Mossad: यू हीं नहीं मोसाद से थर-थर कांपते दुश्मन, ईरान में पेजर अटैक तो जर्मनी हमले का लिया बदला; ऐसे करती है काम
ईरान-इजरायल युद्ध के बीच हम आपको बताने जा रहे हैं इजरायल की इंटेलीजेंश एजेंसी मोसाद के बारे में जिसके पिछले कई दशकों से कई असंभव मिशनों को अंजाम दिया है। मौसाद ने अपना नाम ऐसे नहीं कमाया है। उसने ऐसे कुछ बड़े और नामुमकिन मिशनों को अंजाम दिया है जिससे दुश्मन इजरायल और मौसाद से थर-थर कांपते हैं। आइए जानते हैं कुछ ऑपरेशन के बारे में...

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दुनियाभर में अगर आप किसी भी आम आदमी से पूछेंगे कि उन्हें दुनिया की सबसे प्रमुख और सबसे प्रभावी जासूसी एजेंसी कौन सी लगती है और संभावना है कि इजरायल की मोसाद उसकी शीर्ष तीन में होगी। मौसाद ने अपना नाम ऐसे नहीं कमाया है। उसने ऐसे कुछ बड़े और नामुमकिन मिशनों को अंजाम दिया है जिससे दुश्मन इजरायल और मौसाद से थर-थर कांपते हैं।
13 दिसंबर 1949 में मोसाद का हुआ गठन
मोसाद का गठन 13 दिसंबर 1949 में हुआ था। मोसाद का खुफिया जानकारी जुटाने, गुप्त ऑपरेशनों को अंजाम तक पहुंचाने और आतंकवाद का मुकाबला करने में कोई सानी नहीं है। मोसाद जिस सटीकता के साथ अपने ऑपरेशन को अंजाम देती है उसको लेकर दुनियाभर के लोग उसकी तारीफ करते नहीं थकते। यह कारण है कि मोसाद पर कई ब्लॉकबस्टर फिल्म जिनमें 'म्यूनिख', 'द इम्पॉसिबल स्पाई' और 'द एंजल' शामिल हैं उन पर बनाई गई हैं।
कुछ असफलताएं भी मोसाद से जुडीं
कहते हैं सफलता कुछ बहुत बड़ी असफलताओं के बिना नहीं मिलती है। एक मिशन ऑपरेशन सुसानाह या 1954 का लावोन मामला है जिसके तहत एजेंसी ने मिस्र में राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासर के शासन को अस्थिर करने और स्वेज नहर क्षेत्र से ब्रिटिश सैनिकों को वापस बुलाने से रोकने के लिए झूठे झंडे वाले बम विस्फोट करने की योजना बनाई थी।
एजेंसी ने बम विस्फोट करने के लिए मिस्र के यहूदियों के एक समूह की भर्ती की और देश के भीतर मुस्लिम ब्रदरहुड और अन्य तत्वों पर इसका आरोप लगाने की योजना बनाई, लेकिन समय से पहले बम फटने से समूह पकड़ा गया। इसका परिणाम इतना बड़ा था कि रक्षा मंत्री पिन्हास लिवोन को इस्तीफा देना पड़ा।
हमास का इजरायल पर हमला
गाजा में फलस्तीनियों पर इजरायल की नजर वैसे भी हमेशा बनी रहती है। लेकिन 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इजरायल पर पर हमला कर दिया। इसके बाद गाजा में इजरायल सैन्य अभियान शुरू हुआ जो अभी तक चालू है। इस युद्ध हैं अब तक 54,418 लोगों की मौत हुई है, जबकि 124,190 से अधिक लोग घायल हुए हैं।
मोसाद की कुछ प्रमुख सफलताएं
सीरियाई घुसपैठ - एली कोहेन की कहानी
इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के जासूस एली कोहेन को आज भी दुनिया का सबसे बड़ा जासूस कहा जाता है। कोहेन को 60 साल पहले दमिश्क के एक चौराहे पर फांसी दे दी गई थी। मिस्त्र में एक यहूदी परिवार में जन्मे कोहेन मोसाद में शामिल हुए और कामेल अमीन थाबेट के नाम से सीरिया के राजनीतिक नेतृत्व के शीर्ष पदों पर घुसपैठ की।
