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    Pakistan: दमघोंटू हवा से बढ़ी फजीहत, सड़कों पर उतरे लाहौर के लोग, रैली निकाली और किया प्रदर्शन

    पाकिस्तान के लाहौर में क्लाइमेट चेंज को लेकर प्रदर्श हो रहा है। सैकड़ों नागरिक समाज कार्यकर्ता और ट्रेड यूनियन सदस्य स्वच्छ हवा की मांग को लेकर लाहौर की सड़कों पर उतरे हैं। यह विरोध प्रदर्शन पाकिस्तान किसान रबीता समिति और लेबर एजुकेशन फाउंडेशन द्वारा आयोजित किया गया है जो लाहौर प्रेस क्लब से शुरू होकर एगर्टन रोड पर ऐवान-ए-इकबाल तक चला।

    By Jagran News Edited By: Versha Singh Updated: Mon, 16 Dec 2024 10:46 AM (IST)
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    स्वच्छ हवा के लिए लाहौर में हो रहा प्रदर्शन (फोटो- ANI)

    एएनआई, लाहौर (पाकिस्तान)। रविवार को सैकड़ों नागरिक समाज कार्यकर्ता और ट्रेड यूनियन सदस्य जलवायु न्याय और स्वच्छ हवा की मांग को लेकर लाहौर की सड़कों पर उतरे। इसकी जानकारी डॉन की रिपोर्ट में दी गई है।

    पाकिस्तान किसान रबीता समिति (पीकेआरसी) और लेबर एजुकेशन फाउंडेशन (एलईएफ) द्वारा आयोजित यह विरोध प्रदर्शन लाहौर प्रेस क्लब से शुरू हुआ और एगर्टन रोड पर ऐवान-ए-इकबाल तक चला। प्रतिभागियों ने बैनर और तख्तियाँ ले रखी थीं, जो जलवायु परिवर्तन से प्रभावित श्रमिकों के लिए नौकरी की सुरक्षा की तत्काल आवश्यकता पर जोर दे रही थीं।

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    पीकेआरसी के महासचिव फारूक तारिक ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण बिगड़ता जा रहा यह संकट उन समुदायों को अधिक प्रभावित कर रहा है, जिन्होंने पर्यावरण विनाश में सबसे कम योगदान दिया है।

    उन्होंने कहा, जबकि लोग उस संकट के सबसे बुरे प्रभावों के कारण पीड़ित हैं, जिसे उन्होंने पैदा नहीं किया है, जलवायु आपदा के लिए जिम्मेदार धनी देश जिम्मेदारी से बचते रहते हैं। उन्होंने बाढ़ प्रभावित समुदायों के लिए क्षतिपूर्ति, स्वच्छ हवा के अधिकार और सभी के लिए जलवायु न्याय की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

    2022 की बाढ़ पाकिस्तान के इतिहास में सबसे खराब जलवायु-संबंधी आपदाओं में से एक थी, जिसने लगभग 33 मिलियन लोगों को प्रभावित किया, लाखों लोगों को विस्थापित किया और 1,700 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई।

    डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, तारिक ने बताया कि ऊर्जा के लिए जीवाश्म ईंधन पर पाकिस्तान की निर्भरता ने जलवायु परिवर्तन के प्रति देश की संवेदनशीलता को और बढ़ा दिया है, क्योंकि इसकी 60 प्रतिशत से अधिक बिजली कोयले, तेल और गैस से आती है।

    एलईएफ के खालिद महमूद ने कहा, यह निर्भरता न केवल गर्मी और बाढ़ जैसे जलवायु प्रभावों को बढ़ाती है, बल्कि ईंधन आयात बिलों में वृद्धि के माध्यम से अर्थव्यवस्था पर बोझ भी डालती है।

    महमूद ने अक्षय ऊर्जा में बदलाव की वकालत की, इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि यह न केवल उत्सर्जन को कम कर सकता है, बल्कि भविष्य के लिए स्थायी रोजगार भी पैदा कर सकता है।

    उन्होंने कहा, नवीकरणीय ऊर्जा की ओर एक उचित बदलाव जरूरी है, न केवल उत्सर्जन को कम करने के लिए बल्कि स्थायी नौकरियां पैदा करने और जलवायु संकट के अग्रिम मोर्चे पर समुदायों की रक्षा करने के लिए भी।

    डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, गिलगित-बाल्टिस्तान में अवामी वर्कर्स पार्टी (AWP) के अध्यक्ष बाबा जान ने स्थानीय समुदायों पर जलवायु परिवर्तन के तत्काल प्रभावों के बारे में बात की।

    उन्होंने बताया, जलवायु संकट कोई दूर की बात नहीं है -- यह पहले से ही गिलगित-बाल्टिस्तान जैसे क्षेत्रों में जीवन को बदल रहा है, जहां ग्लेशियर खतरनाक दर से पिघल रहे हैं।

    उन्होंने जोर देकर कहा कि कॉर्पोरेट हित स्थानीय आबादी पर होने वाले विनाशकारी परिणामों को नजरअंदाज करते हुए संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के माध्यम से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना जारी रखते हैं।

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