ऑस्ट्रेलिया में 150 साल पुरानी है यहूदी विरोध की जड़ें, सिर्फ 45 दिनों में सामने आए 368 मामले
ऑस्ट्रेलिया में हमास के हमले के बाद यहूदी-विरोधी घटनाओं में तेज़ी आई है। ऑस्ट्रेलियन ज्यूरी के अनुसार, 8 अक्टूबर से 19 नवंबर के बीच 368 घटनाएं हुईं, ज ...और पढ़ें
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सात अक्टूबर 2023 के बाद घटनाओं में तेज उछाल (फोटो सोर्स- रॉयटर्स)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ऑस्ट्रेलिया में यहूदी-विरोधी (एंटीसेमिटिक) घटनाओं में सात अक्टूबर 2023 को हमास के इजरायली समुदायों पर हमले और इसके बाद गाजा युद्ध के बाद तेज बढ़ोतरी दर्ज की गई है। ऑस्ट्रेलियन ज्यूरी की एक्जीक्यूटिव काउंसिल के अनुसार, आठ अक्टूबर से 19 नवंबर के बीच 368 यहूदी-विरोधी घटनाएं सामने आईं, जबकि अक्टूबर 2021-22 के पूरे वर्ष में यह आंकड़ा 478 था।
लिबरल पार्टी के यहूदी सांसद जूलियन लीसर के मुताबिक हालात चिंताजनक हैं। उन्होंने कहा कि मैंने अपने जीवन में ऐसा पहले नहीं देखा- यहूदी बच्चे स्कूल यूनिफार्म पहनने से डर रहे हैं, लोग स्टार ऑफ डेविड या किप्पा पहनने से हिचक रहे हैं।
औपनिवेशिक काल से मौजूद रही है नफरत की धारा
ऑस्ट्रेलिया में यहूदियों की मौजूदगी ब्रिटिश उपनिवेशीकरण के साथ शुरू हुई। 1880 के दशक में राष्ट्रवाद और फेडरेशन आंदोलन के साथ खुले यहूदी-विरोध ने जोर पकड़ा। 1938-39 और 1946-54 में यहूदी शरणार्थियों की सबसे बड़ी आमद हुई, लेकिन अखबारों और संसद में विरोध भी तेज रहा। ऑस्ट्रेलिया आनेवाले जहाजों और विमानों में यहूदी यात्रियों की सीमा 25 प्रतिशत तय की गई, जिससे यहूदी आबादी 0.5 तक सीमित रही।
दक्षिणपंथ, वामपंथ और सोवियत प्रचार
1950- 60 के दशक में स्थानीय संगठित यहूदी-विरोध उभरा। ऑस्ट्रेलियन लीग ऑफ राइट्स जैसे संगठनों ने 'प्रोटोकल्स ऑफ द एल्डर्स ऑफ जायन' जैसे फर्जी ग्रंथों का प्रचार किया। 1967 के अरब-इजरायल युद्ध के बाद विश्वविद्यालय परिसरों में सोवियत-प्रभावित यहूदी-विरोधी और एंटी-इजरायल नैरेटिव फैला, जो कई बार सीधे यहूदियों के खिलाफ हिंसा में बदला।
आज का परिदृश्य- ऑनलाइन नफरत सबसे बड़ी चुनौती
शोध के मुताबिक, आधुनिक यहूदी-विरोध तीन रूपों में दिखता है- धार्मिक, नस्लीय और राजनीतिक। इजरायल-फलस्तीन संघर्ष से जुड़ी आलोचना कई बार यहूदियों के प्रति घृणा में बदल जाती है। हाल के वर्षों में श्वेत सर्वोच्चतावादी समूहों और आनलाइन ट्रोलिंग ने समस्या को और बढ़ाया है। कोविड काल में साजिश सिद्धांतों के साथ यह प्रवृत्ति फिर उभरी।
सामूहिक हिंसा के दौरान हमलावरों से भिड़ें या खुद को बचाएं
सिडनी के बोंडी बीच पर रविवार को हुए हमले के दौरान 43 वर्षीय फल विक्रेता अहमद अल अहमद ने असाधारण साहस दिखाया। वह न केवल हमलावर से भिड़ गए, बल्कि उसका हथियार भी छीन लिया और तमाम अन्य लोगों की जान बचाई। इस घटना में उन्हें भी दो गोलियां लगीं।
माना जा रहा है कि उनके बीच-बचाव से कई बेशकीमती जानें बचीं, लेकिन इस घटना ने एक अहम सवाल भी खड़ा किया है- सार्वजनिक हिंसा या आतंकी हमले के दौरान आम लोगों को मोर्चा लेना चाहिए या खुद को सुरक्षित निकालना चाहिए।
ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों की आधिकारिक सलाह हस्तक्षेप के बजाय बचाव पर केंद्रित है। हाल ही में शुरू किए गए राष्ट्रीय सुरक्षा अभियान में “एस्केप, हाइड, टेल'' का संदेश दिया गया है- यदि संभव हो तो तुरंत दूर जाएं, छिपें और मौका मिलने पर पुलिस को सूचना दें। अमेरिका की “रन, हाइड, फाइट,'' गाइडलाइन के विपरीत, ऑस्ट्रेलिया ने टकराव को विकल्प के रूप में शामिल नहीं किया है।

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