बेनकाब हुआ पाकिस्तान का झूठ, आतंकी हाफिज सईद की नजरबंदी सिर्फ नाटक
पाक ने अमेरिका की आंख में धूल झोंकने को हाफिज सईद को नजरबंद किया और मौका मिलते ही उसे रिहा कर दिया।
नई दिल्ली [मोहम्मद शहजाद]। किसी ड्रामे को अगर उन्हीं किरदारों और कथा-पटकथा के साथ बार-बार खेला जाए तो वह लोगों को उबाऊ और पकाऊ लगने लगता है। मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड और आतंकी संगठन जमात-उद-दावा के सरगना हाफिज सईद की गिरफ्तारी और रिहाई का नाटक भी कुछ ऐसा ही है। ये इतना बासी हो चुका है कि लोगों को इसके पर्दा उठने से लेकर गिरने तक के एक-एक दृश्य का पता है। सभी जानते हैं कि जब भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय का दबाव पड़ता है, तब पाकिस्तान दुनिया को दिखाने के लिए लश्करे-तैयबा और जमात-उद-दावा जैसे आतंकवादी संगठनों के संस्थापक हाफिज सईद पर इस तरह की कार्रवाई करता है और जैसे ही यह दबाव कम होता है, उसे फिर खुला घूमने और जहर उगलने की छूट मिल जाती है। इस बार भी ठीक वैसा ही हुआ। दस महीने की नजरबंदी का नाटक रचने के बाद आखिरकार उसे लाहौर हाई कोर्ट की एक न्यायिक पुनर्समीक्षा बोर्ड के जरिए रिहा कर दिया गया।
हाफिज की नजरबंदी और पाक का दिखावा
हाफिज सईद की रिहाई का रास्ता उसी रोज साफ हो गया था, जब न्यायिक पुनर्समीक्षा बोर्ड ने उस पर पाकिस्तान सरकार की ओर से लगाए गए जनता की सुरक्षा के लिए खतरे के आरोप को खारिज कर दिया था। फिर भी अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते एक हल्की सी उम्मीद ये थी कि शायद पाकिस्तान सरकार उस पर नए आरोप लगाकर घर में उसकी नजरबंदी को जारी रखे। वैसे ये उम्मीद फिजूल थी। जाहिर है फिलहाल पाकिस्तानी सरकार पर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से ज्यादा वहां की फौज का दबाव पड़ा। आखिर जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों के जरिए आतंकवादियों के विरुद्ध कार्रवाई में तेजी आने के बाद उसे अपने नापाक मंसूबा की अंत्येष्टि होती जो दिखाई देने लगी है। जकीउर्रहमान लखवी और मसूद अजहर जैसे खूंखार आतंकियों के भतीजों के मारे जाने के बाद पाकिस्तानी फौज, आइएसआइ और सरकार को फिर से अपने इस प्यादे की जरूरत महसूस होने लगी है। उसके जरिए पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की नई पौध को सींचने के फिराक में है। इसलिए ये रिहाई उसकी मजबूरी बन गई थी। अपनी रिहाई के फौरन बाद उसने ‘कश्मीर मसले’ और कश्मीरियों को आजादी दिलाने में मदद की बाद दोहराई है।
हाफिज को लेकर पाक सरकार गंभीर नहीं
दरअसल हाफिज सईद के खिलाफ की गई नजरबंदी की कार्रवाई में शुरू से गड़बड़झाला था। दस महीने पहले उसे जब उसके घर पर नजरबंद किया गया था तो इसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस्लामी चरमपंथ फैलाने वाले देशों की खिलाफ कार्रवाई से जोड़कर देखा जा रहा था। प्रतिबंधित देशों की उस विवादास्पद सूची में पाकिस्तान का नाम तो नहीं था, लेकिन उसे यह डर सताने लगा था कि वह भी इससे दूर नहीं है। इसी दबाव के चलते पाकिस्तान ने आनन-फानन में हाफिज सईद के अलावा अब्दुल्ला उबैद, जफर इकबाल, अब्दुर्रहमान आबिद और काजी काशिफ नियाज पर नजरबंदी की कार्रवाई की है। पाकिस्तान ने ये कदम अमेरिकी दबाव में