शॉर्ट-फॉर्म वीडियो से दिमाग को हो रहा नुकसान, माइंड को दे रहा नया आकार? रिसर्च में बड़ा खुलासा
एक नए अध्ययन से पता चला है कि शॉर्ट-फॉर्म वीडियो (Short Form Video) हमारे दिमाग को नुकसान नहीं पहुंचा रहे, बल्कि हमारी आदतों को बदल रहे हैं। लगातार SF ...और पढ़ें

शॉर्ट-फॉर्म वीडियो से दिमाग को हो रहा नुकसान, माइंड को दे रहा नया आकार (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जब 1999 में 'द मैट्रिक्स' फिल्म आई थी तो लोगों ने पहली बार सोचा था क्या हम असली दुनिया में हैं या किसी अदृश्य सिस्टम में फंसे हुए? आज हम डिजिटल दुनिया में तो नहीं फंसे, लेकिन हमारे दिमाग जरूर लगातार स्क्रॉलिंग के जाल में उलझ रहे हैं। एक बड़ा नया अध्ययन बताता है कि शॉर्ट-फॉर्म वीडियो (Short Form Video) हमारे दिमाग को नुकसान नहीं पहुंचा रहा, बल्कि धीरे-धीरे उसकी आदतें बदल रहा हैअक्सर इतनी चुपचाप कि हमें पता भी नहीं चलता।
71 अलग-अलग शोधों और लगभग 1 लाख लोगों पर आधारित मेगा-रिव्यू फीड्स, फीलिंग्स और फोकसदिखाता है कि लगातार शॉर्ट वीडियो देखने से ध्यान, भावनाओं और मानसिक लय में छोटे-छोटे लेकिन लगातार बदलाव आ रहे हैं।
रिसर्चरों ने क्या कहा?
रिसर्चरों ने स्कूल के बच्चों, कॉलेज छत्रों और दफ्तर के कर्मचारियों को शामिल किया और यह देखा कि लोग कितना स्क्रॉल करते हैं, कब स्क्रॉलिंग अपने-आप शुरू हो जाती है, और कब रोकना मुश्किल लगता है। उन्होंने ध्यान, याददाश्त, तनाव, नींद, अकेलेपन और आत्म-सम्मान जैसे पहलुओं को भी मापा।
नतीजा साफ दिखाजहां भारी SFV उपयोग था, वहाँ प्रभाव मामूली थे लेकिन लगभग हर जगह मौजूद थे। -0.10 से -0.30 की ये छोटी गिरावटें बताती हैं कि दिमाग धीरे-धीरे उस रफ्तार पर ढल रहा है जिस पर फीड चलती है।
सबसे बड़ा पैटर्न यह मिला कि भारी SFV उपयोग वालों में लंबे समय तक ध्यान टिकाना मुश्किल होता जा रहा है। वे ध्यान खोते नहीं, पर जल्दी थकते हैं। दिमाग बर्स्ट मोड में सोचने लगता है, छोटी-छोटी झटकों जैसी एकाग्रता।
वर्किंग मेमोरी और एग्जिक्युटिव फंक्शन में भी हल्की गिरावट दिखी। दिमाग को धीमे और लंबी सोच की चीजेंजैसे एक पेज पढ़ना या किसी बात को बिना रुकावट सुननापहले से ज्यादा भारी लगने लगती हैं। स्थिरता अब असहज महसूस होती है।
भावनाएं भी जल्दी-जल्दी बदल रही हैं
अध्ययन दिखाता है कि तनाव, बेचैनी और चिंता में एक हल्की लेकिन स्थायी बढ़त देखी गई। कुल संबंध –0.21 रहा, यानी असर बड़ा नहीं लेकिन लगातार है। तनाव-चिंता में –0.25 तक के प्रभाव भी मिले।
इस तेज बदलाव की वजह यह है कि भावनाएं इतनी जल्दी आती-जाती हैं कि दिमाग उन्हें पूरी तरह प्रोसेस कर नहीं पाताखुशी झट से झुंझलाहट में बदल जाती है, उत्सुकता ईर्ष्या में, और हर भावना आधी-अधूरी रह जाती है। SFV भावनाएं खत्म नहीं करता, बस उनकी लय बिगाड़ देता है।
अकसर माना जाता है कि बड़े लोग सोशल मीडिया संभलकर इस्तेमाल करते हैं, इसलिए उन पर असर कम पड़ता है। लेकिन अध्ययन बताता है कि लगभग 73% प्रतिभागी वयस्क थे और उनके परिणाम किशोरों जैसे ही थे। दिमाग उम्र से नहीं, जानकारी की रफ्तार से प्रभावित हो रहा है। यह बदलाव इंसानी दिमाग की बुनियादी बनावट से जुड़ा हैन कि उम्र से। यानी, स्क्रॉलिंग की कमजोरी सभी की है, सिर्फ युवाओं की नहीं।
सबसे बड़ा असर
अधिक नुकसान तब होता है जब उपयोग समय ज्यादा नहीं बल्कि काबू से बाहर हो जाए। यानी ऐप खोलना अपने-आप हो जाए और रोकना कठिन लगे। ऐसे मामलों में असर –0.20 से –0.30 तक दिखा। यह नुकसान घंटों में नहीं आता,ऑटोपायलट में आने से आता है।
चौंकाने वाली बात यह है कि आत्म-सम्मान और बॉडी-इमेज पर SFV का कोई ठोस एक-तरफा असर नहीं मिला। असर –0.05 से –0.10 के बीच रहाबहुत छोटा। इसकी वजह यह है कि प्लेटफॉर्म बहुत अव्यवस्थित है। हर खूबसूरत इन्फ्लुएंसर के साथ सैकड़ों हम जैसे लोग भी दिखते हैं। कोई खराब महसूस करता है, कोई अच्छा; औसत सपाट हो जाता है। ऐसा नहीं कि प्लेटफॉर्म सुरक्षित हैबल्कि वह इतना अनियमित है कि एक ही दिशा में असर डाल ही नहीं पाता।
छात्रों पर निगेटिव असर
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के जर्नल साइकोलॉजिकल बुलेटिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है। अक्टूबर महीने में जारी एक अन्य रिपोर्ट में 14 रिसर्च को एनालाइज किया गया था। इससे यह पता चला कि शॉर्ट-फॉर्म वीडियो को ज्यादा देखने से हमारी फोकस करने की क्षमता कम होती जा रही है। इसका सीधा और नेगेटिव असर छात्रों की पढ़ाई पर पड़ता है।
Source: American Psychological Association की रिपोर्ट
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