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    पाकिस्तान के लिए महंगा साबित होगा चीन पर आंखें मूंद कर भरोसा करना, कार्यवाहक PM ने किए कई समझौते

    By Jagran NewsEdited By: Devshanker Chovdhary
    Updated: Wed, 25 Oct 2023 12:14 AM (IST)

    पाकिस्तान का चीन पर आंखें मूंद कर भरोसा करना महंगा साबित हो सकता है। बेल्ट एंड रोड पहल अब नए चरण में प्रवेश कर गई है। पिछले सप्ताह बेल्ट एंड रोड फोरम में भाग लेने के लिए चीन गए पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवारुल हक काकर ने कई समझौतों पर सहमति दे दी लेकिन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि वित्तीय संकट और सुरक्षा खतरे परियोजनाओं में अड़ंगा लगा सकते हैं।

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    पाकिस्तान के कार्यवाहक पीएम काकर ने चीन के साथ कई समझौते किए। (फाइल फोटो)

    एएनआई, इस्लामाबाद। पाकिस्तान का चीन पर आंखें मूंद कर भरोसा करना महंगा साबित हो सकता है। बेल्ट एंड रोड पहल अब नए चरण में प्रवेश कर गई है। पिछले सप्ताह बेल्ट एंड रोड फोरम में भाग लेने के लिए चीन गए पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवारुल हक काकर ने कई समझौतों पर सहमति दे दी, लेकिन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि वित्तीय संकट और सुरक्षा खतरे परियोजनाओं में अड़ंगा लगा सकते हैं।

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    चीन ने पाकिस्तान को दिया भरोसा

    चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ मुलाकात के दौरान काकर ने कहा कि विश्व की नंबर दो अर्थव्यवस्था के साथ पाकिस्तान की साझेदारी जन्नत में बनी। हम चीन के साथ खड़े रहेंगे और आंखें मूंद कर भरोसा करेंगे।दोनों पक्षों ने 20 समझौते और आपसी सहमति पर हस्ताक्षर किए।

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    इन परियोजनाओ को लेकर बातचीत

    इनमें सबसे प्रमुख बहु प्रतीक्षित मेन लाइन 1 (एमएल-1) है। इस रेलवे परियोजना में कराची से पेशावर के बीच 1700 किलोमीटर ट्रैक को उन्नत करना है। अन्य समझौतों में पाकिस्तान की रिफाइनरी क्षमता मजबूत करने के लिए चीन के एकीकृत ऊर्जा समूह द्वारा 15 लाख अरब डालर का निवेश शामिल है।

    नए समझौते के बावजूद विशेषज्ञ एमएल-1 को लेकर संशय में हैं। वर्जीनिया विश्वविद्यालय में वैश्विक अध्ययन के सहायक प्रोफेसर मुहम्मद तैयब सफदर को लगता है कि काम शीघ्र शुरू नहीं हो पाएगा। उन्होंने कहा है कि इससे पहले भी एमएल-1 से जुड़े ऐसे समझौतों की घोषणा की गई थी।

    पाकिस्तान को जाना पड़ेगा आईएमएफ के द्वार

    पाकिस्तानी मीडिया की रिपोर्टों में कहा गया है कि पाकिस्तान को एमएल-1 ऋण के लिए चीन को संप्रभु गारंटी देनी होगी और इसके लिए उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की सहमति लेनी पड़ेगी। शून्य की ओर अग्रसर विदेशी मुद्रा भंडार के कारण इस्लामाबाद को ऋण डिफाल्टर से बचने के लिए आइएमएफ की शरण में जाना पड़ा था।

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