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    गृह युद्ध के बाद म्यांमार में चुनाव, वोटिंग सेंटर पर नहीं पहुंच रहे वोटर; सेना की पकड़ होगी कमजोर?

    Updated: Sun, 28 Dec 2025 12:42 PM (IST)

    म्यांमार में लगभग पांच साल बाद हो रहे चुनाव को सैन्य शासन को वैधता देने का प्रयास माना जा रहा है। 2021 में सेना ने आंग सान सू ची की सरकार हटा दी थी, ज ...और पढ़ें

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    म्यांमार में पांच साल बाद हो रहे चुनाव। (फोटो- रॉयटर्स)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। म्यांमार में करीब पांच साल चुनावी प्रक्रिया हो रही है। म्यांमार में इस चुनावी प्रक्रिया को सैन्य शासन को वैधता देने का प्रयास माना जा रहा है। बता दें कि 2021 में सेना ने आंग सान सू ची की सरकार को हटाकर सत्ता संभाली थी, जिससे देश गृहयुद्ध में धकेल दिया गया।

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    म्यांमार में आज हो रहे चुनाव में अत्यधिक पाबंदियों के कारण काफी कम वोटर मताधिकार का इस्तेमाल करने पहुंचे। बता दें कि म्यांमार के पूर्व नागरिक नेता आंग सान सू की अभी भी जेल में हैं। वहीं, उनकी बहुत लोकप्रिय पार्टी को भंग कर दिया गया है और वह चुनाव में हिस्सा नहीं ले रही थी।

    इस आम चुनाव में सेना समर्थक यूनियन सॉलिडेरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी के सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने की व्यापक उम्मीद है, जिसे आलोचक मार्शल लॉ का नया रूप बता रहे हैं। बता दें कि लगभग 5 करोड़ की आबादी वाला यह देश गृहयुद्ध से जूझ रहा है। वहीं, विद्रोहियों के कब्जे वाले इलाकों में वोटिंग नहीं होगी।

    वोटिंग की रफ्तार काफी कम

    बता दें कि साल 2020 में पिछले चुनाव में पोलिंग स्टेशनों के बाहर वोटरों की लंबी लाइनें लगी थीं। हालांकि, उस चुनाव को सेना ने कुछ महीने बाद अमान्य घोषित कर दिया था। इसके बाद सेना ने आंग सान सू की को सत्ता से हटा दिया और शासन पर कब्जा कर लिया।

    इसके करीब 5 साल बाद म्यांमार में हो रहे चुनाव में वोट देने वालों की संख्या में काफी कमी देखने को मिल रही है। शानदार सुले पगोडा के पास शहर के एक स्टेशन पर शुरुआती वोटरों की तुलना में पत्रकार और पोलिंग स्टाफ ज्यादा थे। बता दें कि यह वह जगह है, जहां पर तख्तापलट के बाद लोकतंत्र समर्थक बड़े विरोध प्रदर्शन हुए थे। 

    म्यांमार में दो चरण के मतदान जनवरी में होंगे

    म्यांमार में रविवार को देश के 330 कस्बों में से 102 में मतदान हो रहा है। इसके बाद 11 जनवरी और 25 जनवरी को मतदान के और चरण होंगे। वहीं, देश के 65 कस्बे ऐसे बचेंगे जहां पर जातीय गुरिल्ला समूहों और हथियारबंद गुटों के साथ चल रहे संघर्ष के कारण मतदान नहीं होगा।