अरल सागर: इंसानी गलतियों से सूख गया समंदर, अब सांस लेना भी हो रहा बेहाल; इन देशों के लिए बना श्राप
अरल सागर जो कभी दुनिया का चौथा सबसे बड़ा झील था अब अरलकुम रेगिस्तान बन चुका है। 1960 में नदियों के पानी को मोड़ने से सागर सूखा जिससे धरती की सतह ऊपर उठ रही है। जहरीली धूल हवा में फैलकर ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान तक पहुंच रही है मौसम बदल रहा है। इसे “शांत चेर्नोबिल” कहा जाता है जो इंसानी गलतियों का सबक है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कभी दुनिया का चौथा सबसे बड़ा झील था अरल सागर, जो आज एक बंजर रेगिस्तान में तब्दील हो चुका है। मध्य एशिया के इस विशाल जलाशय की कहानी इंसान की गलतियों और प्रकृति के बदलते रूप की दास्तान है। 1960 के दशक में इंसानों ने पानी के लिए नदियों का रुख मोड़ दिया, जिसके बाद अरल सागर सूखने लगा।
अब वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि सागर के सूखने से धरती की सतह ऊपर उठ रही है और जहरीली धूल हवा में फैलकर नई मुसीबतें खड़ी कर रही है। आइए, इस बदलाव को आसान भाषा में समझें।
कैसे सूख गया अरल सागर?
अरल सागर कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान की सरहद पर बसा था, कभी विशाल और जीवन से भरा हुआ था। लेकिन 1960 के दशक में सोवियत संघ ने इस सागर को पानी देने वाली दो बड़ी नदियों अमू दरिया और स्यर दरिया का पानी खेती के लिए मोड़ दिया। नतीजा ये हुआ कि सागर का पानी धीरे-धीरे कम होने लगा। 1986 तक हालात इतने बिगड़ गए कि सागर दो हिस्सों में बंट गया। पिछले 80 सालों में अरल सागर ने अपना 1.1 अरब टन पानी खो दिया।
अरल सागर की धरती ऊपर क्यों उठ रही है?
पानी के इस भारी नुकसान ने धरती की सतह पर गहरा असर डाला। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब सागर का पानी सूखा, तो धरती पर दबाव कम हुआ। इससे नीचे की मैटल परत, जो चिपचिपी और लचीली होती है, ऊपर उठने लगी। इसे ऐसे समझें जैसे कोई भारी बोझ हटने पर गद्दा वापस ऊपर उठ जाता है। वैज्ञानिकों ने 2016 से 2020 तक InSAR सैटेलाइट तकनीक से 310 मील के इलाके में निगरानी की और पाया कि जमीन हर साल करीब 0.3 इंच ऊपर उठ रही है। यानी चार साल में कुल 1.6 इंच की उछाल देखी गई।
अरलकुम रेगिस्तान से जहरीली धूल का खतरा
अरल सागर के सूखने से बना अरलकुम रेगिस्तान आज दुनिया के सबसे बड़े धूल स्रोतों (Dust Sources) में से एक है। इस रेगिस्तान से जहरीली धूल उठती है, जिसमें कीटनाशक और उर्वरकों के अवशेष मिले हुए हैं। जर्मनी की लाइबनिट्स इंस्टीट्यूट और फ्रेई यूनिवर्सिटी के शोध के मुताबिक, 1985 से 2015 के बीच इस इलाके से निकलने वाली धूल 14 मिलियन टन से बढ़कर 27 मिलियन टन हो गई। ये धूल ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान की राजधानियों तक पहुंच रही है, जिससे हवा की गुणवत्ता खराब हो रही है। पिछले 30 सालों में धूल भरी आंधियों की घटनाएं 7 फीसदी बढ़ गई हैं।
मौसम पर क्या असर पड़ रहा है?
अरलकुम रेगिस्तान सिर्फ धूल ही नहीं फैला रहा, बल्कि मौसम को भी बदल रहा है। COSMO-MUSCAT मॉडल के शोध बताते हैं कि इस धूल की वजह से रात में जमीन ठंडी रहती है, लेकिन दिन में गर्मी बरकरार रहती है। कुल मिलाकर सालभर में हल्की ठंडक का असर दिखता है, लेकिन ये छोटा-सा बदलाव मौसम के बड़े पैटर्न को प्रभावित कर सकता है। धूल की वजह से हवा का दबाव बढ़ रहा है, जिससे सर्दियों में मौसम बदल रहा है और गर्मियों में गर्मी का असर कम हो रहा है।
(फोटो सोर्स- Britannica)
इस रेगिस्तान को कहा जाता है “शांत चेर्नोबिल”
वैज्ञानिक अरल सागर की इस त्रासदी को “शांत चेर्नोबिल” कहते हैं। ये एक चेतावनी है कि इंसान की गलतियां प्रकृति को कितना नुकसान पहुंचा सकती हैं। अरल सागर के अलावा ईरान का उर्मिया झील और पश्चिम और मध्य एशिया की दूसरी झीलें भी सूख रही हैं, जिससे धूल और मौसम की समस्याएं बढ़ रही हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन बदलावों को समझने और भविष्य की भविष्यवाणी करने के लिए और शोध जरूरी है।
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