बलूचिस्तान में 'संस्थागत अपहरण' मामलों के खिलाफ भड़का आंदोलन, गु्स्साए परिजनों ने हाइवे किया जाम
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में आए दिन जबरन अगवा किए जा रहे लोगों को लेकर नाराजगी बढ़ती जा रही है। एक परिवार के चार सदस्यों को उठाने के विरोध में स ...और पढ़ें

बलूचिस्तान में 'संस्थागत अपहरण' मामलों के खिलाफ भड़का आंदोलन (फोटो- एक्स)
एएनआइ, बलूचिस्तान। पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में आए दिन जबरन अगवा किए जा रहे लोगों को लेकर नाराजगी बढ़ती जा रही है। एक परिवार के चार सदस्यों को उठाने के विरोध में स्वजनों ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) हाइवे पर धरना दे दिया है।
गुरुवार को आंदोलन के दूसरे दिन भी इस हाइवे पर आवागमन बाधित रहा। वहीं महिलाओं को अगवा करने के विरोध में पिछले पांच दिनों से बलोच यकजहती कमेटी (बीवाईसी) ने भी समूचे बलूचिस्तान में आंदोलन चला रखा है।
बता दें कि बलूचिस्तान में पुलिस प्रशासन पर ही युवाओं और महिलाओं को जबरन उठाने के आरोप लगते रहे हैं। राजनीतिक दलों का कहना है कि बलूचिस्तान में अपहरण अब संस्थागत रूप ले चुका है।
मीडिया आउटलेट, द बलूचिस्तान पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक पीडि़त परिवार ने कीच जिले के कार्की तेजाबन और हेरोंक के बीच सड़क जाम कर रखी है। इससे तुरबत, क्वेटा, पंजगुर, आवारन, कोलवाह और होशाप से आनेवाले वाहन आगे नहीं जा पा रहे हैं।
इससे कई किलोमीटर लंबा जाम लग गया है। बताया जाता है कि 27 साल की हानी दिलवाश, जो आठ महीने की गर्भवती है, 17 साल की हैरनिसा पुत्री अब्दुल वाहिद, 18 साल के मुजाहिद दिलवाश और फरीद एजाज को जबरन उठा लिया गया।
स्वजनों का दावा है कि हानी और हैरनिसा को इस हफ्ते की शुरुआत में हुब चौकी में तड़के छापा मारकर अगवा किया गया, जबकि दो अन्य को कीच जिले से उठाया गया।
मंगलवार की रात तुरबत के असिस्टैंट कमिश्नर ने आंदोलनकारियों से मौके पर पहुंचकर बात की। हालांकि, स्वजनों का कहना है कि अगवा किए गए लोगों को छोड़ा नहीं गया है। जब तक सभी छोड़े नहीं जाएंगे, तब तक सीपीईसी हाइवे पर जाम लगा रहेगा।
बीवाईसी नेता सम्मी दीन बलोच ने कहा कि प्रांत में महिलाओं और लड़कियों को अगवा किए जाने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इसके पीछे सोची-समझी साजिश काम कर रही है।
अब ये समस्या सीमा पार कर चुकी है। हानी दिलवाश और हैरनिसा का अब तक बरामद न हो पाना ये दिखाता है कि बलूचिस्तान में महिलाएं वाकई सुरक्षित नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि इसके चलते परिवारों पर बहुत गंभीर मनोविज्ञानी दबाव पड़ रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि संविधान और कानून का दुरुपयोग दमनचक्र चलाने में किया जा रहा है। पीड़ित लोगों के सामने आंदोलन के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा है।

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