कैंसर, हृदय रोग और डायबिटीज जैसी बीमारियों से हर वर्ष होती है चार करोड़ से अधिक की मौत!
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कोविड-19 वैक्सीन के कुछ ट्रायल थर्ड फेज में हैं। उम्मीद की जा रही है ये अगले वर्ष के मध्य तक ही लोगों को मिल जाएगी।
जिनेवा (संयुक्त राष्ट्र))। दुनिया भर में फैली कोविड-19 महामारी की वजह से कई दूसरी बीमारियों से ग्रसित मरीजों का उपचार का इलाज नहीं हो पा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है इन बीमारियों के इलाज में पैदा हुई रुकावट घातक हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने सरकारों से कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह (डायबिटीज) जैसे नॉन कम्यूनिकेबल डिजीज बीमारियों से निपटने को प्राथमिकता देने की अपील की है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि इन बीमारियों से हर साल चार करोड़ से अधिक लोगों की जान चली जाती है। ऐसे में ये बेहद जरूरी है कि कोविड-19 से निपटने के दौरान हम दूसरी बीमारियों के इलाज में व्यवधान पैदा न होने दें और उनका इलाज मुहैया करवाएं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कोरोना वायरस संकट की वजह से स्वास्थ्य सेवाओं पर गहरा असर पड़ा है। इसकी वजह से करीब 55 फीसद से अधिक कैंसर के मरीज प्रभावित हुए हैं। यूएन की स्वास्थ्य एजेंसी का कहना है कि इस दौरान इन रोगों से मुकाबला करने में कम प्रगति हुई है। इसकी वजह डॉक्टरों और सरकारों द्वारा कोविड-19 की रोकथाम को प्राथमिकता दिया जाना रहा है। लेकिन इसकी वजह से दूसरी बीमारियों से पीडि़त मरीजों को मुश्किल भी हुई है। अब भी दुनिया में हर 10 में से सात मौतें इन बीमारियों की वजह से होती हैं।
डब्ल्यूएचओ के प्रमुख टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस का कहना है कि कोरोना वायरस उन लोगों के लिये अधिक जोखिम भरा है जो पहले से इन बीमारियों से पीड़ित हैं। ऐसे मरीजों के लिए ये महामारी ज्यादा खतरनाक बन सकती है। उनके मुताबिक इनमें युवा भी शामिल हैं। आपको बता दें कि हृदय रोग, कैंसर, डायबिटीज और लम्बे समय से चली आ रही श्वसन तन्त्र संबंधी बीमारियां नॉन कम्यूनिकेबल डिजीज में आती हैं, जो हर वर्ष चार करोड़ से अधिक लोगों की जान ले लेती हैं।
डब्ल्यूएचओ के ताजा अध्ययन बताते हैं कि कोविड-19 की वजह से स्वास्थ्य सेवाओं में आए व्यवधान से इन रोगों के निदान और उपचार के 69 फीसद मामले प्रभावित हुए हैं। यूएन स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि एक या उससे अधिक नॉन कम्यूनिकेबल डिजीज से पीड़ित मरीजों को कोरोनावायरस के संक्रमण से गंभीर रूप से बीमार पड़ने पर उसकी जान का जोखिम बढ़ जाता है।
डायबिटीज को लेकर हुए मैक्सिको सहित अन्य देशों की रिसर्च बताती है कि कोविड-19 बीमारी से होने वाली मौतों में एक अहम वजह संक्रमितों का डायबिटीज से पीड़ित होना भी है। इटली के अस्पतालों में जिन लोगों की मौत हुई उनमें 67 फीसद हाइपरटेंशन और 31 फीसद टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ित थे। यूएन की तरफ से आगाह किया है कि दुनिया वर्ष 2030 तक नॉक कम्यूनिकेबल डिजीज से निपटने के अपने टार्गेट से अभी काफी दूर है। टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडे के तहत 70 वर्ष की उम्र से पहले होने वाली मौतों में एक-तिहाई की कमी लाना है।
डायबिटीज के खिलाफ लड़ाई में महज 17 देश महिलाओं के लिये निर्धारित लक्ष्य और 15 देश पुरुषों के लिये निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के रास्ते पर हैं। पिछले 20 वर्षों में 20 करोड़ से ज्यादा पुरुष और महिलाओं की असामयिक मौत हुई है। डब्ल्यूएचओ ने आशंका जताई है कि अगले दशक में 15 करोड़ लोगों की नॉन कम्यूनिकेबल डिजीज की वजह से मौत हो सकती है। लिहाजा इसके लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। विकासशील देशों पर इन बीमारियों का सबसे अधिक बोझ है। फिजी मंगोलिया में किसी व्यक्ति की गैर संचारी बीमारी के कारण होने वाली मौत की सम्भावना नॉर्वे या जापान की तुलना में तीन गुणा अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 से काफी कुछ सीखने को मिला है लिहाजा स्वास्थ्य सेवाओं के पुराने रवैये पर नहीं लौटा जा सकता है। इसके लिए उन्होंने इन रोगों के लिये दवाओं, वैक्सीनों, निदानों और रोकथाम के लिये तकनीक उपलब्धता को अहम बताया गया है।
यूएन एजेंसी की प्रवक्ता डॉक्टर मार्गरेट हैरिस का कहना है कि कोविड-19 की रोकथाम के लिये वैक्सीन की व्यापक स्तर पर उपलब्धता अगले वर्ष के मध्य तक ही सम्भव हो पाएगी। उनके मुताबिक इसको लेकर चल रही कुछ वैक्सीन तीसरे चरण के ट्रायल में चल रही है। इनके सुरक्षा प्रोटोकॉल के बारे में पुख्ता जानकारी मिल पाने में अभी समय लगेगा। उसके बाद ही उन्हें उपयोग में लाने के लिये मंजूरी दी जा सकती है। जब तक वैक्सीन उपलब्ध नहीं होती, तब तक सभी लोगों से साफ सफाई और संक्रमण की रोकथाम के बुनियादी उपाय अपनाने होेंगे।
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