यूनुस राज में 'कसाई' बना तंत्र? पुलिस की गिरफ्त में था दीपू, फिर कट्टरपंथियों के हाथ कैसे पहुंचा; खौफनाक सच
Bangladesh Hindu Minority Crisis Deepens: बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद अराजकता चरम पर है। मैमनसिंह में हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की बर्बर हत्या और उ ...और पढ़ें

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बांग्लादेश में निरंतर बढ़ती अराजकता और हिंसा से देश के हिंदू अल्पसंख्यकों का जीवन गहरे संकट में है। बीते सप्ताह की घटना ने सबका दिल दहला दिया, जब दीपू चंद्र दास नाम के एक हिंदू युवक को निर्दयतापूर्वक सामूहिक रूप से पीट-पीट कर सरेआम मार डाला गया और मरणोपरांत उसे पेड़ से लटकाकर जला दिया गया।
बांग्लादेश के मैमनसिंह जिले के भालुका में इस हिंदू युवक की निर्मम हत्या ने सभी को व्यथित कर दिया है। बता दें कि पिछले दिनों शेख हसीना गुट के धुर विरोधी ‘इंकलाब मंच’ के नेता शरीफ उस्मान हादी की ढाका में अज्ञात लोगों द्वारा गोली मार कर हत्या कर देने के बाद से दोबारा एक भीषण हिंसा भड़क गई है।
हमेशा की तरह हिंसा में वहां के हिंदुओं और दूसरे अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है, जिसमें उनके घरों में लूटपाट, आगजनी और उन पर सामूहिक अत्याचार किए जा रहे हैं। वैसे बांग्लादेश में हिंदुओं की हत्या आम बात है।
स्वतंत्रता से लेकर आज तक वहां अल्पसंख्यक हिंदू समाज के साथ भेदभावपूर्ण रवैया और उनके अधिकारों की हत्या हर दिन देखी गई है। बांग्लादेश में फैले अत्याचार की सर्वाधिक शिकार वहां की अल्पसंख्यक हिंदू महिलाएं हैं, जिन्हें सदियों से धर्म के आधार पर प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है।

2025 में 342 दुष्कर्म के मामले दर्ज हुए
हाल ही में वहां एक मानवाधिकार कार्यकर्ता ने सांख्यिकी आंकड़ों में यह दर्शाया कि प्रधानमंत्री शेख हसीना के अपदस्थ किए जाने के बाद से वर्ष 2025 के प्रथम तीन महीनों में महिलाओं के साथ दुष्कर्म के 342 मामले दर्ज हुए, जिनमें से अधिकतम की आयु 18 वर्ष से कम है। महिलाओं के साथ दुराचार की घटनाओं की संख्या इससे कहीं अधिक है।
ऐसा ज्ञात है कि बड़ी संख्या में महिलाएं भय के कारण इस प्रकार की घटना को उजागर करने से बचती हैं और उनको बांग्लादेश की पुलिस और न्याय व्यवस्था में तनिक भी विश्वास नहीं है। मैमनसिंह के जघन्य हत्याकांड पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

भारत ने अल्पसंख्यकों की स्थिति पर जताई चिंता
भारत में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आधिकारिक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। उन्होंने यह भी कहा घटना से संबंधित वीडियो से यह जानकारी मिल रही है कि मारे जाने से पहले दीपू चंद्र दास पुलिस के पास था। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि कहीं वहां की पुलिस ने ही दीपू को कट्टरपंथियों को सौंप दिया हो?
इतना ही नहीं, हादी उस्मान की हत्या के बाद से भारत से जुड़े अनेक मिशनों के विरुद्ध हिंसक प्रदर्शन भी जारी हैं और भारत के विरोध में खुलकर नारे लगाए जा रहे हैं। बांग्लादेश में हिंसा ने मानवाधिकार की धज्जियां उड़ा दी हैं।
विश्व के अनेक देश इस गंभीर संकट को देख रहे हैं, परंतु यहां की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने अभी तक इसके लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया है। वे इन अमानवीय दृश्यों के मूक दर्शक हैं और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति करने में मशगूल हैं।

