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    नॉर्थ कोरिया में विदेशी टीवी शोज देखने पर दी जा रही फांसी, तानाशाह किम जोंग के फरमान से मचा हाहाकार

    Updated: Sat, 13 Sep 2025 09:00 PM (IST)

    उत्तरी कोरिया में विदेशी टीवी शो और फिल्में देखने या वितरित करने वालों को फांसी की सजा दी जा रही है खासकर दक्षिण कोरियाई ड्रामा के लिए। संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने निजी स्वतंत्रता पर सख्त नियंत्रण लगाया है। निगरानी प्रणाली सख्त हो गई है नई तकनीक का उपयोग किया जा रहा है और सजाएं कठोर हो गई हैं।

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    नॉर्थ कोरिया में विदेशी टीवी शोज देखने पर दी जा रही फांसी (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नॉर्थ कोरिया में विदेशी टीवी शोज और फिल्में देखने या लोगों तक पहुंचाने वालों को फांसी दी जा रही है। इसमें सबसे ज्यादा साउथ कोरियाई ड्रामे शामिल हैं, जिन्हें लोग गुपचुप तरीके से देखते हैं। संयुक्त राष्ट्र की नई मानवाधिकार रिपोर्ट ने बताया कि सरकार ने हाल के वर्षों में निजी स्वतंत्रताओं पर जबरदस्त रोक लगाई है।

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    यह रिपोर्ट 14 पन्नों की है इसमें 300 से ज्यादा ऐसे गवाहों और पीड़ितों से बातचीत की गई है जो उत्तर कोरिया से भागकर बाहर निकले। इसमें साफ कहा गया है कि निगरानी सिस्टम अब और भी सख्त हो गया है, नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है और सजाएं पहले से कहीं ज्यादा कठोर हो चुकी हैं।

    कैसे दी जा रही है सजा?

    संयुक्त राष्ट्र ने इसे दुनिया का सबसे प्रतिबंधित देश बताया है। रिपोर्ट के अनुसार, 2015 के बाद से वहां के नागरिकों की जिंदगी के हर हिस्से पर नियंत्रण बढ़ा दिया गया है। UN के नॉर्थ कोरिया मानवाधिकार कार्यालय के प्रमुख जेम्स हीनन ने बताया कि कोविड-19 के समय से सामान्य अपराध और राजनीतिक अपराध दोनों के लिए फांसी की सजाओं की संख्या बढ़ गई है।

    कई लोगों को सिर्फ विदेशी टीवी सीरीज खासकर कोरियाई ड्रामे बांटने के लिए मौत की सजा दी गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों तक को जबरन मजदूरी में झोंक दिया जाता है। इन्हें शॉक ब्रिगेड नाम के समूहों में खदानों और निर्माण कार्य जैसे खतरनाक कामों में लगाया जाता है।

    नॉर्थ कोरिया ने किया खारिज

    ये ज्यादातर गरीब परिवार के बच्चे होते हैं क्योंकि अमीर रिश्वत देकर अपने बच्चों को बचा लेते हैं। उत्तर कोरिया ने संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है और कहा है कि वह इस तरह के आरोपों को मान्यता नहीं देते।

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