कहानी उस तांत्रिक की जो न गोली से मरा और न जहर से, मौत की भविष्यवाणी की और पूरा साम्राज्य तबाह हो गया
30 दिसंबर 2016 को रूस के सबसे बड़ी तांत्रिक रासपुतिन की हत्या हुई। वह अपनी मौत और रूस के शाही साम्राज्य की तबाही की भविष्यवाणी करके गया था। दुर्लभ बीमारियों को ठीक कर उसने लोगों का विश्वास जीता और बाद में रूस का सबसे प्रभावशाली शख्स बना। वह न गोली से मरा और न जहर से। उसकी मौत पर आज भी बहस है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। लंबी दाढ़ी, बड़े-बड़े बाल और शरीर से आ रही दुर्गंध... रासपुतिन की पहचान थी। वह नशे में डूबा रहता था और लंबे समय तक नहाता नहीं था। वेश्याओं से उसके संबंध भी चर्चित थे। सनकी तांत्रिक ग्रिगोई रासपुतिन तंत्र विद्या का महारथी था। वह अपनी कथित विद्या से हर किसी को सम्मोहित कर लेता था। बीमारियों को ठीक करके लोगों का विश्वास जीतना, उसका सबसे बड़ा हथियार था।
शाही परिवार तक बनाई पहुंच
रासपुतिन अपने आपको साधु कहता था। उसका यह भी दावा था कि वह हर बीमारी को ठीक कर सकता है। धीरे-धीरे उसकी ख्याति चारों तरफ होने लगी। रूस के रूढ़िवादी पदरियों और शाही परिवार के शीर्ष पदों पर तैनात लोगों तक उसकी पहुंच हो गई। बाद में इन्हीं लोगों ने रासपुतिन की मुलाकात जार निकोलस और उनकी पत्नी एलेक्जेंड्रा से करवाई।
बेटे को ठीक करके जीता दिल
रूस के जार निकोलस और जरीना एलेक्जेंड्रा का एक बेटा था। इस इकलौते वारिस का नाम था एलेक्सी। वह हीमोफीलिया से पीड़ित था। यह एक दुर्लभ बीमारी है। इसमें खून का थक्का नहीं बनता है। चोट लग जाने पर खून हमेशा बहता रहता है। मगर रासपुतिन ने एलेक्सी को ठीक करने का दावा किया और उसने ऐसा कर दिखाया। बेटे के ठीक होता देख जार और जरीना का रासपुतिन पर विश्वास अटूट हो गया।
इलाज पर बहस
जार की बहन ग्रैंड डचेस ओल्गा ने बाद में कहा था कि रासपुतिन ने एलेक्सी को बिस्तर पर घुटने टेका कर और प्रार्थना करके ठीक किया था। उसने महल में शांत वातावरण भी तैयार किया। इसने भी एलेक्सी को ठीक करने में मदद की। कुछ लोगों का मानना है कि रासपुतिन ने साइबेरिया में घोड़ो में होने वाले रक्तस्राव को रोकने वाली तकनीक का एलेक्सी पर इस्तेमाल किया। आज भी उसके इलाज पर बहस जारी है।
1892 में बदला रासपुतिन का जीवन
रासपुतिन साइबेरिया में किसानी करता था। साल 1892 में उसके जीवन में बड़ा बदलाव आया। दरअसल, उसने अपने परिवार से अलग बैरागी जीवन बिताने का फैसला किया। वह एक मठ में रहने लगा। रासपुतिन आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश में जुट गया। बैराग लेने के बाद अक्सर लोग अपने परिवार से रिश्ता तोड़ लेते हैं। मगर रासपुतिन ने ऐसा नहीं किया। वह अपने परिवार से मिलता रहा। उसकी बेटियां सेंट पीटर्सबर्ग में उसके साथ रहती थीं।
छोरा तुरा नदी किनारे वाला
