सोशल मीडिया बैन से सुलगा नेपाल... 7 दिन की डेडलाइन के बाद भड़के Gen-Z आंदोलन की Inside Story
Nepal Social Media Ban नेपाल में सोशल मीडिया पर सरकार के नियंत्रण के विरोध में युवाओं का प्रदर्शन उग्र हो गया है। सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों को बैन करने का आदेश दिया था जिसका Gen-Z ने विरोध किया। प्रदर्शनकारियों ने संसद परिसर में घुसने की कोशिश की जिसके बाद सुरक्षाबलों से झड़प हुई।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सोमवार को जब मीडिया की स्क्रीन देश-दुनिया की टॉप खबरों की तलाश कर रही थी, तभी नेपाल से ऐसी तस्वीरें सामने आने लगी जिसमें सड़कों पर प्रदर्शन करता युवाओं का हुजूम उमड़ा दिख रहा था। इसकी हेडलाइन बनी- नेपाल का Gen-Z आंदोलन (Gen-Z Protest)।
सुबह सूरज उगने से लेकर रात में चांद निकलने तक की जिंदगी सोशल मीडिया पर बिताने वाले Gen-Z जब नेपाल की सड़कों पर प्रदर्शन करने के लिए उतरे, तो उसकी वजह भी सोशल मीडिया ही बनी। नेपाल सरकार का एक फैसला, जिसने Gen-Z के रोजमर्रा के जीवन की रीढ़ सोशल मीडिया को ही उनसे छीन लिया।
अब तक 14 लोगों की मौत
लेकिन नेपाल के इन Gen-Z का आंदोलन सिर्फ प्रदर्शन तक ही सीमित नहीं था। देखते ही देखते प्रदर्शन उग्र हो गया। प्रदर्शनकारियों ने नेपाल के संसद कॉम्प्लेक्स में घुसने की कोशिश की। लिहाजा सुरक्षाबलों से उनकी झड़प हुई और फिर बल प्रयोग किया गया। राजधानी में सेना उतारनी पड़ी, लेकिन प्रदर्शनकारी तस से मस नहीं हुए।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक, इन प्रदर्शनों में कम से कम 14 लोग मारे गए हैं और दर्जनों लोग घायल हुए हैं। लेकिन नेपाल में इस वक्त जो कुछ भी हो रहा है, इसकी आग एक दिन में नहीं भड़की। चिंगारी उस वक्त ही लग गई थी, जब नेपाल सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों के लिए डेडलाइन जारी कर दी थी।
सरकारी नियंत्रण चाहते थे ओली
लेकिन विरोधी की कहानी इससे भी कुछ दिन बुनी जा चुकी थी। नेपाल में सरकार के आलोचक कहते हैं कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली सत्ता संभालने के बाद से ही अभिव्यक्ति पर सरकारी नियंत्रण करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन उनकी पार्टी के भीतर ही इतना विरोध होता रहा है कि ओली के मंसूबे ज्यादा परवान नहीं चढ़ सके।
केपी शर्मा ओली की सरकार पर भ्रष्टाचार के भी गंभीर आरोप लगते रहे हैं। इस कारण भी नेपाल के लोगों में उनके खिलाफ गुस्सा है। लेकिन नेपाल की सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के बाद ओली को सरकारी दबाव बनाने की आजादी मिली, जिसमें कोर्ट ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को रजिस्टर करने और जवाबदेह बनाने का निर्देश दिया था।
कंपनियों को दिया था अल्टीमेटम
बस फिर क्या था। सरकारी फरमान जारी कर दिया गया और साथ ही दे दी गई एक हफ्ते की डेडलाइन। फरमान ये कि नेपाल में संचालित हो रहे सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स एक हफ्ते के भीतर सरकार के नियमों के तहत रजिस्टर कर लें। ऐसा नहीं करने पर उन पर बैन (Social Media Ban) लगाने की चेतावनी दी गई। वाइबर और टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्म्स ने तो बिना समय गंवाए रजिस्ट्रेशन पूरा कर लिया, लेकिन मेटा और गूगल समेत दर्जनों कंपनियों ने इसे ज्यादा सीरियसली नहीं लिया।
नेपाल के Gen-Z इस सरकारी आदेश के खिलाफ थे। लिहाजा सोशल मीडिया पर उनका गुस्सा फूट पड़ा। किसी ने इसे तुगलकी फरमान कहा, तो किसी ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। इधर डेडलाइन पूरी हुई, तो सख्ती दिखाने के लिए नेपाल सरकार ने अन-रजिस्टर्ड प्लेटफॉर्म्स को बैन करने का आदेश जारी कर दिया। बैन से एक दिन पहले नेपाल के तमाम सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स और आम युवाओं ने प्रदर्शन के लिए एकजुटता का आह्वान किया।
कई शहरों में लगा कर्फ्यू
जिस टिकटॉक ने नेपाल में ऑपरेशन जारी रखने के लिए रजिस्ट्रेशन पूरा कर लिया था, उसे ही सहारा बनाकर लोगों से प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की जाने लगी। सोमवार की सुबह काठमांडू की सड़कें Gen-Z प्रदर्शनकारियों से पट गईं। सरकार के खिलाफ प्रदर्शन और नारेबाजी की जाने लगी। सुरक्षाबलों ने लाठीचार्ज किया, आंसू गैस के गोले दागे, रबर की गोलियां चलाईं, लेकिन Gen-Z डटे हुए हैं।
नेपाल के कई शहरों में कर्फ्यू (Kathmandu Curfew) लगा दिया गया है। भारत से सटी नेपाल सीमा पर चौकसी बढ़ा दी गई है। नेपाल की 2.9 करोड़ आबादी का लगभग 7.5 फीसदी विदेशों में रहता है। अपने परिजनों से संपर्क में रहने के लिए सोशल मीडिया ही उनके पास एकलौता जरिया है। दूसरी तरफ, नेपाल के लोगों को लग रहा है कि ओली सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास कर रही है। अब प्रदर्शनों के आगे नेपाल की सरकार झुकेगी या Gen-Z पीछे हट जाएंगे, इसका जवाब तो भविष्य के गर्भ में ही छिपा है।
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