पिछले दिनों बांग्लादेश की नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) के नेता हसनत अब्दुल्ला ने एक विवादित बयान में भारत से पूर्वोत्तर को अलग करने की और अलगाववादियों को शरण देने की धमकी दी थी।
इस पर भारत के विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेश के उच्चायोग को तलब कर तीखी प्रतिक्रिया दी थी। ऐसी लगातार बढ़ती चरमपंथी घटनाओं के बाद भी जब मोहम्मद यूनुस अपने देश के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं तो उनकी इन घटनाओं पर मौन स्वीकृति दिखाई पड़ती है।
क्या यूनुस सरकार दे रही चरमपंथियों को बढ़ावा
शेख हसीना इस बात की पुष्टि करती हैं कि देश के सभी चरमपंथियों को मोहम्मद यूनुस का समर्थन और संरक्षण प्राप्त है। इस संदर्भ में शेख हसीना के बेटे और सलाहकार सजेब वाजेद जाय ने भी अंतरिम सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
सजेब वाजेद जाय ने कहा-
ढाका में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार देश को इस्लामी शासन की ओर ले जा रही है और इन सब हालातों से भारत की सुरक्षा को भी खतरा है, क्योंकि यहां जमात-ए-इस्लामी जैसे अनेक संगठन खुलकर भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं।
उन्होंने इस बात का भी दावा किया कि बांग्लादेश में आतंकी प्रशिक्षण शिविर फिर से सक्रिय हो गए हैं और यहां अनेक आतंकियों को संरक्षण दिया जा रहा है। बांग्लादेश में अराजकता, चरमपंथ, भीड़ की हिंसा और नरसंहार की अनगिनत घटनाओं के बाद भी मानवाधिकार की वैश्विक संस्थाएं मौन हैं।

बांग्लादेश पर संयुक्त राष्ट्र भी शांत
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों को संरक्षित करने के लिए जिस संस्था की स्थापना हुई थी, वह संस्था संयुक्त राष्ट्र भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करने में कोई भी रुचि नहीं दिखा रही है।
एक मानवाधिकार संस्था के अनुसार, वर्ष 1951 की जनगणना में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में हिंदुओं की जनसंख्या 22 प्रतिशत थी जो अनेक नरसंहारों के बाद आज घटकर महज आठ प्रतिशत रह गई है।

मोहन भागवत ने क्या कहा?
हाल की अनेक घटनाओं को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी अपनी टिप्पणी में कहा,
दुनिया भर के सभी हिंदुओं को आगे आकर बांग्लादेश के हिंदुओं की मदद करनी चाहिए। हमें भी अपनी सीमा के अंदर से उनकी जितनी हो सके, मदद करनी चाहिए।
भारत अपने पड़ोसी देश में फैली अराजकता और वहां के अल्पसंख्यकों की दुर्दशा को लेकर बहुत चिंतित है। ऐसे में मानवाधिकारों पर बात रखने वाले और चिंता व्यक्त करने वाले सभी संगठनों को आगे आकर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से प्रश्न करना चाहिए और इस संकट के निदान के लिए कोई ठोस पहल करनी चाहिए।

बांग्लादेश आज अराजकता में डूब गया है। भारत के लिए भी यह खतरा बन रहा है। शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से वहां अस्थिरता बढ़ गई है। हाल ही में एक छात्र नेता की हत्या के बाद स्थिति और बिगड़ गई।
अराजक तत्वों ने सड़कों पर उतरकर हिंसा फैलाई, समाचार पत्रों के कार्यालयों और सांस्कृतिक केंद्रों को जला दिया एवं भारतीय उच्चायोग का घेराव किया, जिससे वीजा सेवा प्रभावित हुई। वहीं दूसरी ओर, अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं, जिससे बांग्लादेश में उनका जीवन एक बार फिर संकट में है।

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