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    विपक्ष के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार सुदर्शन रेड्डी पर शाह ने साधा था निशाना, अब SC के 18 पूर्व जजों ने बयान की निंदा की

    18 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने गृह मंत्री अमित शाह द्वारा उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी पर सलवा जुडूम फैसले को लेकर किए गए हमले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। जजों ने कहा कि अमित शाह की व्याख्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर असर डाल सकती है। कांग्रेस ने भी शाह पर हमला बोला। जजों ने कहा कि रेड्डी पर नक्सलवाद का समर्थन करने का आरोप गलत है और ऐसी बयानबाजी से बचा जाना चाहिए।

    By Digital Desk Edited By: Chandan Kumar Updated: Mon, 25 Aug 2025 04:08 PM (IST)
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    सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज कुरियन जोसेफ, मदन बी. लोकुर और जे. चेलमेश्वर जैसे जजों ने निंदा की है।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के विपक्ष के उप-राष्ट्रपति उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी पर सलवा जुडूम फैसले को लेकर किए गए हमले को 18 रिटायर्ड जजों ने "दुर्भाग्यपूर्ण" बताया है। इन जजों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज कुरियन जोसेफ, मदन बी. लोकुर और जे. चेलमेश्वर जैसे बड़े नाम शामिल हैं।

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    उन्होंने कहा कि अमित शाह का सुप्रीम कोर्ट के फैसले की "गलत और पक्षपातपूर्ण" व्याख्या न्यापालिका की स्वतंत्रता पर ठंडा असर डाल सकती है। जजों ने सलाह दी कि बेकार की बयानबाजी से बचा जाना चाहिए।

    कांग्रेस ने इस बयान का हवाला देते हुए अमित शाह पर तीखा हमला बोला और कहा कि भारत में अभी भी कुछ लोग हैं जो उनकी गलत बातों का जवाब देने की हिम्मत रखते हैं। केंद्रीय गृह मंत्री ने सुदर्शन रेड्डी पर "नक्सलवाद को समर्थन" देने का आरोप लगाया था और दावा किया था कि अगर सलवा जुडूम का फैसला नहीं आता तो 2020 तक नक्सलवाद खत्म हो गया होता।

    'सलवा जुडूम फैसले का गलत मतलब निकाला गया'

    रिटायर्ड जजों ने अपने बयान में कहा, "केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का सलवा जुदुम मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को गलत तरीके से पेश करना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह फैसला कहीं से भी नक्सलवाद या उसकी विचारधारा का समर्थन नहीं करता, न तो स्पष्ट रूप से और न ही इसके मजमून से।"

    इस बयान पर सुप्रीम कोर्ट के सात पूर्व जजों- ए.के. पटनायक, अभय ओका, गोपाला गौड़ा, विक्रमजीत सेन, कुरियन जोसेफ, मदन बी. लोकुर और जे. चेलमेश्वर ने हस्ताक्षर किए हैं।

    जजों ने आगे कहा, "उप-राष्ट्रपति के पद के लिए चुनावी मुहिम भले ही विचारधारा पर आधारित हो, लेकिन इसे शालीनता और सम्मान के साथ चलाया जाना चाहिए। किसी भी उम्मीदवार की तथाकथित विचारधारा की आलोचना से बचना चाहिए।"

    उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि किसी बड़े राजनेता द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले की गलत व्याख्या "न्यायाधीशों पर ठंडा असर डाल सकती है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को हिला सकती है।"

    'ऐसे नाम लेने से बचना चाहिए'

    जजों ने कहा कि भारत के उप-राष्ट्रपति जैसे गरिमामय पद के सम्मान में "नाम पुकारने" जैसी हरकतों से परहेज करना चाहिए। इस बयान पर सुप्रीम कोर्ट के सात रिटायर्ड जजों के अलावा तीन हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश- गोविंद माथुर, एस. मुरलीधर और संजीब बैनर्जी ने भी हस्ताक्षर किए।

    इसके अलावा हाई कोर्ट के पूर्व जजों अंजना प्रकाश, सी. प्रवीण कुमार, ए. गोपाल रेड्डी, जी. रघुराम, के. कन्नन, के. चंद्रु, बी. चंद्रकुमार और कैलाश गंभीर ने भी बयान पर दस्तखत किए। प्रोफेसर मोहन गोपाल और वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े भी इस बयान का हिस्सा हैं।

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