अर्जेंटीना में रहने वाले कामेल अमीन थाबेट नाम से सीरियाई व्यवसायी के रूप में पेश होकर, कोहेन 1962 में दमिश्क चले गए और राजनेताओं और सैन्य अधिकारियों के साथ संबंध बनाने लगे। उन्होंने ऐसी पार्टियाँ भी आयोजित कीं जिनमें कुलीन लोगों को आमंत्रित किया जाता था, नशे में होने का नाटक करके जानकारी एकत्र करते थे जबकि उनके इर्द-गिर्द बातचीत होती रहती थी।
चार वर्षों में उन्होंने जो खुफिया जानकारी हासिल की। उसे 1967 के छह दिवसीय युद्ध में इजरायल की आश्चर्यजनक सफलता, विशेष रूप से गोलान हाइट्स पर कब्जा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का श्रेय दिया जाता है। 18 मई 1965 को कोहेन पर जासूसी के आरोप में सीरियाई सरकार द्वारा मुकदमा चलाया गया और उन्हें फांसी दे दी गई।
सीरियाई खुफिया अधिकारियों ने जनवरी 1965 में कोहेन को एक ट्रांसमिशन भेजते समय गिरफ्तार किया और उसी साल मई में उन्हें सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका दिया गया। वे इजरायल में एक राष्ट्रीय नायक बने हुए हैं।
ईश्वर का क्रोध ('Wrath of God')
ईरान-इजरायल युद्ध के बीच हम आपको बताने जा रहे हैं ओलंपिक खेल में हुए एक आतंकी हमले के बारे में जिससे पूरी दुनिया दहल गई थी। इसके बाद इजरायल ने बदला लेने के लिए सालों तक ऐसा ऑपरेशन चलाया और उन सभी आतंकियों को मार गिराया जो उस इजरायली नरसंहार में शामिल थे। इजरायल ने इसे Operation Wrath of God नाम दिया था।
1972 ओलंपिक में हुई आतंकी घटना ने पूरे विश्व को स्तब्ध कर दिया था।
सन 1972 में जर्मनी के म्यूनिख में ओलंपिक खेलों का आयोजन कराया गया था। ओलंपिक की शुरुआत 26 अगस्त 1972 को हुई थी। म्यूनिख से करीब 20 किमी दूर पर ओलंपिक विलेज बनाया गया था, जहां के होटलों में खिलाड़ी ठहरे हुए थे।
इजरायली खिलाड़ियों के होटल में घुसे आतंकी
खेलों के दौरान 6 सितंबर 1972 को फलस्तीनी आतंकवादी संगठन ब्लैक सितंबर के पांच नकाबपोश आतंकी उस होटल में घुस गए, जहां इजरायली खिलाड़ी रुके हुए थे। आतंकियों ने घुसते ही सबसे पहले इजरायली वेटलिफ्टर जोसेफ रोमानो को गोली मार दी। इसके बाद उन्होंने कोच मोशे वेनबर्गे की हत्या कर दी।
इधर, होटल में अफरातफरी मच गई और इसी बीच आतंकियों ने नौ इजरायली खिलाड़ियों को बंधक बना लिया। इसके बाद आतंकियों ने जर्मनी सरकार से मांग रखी कि इजरायल उनके कुछ नेताओं को रिहा करे, अन्यथा वह खिलाड़ियों को मार देंगे। जर्मनी सरकार उनकी मांगों के आगे झुक गई और उन्हें सुरक्षित काहिरा पहुंचाने की बात कही।
एयरपोर्ट में हुआ खूनी संघर्ष
आतंकी वहां से एयरपोर्ट के लिए निकले और साथ में खिलाड़ियों को भी लेकर गए। इधर जर्मनी ने प्लान बनाया कि वह एयरपोर्ट में ऑपरेशन के माध्यम से आतंकियों को मारकर खिलाड़ियों को बचा लेगा। एयरपोर्ट में शूटरों के गोली चलाते ही एक आतंकी ने हेलीकॉप्टर पर हाथगोला फेंक दिया। इसके बाद तेज धमाका हुआ और कई लोगों की जान चली गई।
आग बबूला इजरायल ने बदला लेने की कसम खाई
इस हमले से आग बबूला इजरायल ने अपने खिलाड़ियों की मौत का बदला लेने की कसम खाई और एक-एक कर ब्लैक सितंबर के आतंकियों को खत्म करने का प्लान बनाया। तत्काली इजरायली प्रधान मंत्री गोल्डा मेयर ने गुप्त रूप से इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद को नरसंहार के लिए जिम्मेदार लोगों का पता लगाने और उन्हें खत्म करने का आदेश दिया।
