इनकी वजह से पूरी दुनिया में गहरा गया है तेल संकट, सऊदी अरब को दे रहे कड़ी टक्कर
हूथी विद्रोही दुनिया के उन ताकतवर आतंकी गुटों मेंं शामिल है जिनका खौफ किसी एक देश या एक इलाके तक सीमित नहीं है। इनकी ही वजह से आज पूरी दुनिया में तेल का संकट गहरा गया है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी ‘आरामको’ पर हुए हमले के बाद एक नाम हर जगह सुनाई दे रहा है। यह नाम है ‘हूथी विद्रोही’। शनिवार को हुए ड्रोन अटैक के बाद सऊदी अरब में तेल उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। इस हमले की वजह से सोमवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 19 फीसद बढ़ कर 71.95 डॉलर प्रति बैरल हो गई है। हालात से निपटने के लिए अमेरिका को अपना रिजर्व ऑयल बाहर निकालना पड़ा है। आपको बता दें कि आरामको सऊदी अरब और अमेरिका का संयुक्त उपक्रम है। हूथी विद्रोहियों को मौजूदा समय में दुनिया के सबसे बड़े विद्रोही संगठन के तौर पर जाना जाता है। अरब क्रांति में इन विद्रोहियों की अहम भूमिका रही थी। इसकी ही बदौलत 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति अली अबदुल्लाह सालेह को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। इसकी वजह आंतरिक मामलों के खिलाफ जनता का लामबंद होना था। हालांकि इस वक्त तक हूथी विद्रोहियों का संघर्ष केवल उत्तरी यमन तक ही सीमित था।
हादी को सत्ता और सालेह की हत्या
सालेह के पद छोड़ने के बाद उनकी जगह अब्दराबूह मंसूर हादी यमन के राष्ट्रपति बने। हादी सरकार के सामने भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, खाद्य संकट जैसी बुनियादी समस्याएं थीं। इसके अलावा अलकायदा भी इस सरकार के लिए बड़ी परेशानी की वजह थी। पहले सालेह के खिलाफ लामबंद हुए हूथी व्रिदोहियों ने बाद में हादी के खिलाफ भी संघर्ष शुरू किया। इस संघर्ष को उस वक्त तब और मजबूती मिली जब पूर्व राष्ट्रपति सालेह इन विद्रोहियों के साथ मिल गए। 2014 में इस गठबंधन ने यमन की राजधानी सना पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था। हादी सरकार को सुन्नी बहुल देश जिसमें सऊदी अरब,कतर, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मिस्र, जोर्डन शामिल हैं, समर्थन दे रहे हैं। इनके अलावा सेनेगल, मोरक्को, सूडान भी इसके साथ हैं। हादी को समर्थन की वजह से ही हूथी विद्रोही इनके खिलाफ हैं। 2017 में जब पूर्व राष्ट्रपति सालेह ने हूथी विद्रोहियों का साथ छोड़ने और सऊदी अरब और विद्रोहियों के बीच वार्ता का एलान किया, तो उनकी हत्या कर दी गई।
सऊदी से संघर्ष काफी पुराना
सऊदी अरब से हूथियों के संघर्ष की जहां तक बात है तो यह वर्षों पुराना है। हकीकत ये है कि यह लड़ाई शिया और सुन्नियों के बीच का परिणाम है। इसी वजह से सऊदी अरब और ईरान के बीच हमेशा से ही तनातनी रही है। एक तरफ ईरान शिया बहुल है तो सऊदी अरब सुन्नी बहुल देश है। यही वजह है कि ईरान पर हूथी विद्रोहियों का साथ देने के आरोप बढ़चढ़ कर लगते रहे हैं। इन विद्रोहियों का संबंध अल्पसंख्यक जैदी शिया समुदाय से है। उत्तरी यमन को इन विद्रोहियों का पारपंरिक गढ़ कहा जाता है। ये विद्रोही खुद को अंसारुल्लाह कहते हैं जिसका अर्थ अल्लाह के समर्थक होता है। आपको बता दें कि जिनके नाम पर इन विद्रोहियों को हूथी कहा जाता है वह नाम उन्हें वहां के आध्यात्मिक नेता बदरेद्दीन अल हूथी से मिला है। उन्होंने ही 90 के दशक में सांप्रदायिक भेदभाव के खिलाफ सरकार के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन शुरू किया था। 2004 से 2010 के बीच वे यमन की तत्कालीन सरकार के खिलाफ छह बार लड़े। इतना ही नहीं सऊदी अरब के साथ संघर्ष में भी वह आगे रहे थे।
यमन के गृहयुद्ध में हजारों की हो चुकी है मौत
यमन में साल 2015 से शुरू हुए गृहयुद्ध में करीब दस हजार से भी अधिक लोग मारे जा चुके हैं जबकि 42000 से अधिक लोग घायल हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक यमन में दो करोड़ से भी अधिक लोगों को तत्काल मदद की जरूरत है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक यमन में हैजे की वजह से दो हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं। साल 1990में दक्षिणी और उत्तरी यमन को मिलाकर यमन राष्ट्र का गठन किया गया था। अरब दुनिया में शुमार यमन की गिनती दुनिया के गरीब देशों में होती है। साल 2011 के बाद से देश में राजनीतिक खींचतान जारी है। साल 2015 से यमन गृहयुद्ध की आग में झुलस रहा है। आपको बता दें कि यमन आज भी कबीलों के आधार पर विभाजित देश है और इन विद्रोहियों को कबीलों का भरपूर समर्थन मिल रहा है।
हथियार और इनकी ट्रेनिंग
जहां तक इनके पास मौजूद हथियारों की बात है तो जानकार मानते हैं कि सना पर कब्जे के दौरान यमन की सेना के डिपो में हथियारों की भारी लूट हुई थी। इन्हीं के दम पर यह विद्रोही सऊदी अरब को भी टक्कर दे रहे हैं। जानकार ये भी मानते हैं कि इन्हें ईरान समर्थित लेबनानी मिलिशिया हिजबुल्ला के सदस्य भी ट्रेनिंग दे रहे हैं। जानकार हूथी विद्रोहियों की बढ़ती ताकत के पीछे सीधेतौर पर ईरान को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं। हालांकि ईरान का इस बारे में कुछ और ही तर्क है। उसके मुताबिक वह राजनीतिक तौर पर इन हूथी विद्रोहियोंका समर्थन करता है। यमन के सैन्य अधिकारी यहां तक मानते हैं कि वर्ष 2015 में ईरान ने इन विद्रोहियों को बैलेस्टिक मिसाइल को तैयार करने के उपकरण तक मुहैया करवाए हैं।
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