अविभाजित भारत में जन्म, बांग्लादेश की पहली महिला पीएम बनीं... ऐसा रहा खालिदा जिया का सफर
खालिदा जिया का सफर अविभाजित भारत में जन्म से शुरू होकर बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने तक का रहा। उन्होंने चार दशकों से अधिक के राजनीतिक कर ...और पढ़ें

पाकिस्तानी सेना में कप्तान रहे जियाउर रहमान से विवाह किया था
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अविभाजित भारत में जन्म से लेकर बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने तक का खालिदा जिया का सफर उन्हें इस दक्षिण एशियाई देश की राजनीति में एक प्रमुख हस्ती के रूप में स्थापित करता है। उन्होंने अपने चार दशक से ज्यादा लंबे राजनीतिक करियर में तीन बार प्रधानमंत्री के रूप में बांग्लादेश का नेतृत्व किया तो भ्रष्टाचार के मामले में जेल तक जाना पड़ा था।
पिछले वर्ष शेख हसीना सरकार के पतन के बाद जेल से रिहा हुई थीं। उनका रुख भारत विरोधी था। खालिदा का जन्म 15 अगस्त, 1945 को पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में हुआ था, जो अविभाजित भारत के ग्रेटर दिनाजपुर का हिस्सा था। भारत विभाजन के बाद वह अपने परिवार के साथ पूर्वी पाकिस्तान चली गई थीं। 1960 में उन्होंने पाकिस्तानी सेना में कप्तान रहे जियाउर रहमान से विवाह किया था।
संकट में किया नेतृत्व
जियाउर ने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी बलों के खिलाफ विद्रोह किया। वह 1977 में बांग्लादेश के राष्ट्रपति बने और अगले वर्ष बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की स्थापना की थी। 30 मई, 1981 को जियाउर रहमान की हत्या के बाद बीएनपी गंभीर संकट में पड़ गई थी। तब पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने खालिदा से पार्टी का नेतृत्व करने का आग्रह किया था।
पति की मृत्यु के बाद संभाली बीएनपी की कमानपति की हत्या के कुछ समय बाद खालिदा जिया ने राजनीति में प्रवेश किया था। उस समय राजनीति उनके लिए बिल्कुल नई थी। उन्होंने 10 मई, 1984 को बीएनपी की कमान संभाली थी। तब से 41 वर्षों तक वह पार्टी की अध्यक्ष रहीं। धीरे-धीरे देश की सबसे ताकतवर नेताओं में शामिल हो गईं और 1991 में देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं।
इसके बाद 1996 के चुनाव में जीत के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री का पदभार संभाला। हालांकि उनका यह कार्यकाल महज 12 दिनों का रहा। इसके बाद फिर 2001 से 2006 तक उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में देश का नेतृत्व किया था।
भारत से तनावपूर्ण रहे खालिदा के संबंध
भारत के साथ खालिदा के संबंध तनावपूर्ण रहे। उन्होंने 1972 की भारत-बांग्लादेश मैत्री संधि को विरोध किया था। जबकि 1996 की गंगा जल साझा संधि को गुलामी का सौदा करार दिया था। चटगांव हिल ट्रैक्ट्स शांति समझौते का भी विरोध किया और आशंका जताई कि इससे यह क्षेत्र भारत के प्रभाव में चला जाएगा।
तीस्ता जल बंटवारे, सीमा प्रबंधन और अवैध घुसपैठ जैसे मुद्दों पर भी उनकी सरकार का रुख टकराव भरा रहा। अपने कार्यकाल के दौरान खालिदा ने भारत के बजाय पाकिस्तान ओर चीन के साथ संबंधों को प्राथमिकता दी। उनकी सरकार पर भारत विरोधी तत्वों को बढ़ावा देने के भी आरोप लगे थे। उन्होंने प्रधानमंत्री रहते 1992 और 2006 में भारत दौरा भी किया था।
भ्रष्टाचार मामले में हुई थी जेल की सजा
खालिदा जिया ने सरकार में रहते मुक्त बाजार, अर्थव्यवस्था, निजीकरण और बुनियादी ढांचों के विकास पर जोर दिया था। हालांकि उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार, राजनीतिक हिंसा, प्रशासनिक कमजोरियों और कट्टरपंथी तत्वों को बढ़ावा देने जैसे गंभीर आरोप भी लगे थे। खालिदा सरकार गिरने के बाद जब शेख हसीना सत्ता में आईं तो उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले दर्ज किए गए और 2018 में उन्हें भ्रष्टाचार के एक मामले में पांच वर्ष जेल की सजा सुनाई गई थी।
इसके बाद एक अन्य मामले में सात वर्ष की जेल हुई थी। छह अगस्त, 2024 को वह रिहा हुई थीं। बांग्लादेश में खालिदा जिया और शेख हसीना के बीच बहुत ज्यादा राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता थी।

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