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    बांग्लादेश के चुनाव पर BNP का फोकस... खालिदा जिया के बेटे के लौटने से कितना होगा असर?

    Updated: Mon, 22 Dec 2025 06:32 PM (IST)

    बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल मची है। शेख हसीना सरकार के पतन के बाद, यूनुस का सत्ता संभालना, हिंसा और चुनाव घोषणा ने देश को कट्टरपंथी समूहों के साम ...और पढ़ें

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    गुरुवार को तारिक रहमान बांग्लादेश पहुंचेंगे (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बांग्लादेश इन दिनों एक बड़े राजनीतिक घटनाक्रम से गुजर रहा है। पहले शेख हसीना की सरकार का पतन, फिर यूनुस का सत्ता संभालना, हिंसा की घटनाएं और फिर चुनाव की घोषणा, इन सबके बीच पूरा देश कट्टरपंथी इस्लामी समूहों के आगे घुटने टेकता नजर आ रहा है। अगर सियासी नजरिए से देखें तो बांग्लादेश में दो मुख्य पार्टियां हैं- एक शेख हसीना की अवामी लीग और दूसरी खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी।

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    बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान हैं। तारिक अपने परिवार के साथ यूके में रहते हैं, लेकिन अब चुनाव की सरगर्मी के बीच स्वदेश लौट रहे हैं। गुरुवार को तारिक रहमान बांग्लादेश पहुंचेंगे और उनके स्वागत में बीएनपी एक समारोह आयोजित करेगी।

    अवामी लीग पर लगा है बैन

    मोहम्मद यूनुस ने अवामी लीग को चुनावों में हिस्सा लेने से बैन कर दिया है। इस कारण अब बीएनपी और तारिक रहमान राजनीति के केंद्र में आ गए हैं। इन दोनों के अलावा जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश जैसे संगठन भी हैं। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में कहा जा सकता है कि 2026 में होने वाले चुनावों में मुकाबला बीएनपी बनाम अन्य के बीच होगा।

    बांग्लादेश पर जब तक शेख हसीना का राज था, तब उन्होंने पाकिस्तान से उचित दूरी बनाकर रखी थी। हसीना ने भारत से संबंध मजबूत किए थे और चीन से संतुलन बनाया था। लेकिन यूनुस ने इसके उलट ही विदेश नीति अपना ली। उन्होंने भारत से रिश्तों को खटाई में डाल दिया और पाकिस्तान की गोद में जाकर बैठ गए। तारिक रहमान अगर प्रधानमंत्री बनते हैं, तो वह विदेश नीति को किस मोड़ पर ले जाएंगे, इसके संकेत उन्होंने दे दिए हैं।

    तारिक ने कहा है कि बीएनपी के शासन में दिल्ली या रावलपिंडी से पहले बांग्लादेश होगा। यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि बांग्लादेश में चुनाव जितनी जल्दी होंगे, बीएनपी को उतना ही फायदा होगा, क्योंकि अवामी लीग के मैदान में न होने से बीएनपी ही बड़ा विकल्प है। लेकिन कट्टरपंथी पार्टियां चुनाव को टालने की कोशिश में लगी हैं, जिससे बीएनपी का जनाधार कम किया जा सके और उन्हें फलने-फूलने का मौका मिले।

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