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    Israel Iran conflict: इजरायल से संघर्ष में अलग-थलग पड़ा ईरान, हमास और हिजबुल्लाह नहीं खड़े हुए साथ; रूस-चीन क्या देंगे समर्थन?

    ईरान के समर्थक अब खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं। ईरान ने बीते 4 दशक में मिडिल ईस्ट में इजरायल के विरोधियों को खड़ा किया पर अब हिजबुल्लाह और हमास जैसे संगठन कमजोर हो चुके हैं। इराक के शिया मिलिशिया और यमन के हूती भी ईरान का समर्थन करने से हिचकिचा रहे हैं।

    By Digital Desk Edited By: Swaraj Srivastava Updated: Thu, 19 Jun 2025 04:57 PM (IST)
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    ईरान के समर्थन में कोई भी खुले तौर पर सामने नहीं आया है (फोटो: रॉयटर्स)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दुनिया के नक्शे पर देखकर अगर आपको किसी ऐसे देश के बारे में बताना हो, जो चारों ओर से दुश्मनों से घिरा हो, तो बिना हिचके शायद आप अपनी अंगुलि इजरायल पर रख देंगे। इजरायल, जिसके एक ओर लेबनान है, तो दूसरी ओर फिलीस्तीन। इसके नाक में यमन ने भी दम कर रखा है और इराक के शिया मिलिशिया ने भी।

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    लेकिन इजरायल के ये सारे दुश्मन एक दिन में नहीं पनपे। बीते 4 दशक में ईरान ने मिडिल ईस्ट में इन्हें खड़ा किया है। मकसद सिर्फ एक- अमेरिका और इजरायल की ताकत का काउंटर तैयार करना और इनसे सीधे टकराव से बचना। लेकिन अब जब ईरान और इजरायल सीधे संघर्ष में शामिल हो गए हैं, तो ईरान के समर्थन में कोई भी खुले तौर पर सामने नहीं आया है।

    क्यों चुप बैठे हैं ईरान के समर्थक?

    लेबनान का कट्टरपंथी शिया पैरामिलिट्री ग्रुप हिजबुल्लाह ईरान का सबसे बड़ा प्रॉक्सी माना जाता है। बीते कुछ सालों में इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच कई बार संघर्ष हुआ और हसन नसरल्लाह समेत हिजबुल्लाह के कई बड़े लीडर मारे गए। अब हिजबुल्लाह इतना कमजोर हो चुका है कि वह ईरान के साथ खड़ा होकर अपनी स्थिति को बदतर नहीं करना चाहेगा।

    उधर गाजा में फिलीस्तीनी संगठन हमास लंबे समय से इजरायल से संघर्ष कर रहा है और इसमें हमास के कई बड़े नेता ढेर हो चुके है। गाजा पूरी तरह खंडहर में तब्दील हो चुका है और ईरान से कुछ खास समर्थन नहीं मिलने के बाद हमास भी अब खामेनेई के पक्ष में खड़ा नहीं होगा।

    बदल गई है पूरी कहानी

    • ईरान ने इराक में अपने समर्थन वाले एक शिया मिलिशिया ग्रुप को खड़ा किया था, जिसने कई बार ईरान के हितों की रक्षा की थी। लेकिन अब स्थिति काफी बदल चुकी है। ईरान पर हो रहे इजरायली हमलों से ज्यादातर ग्रुप ने खुद को अलग रखा है। ईराक के पीएम मोहम्मद अल-सुदानी के अमेरिका से भी अच्छे संबंध हैं। ऐसे में उन्होंने मिलिशिया ग्रुप्स को मामले में अलग रहने को कहा है।
    • यमन में सक्रिय हूती संगठन ईरान के समर्थन में भले ही शुरुआत में काफी उग्र रवैया दिखा रहा हो, लेकिन अब उनकी भी स्थिति ईरान के समर्थन में उतरने की बची नहीं है। अमेरिकी की स्ट्राइक में हूतियों की कई मिसाइल बैट्रीज तबाह हो चुकी हैं और अब वह चुप रहने को मजबूर हैं।

    रूस और चीन पर रहेगी नजर

    ईरान भले ही अभी अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग पड़ा दिखाई दे रहा हो, लेकिन इजरायल को अमेरिका का समर्थन है। कहते हैं दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। इसलिए जहां अमेरिका है, वहां उसके विरोधी गट में रूस और चीन जरूर होंगे। इसके अलावा नॉर्थ कोरिया भी इनके साथ आ सकता है।

    वहीं अगर भारत की बात करें और भारत के संबंध ईरान और इजरायल दोनों से ही बेहतर हैं। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है और मसलों को बातचीत से हल किया जाना चाहिए।

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