सालों तक चले इस ऑपरेशन में फलस्तीनी वाएल ज्वाइटर को 1972 में रोम में 12 बार गोली मारी गई, जिसके तुरंत बाद फ्रांस में पीएलओ के प्रतिनिधि महमूर हमशारी की पेरिस में उनके घर पर बम लगाए जाने और एक टेलीफोन कॉल के जरिए विस्फोट किए जाने के बाद हत्या कर दी गई। इजरायल ने कहा कि दोनों लोग म्यूनिख हमले से जुड़े थे।
एक एक कर मारे दुश्मन
1973 में, लेबनान के तट पर स्पीडबोट उतरीं और मोसाद एजेंटों द्वारा सैन्य कमांडो को बेरूत ले जाया गया, जहां उन्होंने ब्लैक सेप्टेंबर के ऑपरेशन लीडर मुहम्मद यूसुफ अल-नज्जर और दो प्रमुख पीएलओ सदस्यों को मार डाला। दो लेबनानी अधिकारी और एक इतालवी नागरिक भी मारे गए। कई वर्षों तक ऑपरेशन चला और कई अन्य लोग मारे गए।
ऑपरेशन थंडरबोल्ट
1976 में एयर फ्रांस के विमान का अपहरण वादी हदाद के निर्देश पर किया गया था। अपहरणकर्ता विमान को लीबिया और इसके बाद युगांडा के एंटेबे हवाई अड्डे लेकर पहुंचे थे। इजरायल ने बंधक अपने नागरिकों को छुड़ाने की खातिर ऑपरेशन थंडरबोल्ट चलाया। यह ऑपरेशन बेहद सफल रहा।
इजरायल ने सभी नागरिकों को सकुशल बचा लिया था। ऑपरेशन का नेतृत्व इजरायल के मौजूदा प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के भाई लेफ्टिनेंट कर्नल योनातन नेतन्याहू ने किया था। ऑपरेशन में योनातन नेतन्याहू को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
फलस्तीन की मुक्ति के लिए लोकप्रिय मोर्चे और जर्मन क्रांतिकारी प्रकोष्ठों के चार आतंकवादियों ने 248 यात्रियों और 12 चालक दल के सदस्यों के साथ तेल अवीव से पेरिस जाने वाली एयर फ्रांस की उड़ान 139 का अपहरण कर लिया। 105 यहूदी और इजरायली यात्रियों को अलग कर दिया गया और उन्हें बंधक बना लिया गया, जो 53 फलस्तीनी और फलस्तीन समर्थक कैदियों की रिहाई की मांग कर रहे थे।
अपहरण 27 जून, 1976 को हुआ था, और 3 और 4 जुलाई की मध्यरात्रि को, इजरायली टीमों ने टर्मिनल पर धावा बोला और 53 मिनट के ऑपरेशन में 105 बंधकों में से 102 को बचा लिया।
पेजर बम ऑपरेशन
पिछले साल इजरायल ने ईरान समर्थित लेबनान स्थित समूह हिजबुल्ला द्वारा इस्तेमाल किए गए हजारों पेजर और वॉकी-टॉकी में धमाका करके दुनिया को हैरान कर दिया था। आखिरकार यह कैसे हुआ था। 17 सितंबर 2024 को एक साथ हजारों पेजर फट गए और जब हिजबुल्ला अभी भी हमले से उबर रहा था, तो अगले दिन वॉकी-टॉकी फट गए।
इस हमले में कम से कम 42 लोग मारे गए और 3,500 से ज्यादा लोग घायल हुए, जिनमें लेबनान में ईरान के राजदूत मोजतबा अमानी भी शामिल थे। ताइवान में पेजर और वॉकी-टॉकी के साथ विस्फोटक लगाए गए थे।
ताइवान कंपनी से लेकर पेजर में फिट किए गए बम
ताइवान की एक फर्म गोल्ड अपोलो ने ऑर्डर दिया था और लेबनान पहुंचने से पहले इजरायली एजेंटों ने पेजर के साथ छेड़छाड़ की थी। गोल्ड अपोलो के संस्थापक ह्सू चिंग-कुआंग ने छेड़छाड़ किए गए पेजर बनाने से इनकार किया और कहा कि बीएसी नामक एक हंगरी की फर्म ने उन्हें बनाया है, जिसे उनकी कंपनी के ब्रांड नाम का उपयोग करने का अधिकार था।
हिजबुल्ला को दी मात
मोसाद ने हिजबुल्ला द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले वॉकी-टॉकी की आपूर्ति श्रृंखला में भी घुसपैठ की, अपनी संलिप्तता को छिपाने के लिए शेल कंपनियों के जाल का इस्तेमाल किया। पूरी योजना में कथित तौर पर एक दशक से ज्यादा का समय लगा।
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