'लिपुलेख व्यापार समझौता रद करें भारत-चीन', नेपाल ने कर दिया बड़ा दावा; ये बताई वजह
नेपाल के सत्ताधारी दल सीपीएन-यूएमएल ने लिपुलेख दर्रे से भारत और चीन के बीच व्यापार समझौते को रद्द करने की मांग की है। नेपाल का दावा है कि लिपुलेख उसका इलाका है जिसे भारत खारिज कर चुका है। पार्टी ने सरकार से कूटनीतिक प्रयासों के जरिये मुद्दे को हल करने का आग्रह किया है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नेपाल के सत्ताधारी दल सीपीएन-यूएमएल ने लिपुलेख दर्रे के जरिये भारत और चीन के बीच शुरू होनेवाले सीमापार व्यापार समझौते को रद करने की मांग की है। गौरतलब है कि भारत और चीन ने लिपुलेख दर्रे के अलावा दो अन्य ट्रांजिट प्वाइंट से सीमापार व्यापार शुरू करने पर सहमति जताई थी।
नेपाल का दावा है कि लिपुलेख उसका अपना इलाका है, जिसे भारत ये कहते हुए खारिज कर चुका है कि न तो ये तर्कसंगत है और न ही ये दावा ऐतिहासिक तथ्यों और सुबूतों पर आधारित है। पार्टी ने नेपाल सरकार से इस मुद्दे को उच्च स्तरीय कूटनीतिक प्रयासों के जरिये हल कराया जाना चाहिए और जोर दिया कि काली नदी का पूर्वी इलाका, जिसमें कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख शामिल हैं, ये नेपाल के अधिकार क्षेत्र में आता है।
28 बिंदुओं वाला प्रस्ताव पास हुआ
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में पांच से सात सितंबर के बीच ललितपुर जिले की गोदावरी नगरपालिका में हुए सीपीएन-यूएमएल के दूसरे राष्ट्रीय अधिवेशन में पास किए गए 28 बिंदुओं वाले प्रस्ताव में ये मुद्दा भी शामिल था। प्रस्ताव में कहा गया है कि चीन दौरे पर प्रधानमंत्री ओली ने लिपुलेख मुद्दे पर चीन के सामने अपनी आपत्ति रखी है और ये मामला नेपाल की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को प्रमुखता देता है।
गौरतलब है कि साल 2020 में पहली बार नेपाल ने अपने राजनीतिक नक्शे में सीमा विवाद को उभारा था। इसमें कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को नेपाल का हिस्सा बताया गया था। भारत ने इन दावों को मजबूती के साथ खारिज किया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत की स्थिति बिल्कुल स्थिर और स्पष्ट है।
भारत और चीन के बीच लिपुलेख दर्रे के माध्यम से 1954 से कारोबार हो रहा है और दशकों से ये यूं ही जारी रहा है। कोरोनाकाल में ये कारोबार रुक गया था, जिसे फिर से शुरू करने पर दोनों देशों ने सहमति जताई है।
(न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)
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