Pakistan Bomb Blast: पेशावर की शिया मस्जिद में जुमे की नमाज के दौरान बम धमाका, 57 की मौत, 200 से अधिक घायल
Pakistan Bomb blast in Peshawar पेशावर की एक मस्जिद में जुमे की नमाज के दौरान हुए शक्तिशाली बम धमाके में 57 लोगों की मौत हो गई जबकि 200 से अधिक लोग घायल हो गए। हमलावरों ने मौके पर ड्यूटी कर रहे पुलिसकर्मियों पर गोलीबारी भी की।
पेशावर, पीटीआइ। पाकिस्तान के पेशावर की एक शिया मस्जिद में शुक्रवार को जुमे की नमाज के दौरान हुए भीषण आत्मघाती बम विस्फोट में 57 लोग मारे गए और 200 से अधिक लोग घायल हो गए। प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस घटना की जांच के आदेश दिए हैं। अमेरिका ने इस हमले की निंदा करते हुए पीडि़तों के परिवारों के प्रति संवेदना जताई है। डान अखबार की रिपोर्ट के अनुसार एक बचाव अधिकारी ने बताया कि पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी शहर के किस्सा ख्वानी बाजार स्थित जामिया मस्जिद बम धमाके के दौरान खचाखच भरी हुई थी।
पुलिस कर्मियों पर गोलीबारी
इस बम धमाके की जिम्मेदारी फिलहाल अभी किसी ने नहीं ली है। पेशावर के पुलिस अफसर एजाज अहसान ने बताया कि मस्जिद में घुसने की कोशिश कर रहे हमलावर ने वहां तैनात पुलिस कर्मियों पर गोलियां चलाईं। इस हमले में एक पुलिस कर्मी भी मारा गया जबकि एक अन्य की हालत काफी गंभीर है। गोलीबारी की इसी घटना के बाद बम विस्फोट हुआ।
काले रंग की सलवार कमीज पहने था हमलावर
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि धमाके में लगभग पांच से छह किलोग्राम विस्फोटक सामग्री का इस्तेमाल किया गया। इस घटना को आत्मघाती हमला करार देने वाले अधिकारियों ने शुरू में कहा कि इसमें दो हमलावर शामिल थे। हालांकि, बाद में दिन में जारी सीसीटीवी फुटेज में काले रंग की सलवार कमीज पहने एक अकेला हमलावर मस्जिद तक पैदल पहुंचते और पिस्टल लहराते हुए दिखाई दिया।
मौके से 57 शव मिले
लेडी रीडिंग अस्पताल के मीडिया मैनेजर आसिम खान ने बताया कि बम धमाके के बाद मौके से 57 शव मिले हैं। घायलों को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया है। खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री महमूद खान ने हमले की कड़ी निंदा की है।
किस्सा ख्वानी बाजार में बीता था दिलीप व राज कपूर का बचपन
पाकिस्तान का किस्सा ख्वानी बाजार भारतीयों के लिए विशेष महत्व रखता है। 'ट्रेजडी किंग' के रूप में मशहूर दिलीप कुमार का जन्म वर्ष 1922 में किस्सा ख्वानी बाजार में हुआ था। अभिनेता राज कपूर का जन्म भी इसी इलाके में हुआ था। खुदाई खिदमतगार आंदोलन के दौरान 23 अप्रैल, 1930 को यहीं पर हुए नरसंहार में ब्रिटिश सैनिकों ने लगभग 400 निहत्थे प्रदर्शनकारियों को गोलियों से भून दिया था।