रासपुतिन का जन्म 1869 में तुरा नदी के तट पर बसे गांव पोक्रोवस्कॉय में हुआ था। उसने 18 साल की उम्र में प्रस्कोव्या डबरोविना से शादी की। दोनों को कुल सात बच्चे हुए। इनमें से चार की मौत हो गई और सिर्फ तीन बच्चे मारिया, दिमित्री और वरवारा जीवित बचे थे।
अपने चमत्कारों से रासपुतिन ने रूस के शाही परिवार में अपना दबदबा जमा लिया। वह 1914 में प्रथम विश्व युद्ध तक राजनीतिक सलाह दे रहा था। मंत्रियों की नियुक्ति में उसकी भूमिका अहम होती। शाही परिवार में उसकी दखल ने रूस के रईसों में एक नाराजगी भी पैदा की।
साम्राज्य पर हो गया था नियंत्रण
विश्व युद्ध के दौरान जार निकोलस सैनिकों के साथ रहने की खातिर अपनी राजधानी छोड़ दी थी। साम्राज्य का नियंत्रण एलेक्जेंड्रा ने संभाला। मगर यह नियंत्रण नाममात्र था। असली कमान रासपुतिन के हाथों में थी। एलेक्जेंड्रा को युद्ध से जुड़ी हर सलाह रासपुतिन देता था।
जरीना के साथ अंतरंग संबंध के आरोप
रासपुतिन पर यह भी आरोप लगे कि उसके जरीना एलेक्जेंड्रा के साथ अंतरंग संबंध थे। यह बात खासकर सैनिकों में आम हो चली थी। उस पर जर्मनी से मिले होने और देशद्रोह के आरोप भी लगे। यह भी आरोप लगा कि रासपुतिन ने कनाडा से जहरीले सेब मंगवाए थे। इन सेबों से सेंट पीटर्सबर्ग में हैजा महामारी शुरू की।
जार के रिश्तेदार ने रासपुतिन को मारा
शाही परिवार में दखल ने रासपुतिन के खिलाफ कई लोगों में नाराजगी पैदा की। रूस के कई रईस लोग उसके दुश्मन बन बैठे। बाद में जार की भतीजी के पति फेलिक्स युसुपोव ने रासपुतिन की हत्या की साजिश रची। 30 दिसंबर 1916 को रासपुतिन की हत्या हुई है। मगर हत्याकांड की पूरी कहानी काफी दिलचस्प है।
फेलिक्स ने बताई हत्या की पूरी कहानी
1928 में प्रकाशित अपने संस्मरणों में युसुपोव ने दावा कि उसने रासपुतिन को अपनी पत्नी इरिना से मिलने महल बुलाया था। एक प्लेट में उसे केक दिया। कई गिलास शराब पिलाई। शराब में पोटेशियम साइनाइड मिला था। मगर युसुपोव के होश तब उड़ गए जब उसने यह देखा कि रासपुतिन पर जहर बेअसर है। बाद में राजकुमार युसुपोव ने रिवॉल्वर से रासपुतिन को कई बार गोली मारी। मगर वह नहीं मरा। इसके बाद उसे कपड़े में लपेटकर नदी में फेंक दिया गया। नदी में डूबने की वजह से उसकी मौत हुई।
जब सच निकली आखिरी भविष्यवाणी
1916 में रासपुतिन ने जारीना को पत्र लिखा। इसमें उसने कहा कि वह एक जनवरी से पहले दुनिया को अलविदा कह देगा। उसने कहा कि अगर मुझे आम लोगों ने मारा तो परेशान होने की कोई बात नहीं है। मगर मुझे मरने वाले अगर अभिजात वर्ग से हैं तो रूस में भाई-भाई को मारेंगे। अगर आपके किसी रिश्तेदार ने मेरी जान ली तो 2 साल के अंदर आप में से कोई नहीं बचेगा। रासपुतिन की यह आखिरी भविष्यवाणी भी सच निकली। उसकी हत्या के दो साल के अंदर ही जार ने मार्च 1917 में अपना पद छोड़ दिया। जुलाई 1918 में उनके परिवार की हत्या कर दी गई।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।