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    Iran Israel War: परमाणु हथियार विकसित करने में पाकिस्तान ने ईरान की क्यों नहीं की मदद?

    Updated: Thu, 19 Jun 2025 09:20 PM (IST)

    इजरायल और ईरान के बीच चल रहे संघर्ष पर पूरी दुनिया की निगाह है। ईरान का कहना है कि पाकिस्तान ने उसका साथ देने का वादा किया है। अगर उसके ऊपर कोई खतरा होता है तो पाकिस्तान परमाणु हमला करके उसकी मदद करेगा। इसके बाद से चर्चा हो रही है कि उसने परमाणु बम बनाने में उसकी मदद क्यों नहीं की।

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    ईरान के सर्वोच्च नेता के साथ पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ

     जेएनएन, नई दिल्ली। इजरायल और ईरान के बीच चल रही तनातनी अब पूरी तरह से संघर्ष में बदल चुकी है। दोनों देश एक-दूसरे के ऊपर हमले कर रहे हैं। इजरायल ने ईरान की न्यूक्लियर ठिकानों पर बड़े हमले किए। तो वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संकेत दे दिए हैं कि अमेरिका भी इस लड़ाई में जल्द उतरेगा। इन सब के बीच हर किसी के मन में एक सवाल जरूर उठ रहा है कि ईरान को भाईजान कहने वाले पाकिस्तान ने परमाणु हथियार विकसित करने में ईरान की मदद क्यों नहीं की?

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    पाकिस्तान 1998 में ही न्यूक्लियर स्टेट बन गया था, जबकि ईरान लंबे समय से न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी की तलाश कर रहा है। हालांकि ईरान का कहना है कि वो शांति के उद्देश्यों के लिए परमाणु हथियार बनाना चाहता था लेकिन इजरायल इसे अपने लिए खतरा मान रहा है।

    दोनों मुस्लिम बहुल देश हैं और कई तरह से एक-दूसरे को सहयोग भी करते रहे हैं, फिर भी पाकिस्तान ने ईरान को परमाणु हथियार बनाने में खुले तौर पर या आधिकारिक रूप से मदद नहीं की। कई कारणों से उनके परमाणु कार्यक्रम अलग-अलग हो गए।

    ईरान की पाकिस्तान ने कब की थी मदद?

    टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान ने एक सीमा तक ईरान की मदद की भी थी। ये एक गुप्त सहायता थी। 1980 और 1990 के दशक में, पाकिस्तान के एक्यू खान नेटवर्क ने गुप्त रूप से संवेदनशील सेंट्रीफ्यूज तकनीक, ब्लूप्रिंट और घटकों को ईरान को ट्रांसफर किया था और इससे ईरान की यूरेनियम क्षमताओं में काफी वृद्धि हुई।

    पाकिस्तान क्यों नहीं बढ़ पाया आगे?

    2000 के दशक की शुरुआत में जब एक्यू खान के नेटवर्क का खुलासा हुआ, तो पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कड़ी निगरानी रखी जाने लगी और दबाव भी पड़ा जिससे कि पाकिस्तान इन गतिवधियों को रोक सके। इसके अलावा पाकिस्तान ने भारत को काउंटर करने के लिए ये परमाणु परीक्षण किया नाकि ईरान की मदद करके उसे मजबूत करने के लिए। दोनों ही देश मुस्लिम बहुल हैं लेकिन इस आधार पर ईरान की मदद की जाती तो सऊदी अरब के अलावा दूसरे गल्फ देशों से पाकिस्तान के रिश्ते खराब हो सकते थे।

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