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    यूनुस शासन और बांग्लादेशी सेना के बीच बढ़ा टकराव, स्थिति और क्यों बिगड़ गई?

    Updated: Thu, 16 Oct 2025 10:00 PM (IST)

    बांग्लादेश में यूनुस सरकार और सेना के बीच टकराव बढ़ रहा है, जिसका मुख्य कारण आईसीटी द्वारा सैन्य अधिकारियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करना है। जमात-ए-इस्लामी इस स्थिति का फायदा उठाकर सेना को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। सेना आईआरए के उदय का विरोध कर रही है, क्योंकि उसे डर है कि यह शरिया कानून लागू करेगी। चटगांव यूनिवर्सिटी में चुनाव में धांधली के आरोपों के बाद परिणामों को रोक दिया गया है।

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    बांग्लादेश में तनाव।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार और सेना के बीच तेजी से टकराव बढ़ने लगा है। हालांकि दोनों पक्षों के बीच लंबे समय तक संबंध एवं समन्वय अपेक्षाकृत संतोषप्रद बने रहे, लेकिन अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) द्वारा 24 सैन्य अधिकारियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए जाने के बाद से स्थिति बहुत बिगड़ गई है।

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    आईसीटी ने लोगों को जबरन गायब किए जाने, यातनाएं देने और गुप्त हिरासत में रखने में उनकी कथित संलिप्तता के लिए ये वारंट जारी किए हैं। इन घटनाक्रमों से सेना के भीतर भारी निराशा पैदा हो गई है। सेना प्रमुख जनरल वकर-उज-जमान अपने अधिकारियों के भारी दबाव का सामना कर रहे हैं, और इसी वजह से उन्हें भारत और सऊदी अरब की अपनी यात्राएं तक रद करनी पड़ीं।

    क्या समस्या की जड़?

    दरअसल, समस्या का असल स्त्रोत जमात-ए-इस्लामी है। यह संगठन अपने फायदे के लिए यूनुस पर आईसीटी के इस्तेमाल का दबाव डाल रहा है। आईसीटी की स्थापना शेख हसीना ने की थी। इसे मूल रूप से 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान अपराध करने वालों पर मुकदमा चलाने के लिए गठित किया गया था।

    इन लोगों पर चल रहा मुकदमा

    हालांकि, अब इसका कार्यक्षेत्र बदल गया है और यह शेख हसीना के शासनकाल के दौरान लोगों को जबरन गायब किए जाने और न्यायेतर हत्याओं जैसे अपराध करने वालों पर मुकदमा चला रहा है। विडंबना यह है कि आईसीटी के मुख्य अभियोजक ताजुल इस्लाम, जो पहले जमात के सदस्यों का बचाव कर रहे थे, अब मुख्य अभियोजक हैं। वह अब जमात के कुछ सदस्यों की फांसी का बदला लेने के लिए जमात का काम कर रहे हैं। इसके अलावा, आईसीटी का इस्तेमाल उन लोगों पर मुकदमा चलाने के लिए किया जा रहा है जिन्हें हसीना का करीबी माना जाता है। इस सब प्रकरण में सेना निशाने पर आ गई है और गिरफ्तारी वारंट ने अब सेना के भीतर ही हंगामा मचा दिया है।

    विशेषज्ञों का क्या कहना है?

    बांग्लादेश पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि यूनुस और जमात सेना को तोड़ने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। सेना को यह अंदाजा नहीं था कि विद्रोह का नेतृत्व करने वाले छात्रों द्वारा चुने गए यूनुस, जमात की कठपुतली बन जाएंगे। कई सैन्य अधिकारी आईएसआइ के पिट्ठू बन गए हैं। जमात किसी भी कीमत पर सेना की जगह कट्टरपंथी इस्लामिक रिवोल्यूशनरी आर्मी (आईआरए) को लाना चाहती है।

    सेना कर रही विरोध

    सेना इस कदम का विरोध कर रही है क्योंकि उसे पता है कि आइआरए जैसी संस्था बांग्लादेश के संविधान का पालन नहीं करेगी और इसके बजाय शरिया कानून लागू करने का रास्ता तैयार करेगी।

    चटगांव यूनिवर्सिटी के चुनाव में धांधली के आरोप, रोके परिणाम

    चटगांव यूनिवर्सिटी ने गुरुवार को मतदान में अनियमितताओं और चुनाव के बाद हुई हिंसा के आरोपों के बाद दो हालों के छात्र संघ चुनाव परिणामों को स्थगित कर दिया। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, कट्टरपंथी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी की छात्र शाखा, इस्लामी छात्र शिबिर ने जीत का दावा किया था।

    शिबिर समर्थित उम्मीदवारों ने चटगांव यूनिवर्सिटी केंद्रीय छात्र संघ चुनाव (सीयूसीएसयू) में उपाध्यक्ष, महासचिव और 22 अन्य पदों सहित प्रमुख पदों पर जीत हासिल की।

    चुनाव आयोग के सदस्य-सचिव एकेएम अरिफुल हक ने कहा कि यूनिवर्सिटी के आतिश दीपांकर श्रीज्ञान हाल और सुहरावर्दी हाल के नतीजे पुनर्मतगणना के बाद प्रकाशित किए जाएंगे।

    (न्यूज एजेंसी आईएएनएस के इनपुट के साथ)

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