के लिए गर्म प्रेस (इस्त्री)। यह एक अदृश्य स्याही की तरह काम करता था और सदियों पुराना तरीका है।

    कैसे पकड़ा गया कार्ल मुलर?

    • युद्ध के दौरान ब्रिटेन जासूसों पर पैनी नजर तो पहले से ही रख रहा था। ऐसे में, उसका पोस्टल सेंसरशिप ऑफिस भी दुश्मन देशों के जासूसों को लेकर सतर्क था। एक दिन रॉटरडैम पोस्ट ऑफिस को भेजी गई चिट्ठी पर इसे शक हुआ।
    • जब एमआई 5 के अफसरों ने इसकी गर्म करके जांच की तो उसमें एप्सम में सैन्य अभ्यास और दक्षिणी बंदरगाहों से प्रस्थान के बारे में कोडित नोट मिले।
    • इस सबूत के सहारे एमआई के अधिकारी जर्मन मूल के डेप्टफोर्ड बेकर जॉन हैन तक पहुंचे, जो मुलर के सहायक के रूप में काम कर रहा था। हैन के घर की तलाशी ली गई तो वहां पर एक नींबू मिला, जिसमें पेन और ब्लॉटिंग पेपर की मदद से छेद किया गया था। साथ ही उस पर सीक्रेट राइटिंग के भी निशान थे।
    • यहां से जांचकर्ता मुलर के आवास पर पहुंचे और यहां से भी उन्हें एक ओवरकोट की जेब से नींबू मिला। इसके अलावा दूसरे नींबू को टुकड़ों में काटकर बड़ी ही सावधानी से रुई में लपेटकर रखा हुआ मिला।
    • जब मुलर से पूछा गया कि वह नींबू क्यों लेकर चलता है तो उसने अधिकारियों को बताया कि वह नींबू दांत साफ करने के लिए रखता है। अधिकारी इस जवाब से संतुष्ट नहीं थे।
    • इसके बाद मुलर के पास से मिली चीजों को फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स के पास भेजा गया, जहां उसकी कलम की निब पर नींबू की कोशिका के निशान मिले। यह एक पुख्ता सबूत था कि वह अपना संदेश भेजने के लिए एक अदृश्य स्याही का इस्तेमाल करता था।
    • जून 1915 तक मुलर और हैन दोनों पर ओल्ड बेली में गुप्त रूप से मुकदमा चलाया गया। हैन को सात साल की कैद की सजा सुनाई गई। जासूसी के दोषी पाए गए मुलर को मौत की सजा सुनाई गई।
    • 23 जून 1915 को लंदन के टॉवर पर वह शांति से फायरिंग स्क्वॉड के पास गए और हर सैनिक से हाथ मिलाया, फिर उसकी आंखों पर पट्टी बांधकर उसे फांसी दे दी गई।

    कहानी अभी खत्म नहीं हुई...

    कहानी उसकी मौत के साथ खत्म नहीं हुई। MI5 ने मुलर के नाम से एंटवर्प स्थित जर्मन खुफिया एजेंसी को मनगढ़ंत रिपोर्टें भेजना जारी रखा। इस चाल से बर्लिन को यकीन हो गया कि उनका जासूस अभी भी सक्रिय है और चैनल के पार पैसा आना जारी रहा।

    ब्रिटिश सिक्योरिटी सर्विस ने इस पैसे से एक दो-सीटर मॉरिस कार भी खरीदी। खास बात यह है कि इसका नाम "द मुलर" रखा गया और इसे सर्विलांस के कामों के लिए इस्तेमाल करते थे।

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