1985 में समंदर की गहराई से निकला था टाईटैनिक का राज, कैसे बॉब बैलार्ड ने खोजा मलबा?
1912 में डूबा टाइटैनिक जहाज 1985 में अमेरिकी वैज्ञानिक बॉब बैलार्ड ने अटलांटिक महासागर में खोज निकाला। यह खोज विज्ञान और इतिहास के लिए महत्वपूर्ण थी। टाइटैनिक अपनी पहली यात्रा में 1912 में हिमखंड से टकराकर डूब गया था। अमेरिकी नौसेना ने आर्गो नाम की खास मशीन बनाकर मदद की।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 1912 में डूबा टाइटैनिक जहाज दशकों तक रहस्य बना रहा। लेकिन 1 सितंबर 1985 को अमेरिकी वैज्ञानिक बॉब बैलार्ड और उनकी टीम ने आखिरकार अटलांटिक महासागर की गहराइयों में टाइटैनिक का मलबा खोज लिया। यह खोज विज्ञान और इताहस दोनों के लिए बड़ी उपलब्धि थी।
रिसर्च जहाज नॉर पर लगी स्क्रीन पर अचानक धुंधली-सी तस्वीर आई, उसमें एक बड़ा धातु का सिलेंडर दिखा। टीम ने सोचा कि यह किसी जहाज का बॉयलर है। इसके बाद तुरंत बॉब बैलार्ड को बुलाया गया और जैसे ही उन्होंने तस्वीर देखी उनको समझ आ गया कि यह टाइटैनिक है।
कैसे डूबा टाइटैनिक?
टाइटैनिक अपनी पहली यात्रा में 1912 में आईसबर्ग से टकराकर डूब गया था। उसके मलबे का मिलना एक बड़ा एतिहासिक क्षण था। इस खोज के बाद डॉक्यूमेंट्री, म्यूजियम प्रदर्शनी और यहां तक की 1997 की सुपरहीट फिल्म टाइटैनिक का जुनून भी दुनिया पर छा गया।
बैलार्ड के लिए यह खोज आसान नहीं थी। 1977 में की गई एक कोशिश नाकाम रही थी, जब भारी पाइप टूट गया। इसके बाद बैलार्ड ने सीखा कि गहरे पानी में कैमरे और रोबोटिक वाहनों का इस्तेमाल ज्यादा असरदार होगा।
कैसे ढूंढा गया मलबा?
लेकिन, असली दिक्कत पैसों की थी। आखिरकार अमेरिकी नौसेना ने मदद की। उन्होंने 'आर्गो' नाम की खास मशीन बनाई। असल में यह मिशन दो परमाणु पनडुब्बियों USS थ्रेशर और USS स्कॉर्पियन को ढूंढने के लिए था। टाइटैनिक की खोज केवल एक कवर स्टोरी थी ताकि सोवियत संघ को शक न हो।
बैलार्ड को डर था कि उनका समय सीमित है और फ्रेंच टीम उनसे पहले टाइटैनिक खोज लेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बैलार्ड ने देखा कि भारी सामान सीधे नीचे गिरता है, जबकि हल्की चीजें बहाव में दूर जाती हैं। इसी तर्क से उन्हें मलबा मिल गया।
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