कितनी जल्दबाजी में उठाया था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाफिज सईद को नजरबंद किए जाने के एक-दो दिन बाद तक सरकार के पास इस बात का कोई स्पष्ट जवाब नहीं था कि उस पर आरोप क्या हैं और किन धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज होगा? फिर बाद में अमेरिका को खुश करने के लिए उसने हाफिज सईद और उसके साथियों को एंटी टेररिस्ट एक्ट की चौथी सूची के तहत सूचीबद्ध किया। सईद की हालिया रिहाई इस बात का संकेत है कि उसके खिलाफ या तो आरोप और धाराएं बहुत कमजोर लगाई गईं या फिर उसे साबित कर सजा दिलाने में कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई गई। अर्थात इस ड्रामे का नतीजा भी पहले की तरह तय था।
लगातार बेनकाब हो रहा है पाकिस्तान
गौरतलब है कि 26/11 मुंबई हमले में तो भारत की तरफ से पाकिस्तान को कई डोजियर सौंपे गए। फिर भी अदालत के जरिए उसके खिलाफ तमाम मामले खत्म किए जाने के कारण बरी कर दिया गया। दिक्कत यही है कि पाकिस्तान कभी अपनी सरजमीन से फलने-फूलने वाले आतंकवाद को रोकने और ‘नॉन स्टेट एक्टर्स’ के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर गंभीर ही नहीं रहा है। इसके विपरीत उन्हें पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ का वामहस्त हासिल रहा है। नजरबंदी का पूरा समय हाफिज सईद जैसों के लिए बस आराम फरमाने से ज्यादा कुछ नहीं होता है। कहने का मतलब है कि आतंकवाद के नाम पर ठोस कार्रवाई करने की पाकिस्तान की पूरी कवायद महज एक धोखे के सिवा कुछ नहीं होती है। मुंबई हमले के तुरंत बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तान ने दुनिया को दिखाने के लिए पाक अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद में लश्कर ट्रेनिंग कैम्प को खत्म करने का ढोंग रचा। इसके कुछ ही दिनों बाद भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने ये खुलासा किया कि इन शिविरों को मुजफ्फराबाद से दुलई न केवल स्थानांतरित कर दिया गया है बल्कि उन्हें और अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस भी कर दिया गया है। ठीक उसी समय लश्कर कमांडर जकीउर्रहमान लखवी को रावलपिंडी की अडियाला जेल में बंद किया गया, लेकिन वह जेल के अंदर से भी आतंकी सरगर्मियों को बढ़ावा देने में संलिप्त रहा। अमेरिका ने स्वयं इसका सबूत पाकिस्तान को दिया।
ट्रंप की भूमिका और पाकिस्तान
असल में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के काम करने की शैली और फैसले लेने का अंदाज औरों से जुदा है। इसलिए पाकिस्तान को ये आभास हो गया था कि उन्हें उनके पूर्ववर्ती लोगों की तरह मनाना आसान नहीं होगा। यही वजह है कि नजरबंदी से दो कदम आगे बढ़ते हुए उस समय पाकिस्तान ने जमात-उद-दावा और उसके सहयोगी संगठन फलाहे-इंसानियत फाउंडेशन को संयुक्त राष्ट्र की 1267 प्रतिबंधित सूची के अनुसार निगरानी सूची में डाल दिया। इसके साथ ही हाफिज सईद समेत आतंकी संगठनों से जुड़े दीगर 37 लोगों को ‘एग्जिट कंट्रोल लिस्ट’ में डालकर उनके बाहर जाने पर रोक लगा दी गई। अब जैसे ही अमेरिका का इस तरफ से थोड़ा ध्यान हटा, पाकिस्तान ने मौका देखते ही हाफिज सईद को आजाद घूमने और फिर से आतंकवादियों को खाद-पानी देने की छूट दे दी है।
(लेखक टेलीविजन पत्रकार हैं)