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    'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें डिग्री दूंगी', इस यूनिवर्सिटी की फुटबॉल कोच क्यों बनी 'वैम्पायर'?

    Updated: Sat, 19 Jul 2025 11:52 AM (IST)

    ताइवान में एक यूनिवर्सिटी की महिला फुटबॉल कोच पर छात्राओं को डिग्री के बदले ब्लड डोनेशन के लिए मजबूर करने का आरोप लगा है। सोशल मीडिया पर कोच की आलोचना हो रही है। एक छात्रा ने कोच झोउ ताई-यिंग पर ब्लड डोनेशन के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया है। यूनिवर्सिटी ने कोच को बर्खास्त कर दिया है।

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    फुटबॉल कोच पर लगा छात्रों का जबरदस्ती ब्लड लेने का आरोप। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ताइवान में एक ब्लड डोनेशन घोटाला सामने आया है, जहां एक यूनिवर्सिटी की महिला फुटबॉल कोच पर छात्राओं ने डिग्री के बदले उन्हें ब्लड डोनेशन करने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया है। सोशल मीडिया पर इस इस कोच वैम्पायर बोला जा रहा है और लोग जमकर आलोचना कर रहे हैं।

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    साथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस कांड के बाद विवाद खड़ा हो गया है। यह घटना तब सामने आई, जब जियान नाम की एक छात्रा ने सर्वजनिक रूप से कोच पर आरोप लगाए। नेशनल ताइवान नॉर्मल यूनिवर्सिटी (एनटीएनयू) में पढ़ने वाले जियान ने कहा कि छात्रों को उनकी कोच झोउ ताई-यिंग ने बल्ड डोनेशन के लिए मजबूर किया था।

    छात्रा ने क्या लगाए आरोप?

    जियान ने आरोप लगाया, "कभी-कभी तो वो ब्लड डोनेशन के लिए लगातार 14 दिनों तक बैठी रहती थी। कभी-कभी तो दिन में तीन बार, सुबह 5 बजे लेकर रात 9 बजे तक। एस समय तो ऐसा आया जब सुई डालने के लिए नस तक नहीं मिल रही थी। झोउ ताई-यिंग ने छात्राओं को असीमित संख्या में ब्लड डोनेशन कैंप में हिस्सा लेने के लिए मजबूर किया।" झोउ ताई-यिंग ताइवान फुटबॉल प्रोग्राम की एक प्रमुख हस्ती हैं।

    यूनिवर्सिटी ने कोच को किया निलंबित

    छात्रा का दावा है कि ब्लड अनट्रेंड लोग ले रहे थे और दावा कर रहे थे कि इसका इस्तेमाल कैंपस में रिचर्स एक्सपेरिमेंट के लिए किया जाएगा। विवाद बढ़ने पर यूनिवर्सिटी ने 13 जुलाई को घोषणा की कि झोउ को बर्खास्त कर दिया गया है और उन्हें किसी भी खेल टीम का नेतृत्व करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है।

    दरअसल, यूनिवर्सिटी में छात्रों को ग्रेजुएट होने के लिए एकेडमिक क्रेडिट हासिल करना जरूरी था और 32 ऐसे छात्रा थे जो इन ब्लड डोनेशन कैंप्स से बंधे थे। जिन छात्रों ने कोच की बात नहीं मानी, उन्हें ग्रेजुएट न होने का जोखिम उठाना पड़ा।

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