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कोरोना वायरस से गरीब देशों के लोग ज्यादा सुरक्षित, जानिए क्‍या है इसके पीछे की वजह

कोरोना वायरस ने जहां दुनिया के अमीर देशों में कोहराम मचाया हुआ है वहीं इससे गरीब देश काफी हद तक बचे हुए हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 06 Sep 2020 10:59 AM (IST)Updated: Sun, 06 Sep 2020 10:59 AM (IST)
कोरोना वायरस से गरीब देशों के लोग ज्यादा सुरक्षित, जानिए क्‍या है इसके पीछे की वजह
कोरोना वायरस से गरीब देशों के लोग ज्यादा सुरक्षित, जानिए क्‍या है इसके पीछे की वजह

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। वैश्विकस्तर पर कोरोना वायरस से संक्रमित होने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन दुनिया के कई गरीब और पिछड़े देशो में यह महामारी अभी भी अपना रौद्र रूप नहीं दिखा पा रही है। ये देश करीब अछूते से हैं। वहां मौतों की संख्या विकसित और अमीर देशों के मुकाबले बहुत कम है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन देशों में मृत्यु दर में कमी का एक कारण औसत आयु का अपेक्षाकृत युवा और कोरोना वायरस के कम घातक रूप (स्ट्रेन) का यहां मौजूद होना है।

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विषम हालात बनाते हैं मजबूत

गरीब और विकासशील देश कोरोना वायरस से अपेक्षाकृत ज्यादा सुरक्षित है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके पीछे इन देशों के लोगों के जीवन जीने की कठोर परिस्थितियां हैं। विशेषज्ञों के लिए यह पहेली थी कि क्यों कुछ देशों में जहां गरीबी और व्याप्त बीमारियों के बावजूद भी बड़ी संख्या में लोग महामारी के प्रकोप की चपेट में नहीं आए। महामारी की शुरुआत में वे गरीब देशों खासतौर पर अफ्रीका में महामारी के भीषण प्रसार को लेकर चिंतित थे क्योंकि यहां का समाज भीड़भरा है और स्वच्छता के लिहाज से हालात ठीक नहीं थे। साथ ही यहां की स्वास्थ्य प्रणाली की गुणवत्ता भी कमजोर थी। उनका कहना है कि यह संभव है कि चुनौतीपूर्ण जीवन ने गरीब देशों को कोरोना वायरस से लड़ने में मदद की है।

ज्यादा युवा यानी कम जोखिम

दक्षिण अफ्रीका में 6 लाख मामले सामने आए हैं। यह ब्रिटेन के मुकाबले लगभग दोगुने है। हालांकि दक्षिण अफ्रीका में सिर्फ 14 हजार मौतें हुई हैं, जबकि ब्रिटेन में 40 हजार से ज्यादा। वहीं ब्रिटेन में माध्य आयु 40 साल है, इसका अर्थ है कि आधे लोग बूढ़े हैं और आधे जवान हैं। वहीं अफ्रीकी देशों में माध्य आयु सिर्फ 28 साल है। यह दर्शाता है कि औसतन यहां लोग ज्यादा युवा हैं। जिसे भी मृत्यु दर कम होने का एक कारण माना जा रहा है।

पुरानी महामारियों का योगदान

अफ्रीका में 10 लाख से कुछ अधिक मामले हैं, लेकिन मौतों की दूसरी सबसे कम दर यहीं पर है। एशिया में सबसे कम मृत्यु दर है। पाकिस्तान व नेपाल जैसे गरीब देशों में बड़ी संख्या में मामले सामने आने के बावजूद और अन्य देशों के मुकाबले यहां स्थिति बेहतर है। इसके लिए पुरानी महामारियों को धन्यवाद देना चाहिए। अफ्रीका में कोरोना वायरस से अभी तक 21 हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं। यह यूरोप की अपेक्षा 10 गुना कम और अमेरिकी महाद्वीपों की अपेक्षा 20 गुना कम हैं। वहीं अभी तक यहां 10 लाख से कुछ अधिक मामले सामने आए हैं। यूरोप में 42 लाख और अमेरिकी महाद्वीपों में यह 131 लाख हैं।

इस तरह से मिलती है सुरक्षा

इन देशों में रहने वाले लोग फ्लू और कोरोना वायरस के संपर्क में अधिक आ सकते हैं। वे ऐसे भीड़भाड़ वाले इलाके में रहते हैं, जहां पर बीमारियां तेजी से फैलती हैं। विज्ञान ने बार-बार सुझाया है कि अन्य समान वायरस के संपर्क में आने से कोविड-19 के खिलाफ सुरक्षा की एक अतिरिक्त परत मिल सकती है।

लोग पहले से ही हैं सुरक्षित

एक रिसर्च के अनुसार, लोगों में पहले से ही उन बीमारियों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता हो सकती है जो अतीत में ऐसी ही बीमारियों से ग्रस्त रहे हैं। विशेषज्ञों ने पाया कि लोगों में संक्रमण बहुत ही मिलता-जुलता लगता है। कोरोना के कमजोर स्टें्रस कफ और सर्दी का कारण बनते है। यदि पूर्व में वे किसी कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं तो इसका अर्थ है कि वे कोविड-19 से गंभीर रूप से बीमार होने से बच जाते हैं। हालांकि इसकी संभावना नहीं है कि लोग किसी भी संक्रमण से पूरी तरह से बचे रहें।

चार तरह के कोरोना वायरस

चार तरह के अन्य प्रकार के कोरोना वायरस होते हैं, जो कि लोगों को नियमित  रूप से प्रभावित करते रहते हैं। जिनका नाम एनएल63, 229ई, ओसी43 और एचकेयू1 होते हैं। पांचवा सार्ससीओवी-2 होता है, जो कि कोविड-19 का कारण बनता है। जुलाई में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की एक रिसर्च के मुताबिक, यदि कोई भी इनमें से किसी के भी द्वारा पहले संक्रमित हो चुका है तो शरीर कोरोना वायरस के खिलाफ इम्युनिटी विकसित कर सकता है।

खराब परिस्थितियां, अच्छे परिणाम

दक्षिण अफ्रीका के सोवेटो स्थित बर्गवनैथ हॉस्पिटल के वैक्सीन एंड इंफेक्शियस डिजीज एनालिटिक्स यूनिट के वैज्ञानिकों का कहना है कि लोग संभवत: अन्य कोरोना वायरस से संक्रमित हुए होंगे, जो सर्दी का कारण होता है। जिसके कारण कोविड-19 से लड़ने के लिए एंटीबॉडी विकसित हो गई। वहीं महामारी विज्ञानी प्रोफेसर शब्बीर मैडी ने दक्षिण अफ्रीका सरकार को कहा है कि ऐसा लगता है कि हमारे संघर्ष और हमारी खराब परिस्थितियां अफ्रीकी देशों और हमारी आबादी के पक्ष में काम कर सकती हैं।

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