अब ईरान में प्रवेश नहीं कर पाएंगे IAEA के अधिकारी, राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान ने लगाई रोक
ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान ने आईएईए को देश में कामकाज के लिए सहयोग रोकने का आदेश दिया है क्योंकि ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमले रोकने में आईएईए विफल रहा। संसद ने भी इस प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। आईएईए के निरीक्षकों को अब ईरान में प्रवेश और परमाणु संयंत्रों के निरीक्षण की अनुमति नहीं होगी।
एपी, तेहरान। ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) को देश में कामकाज के लिए दिया जा रहा सहयोग रोकने का आदेश दिया है। इससे पहले ईरान की संसद ने इससे संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। ईरान ने यह निर्णय उसके परमाणु प्रतिष्ठानों पर अमेरिकी और इजरायली हमले रोकने में आईएईए के विफल रहने पर लिया है।
अंतरराष्ट्रीय एजेंसी के बोर्ड ने ईरान के यूरेनियम के शोधन स्तर को भी संदिग्ध बताया था, उसी के बाद इजरायल ने 13 जून को ईरान पर हमला किया था। पेजेश्कियान के आदेश में यह नहीं बताया गया है कि आईएईए के ईरान में काम करने पर रोक कब तक लागू रहेगी। इस आदेश के बाद अब आईएईए के निरीक्षकों को ईरान में प्रवेश और परमाणु संयंत्रों के निरीक्षण की अनुमति नहीं होगी।
अमेरिका के साथ वार्ता की उम्मीद
इस बीच ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने कहा है कि उनका देश परमाणु मसले पर अमेरिका के साथ वार्ता की इच्छा रखता है लेकिन यह वार्ता जल्द नहीं हो सकती है। इस बीच इजरायल के विदेश मंत्री गिडियन सार ने यूरोपीय देशों-ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी से 2015 से पहले वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध लागू करवाने का अनुरोध किया है।
2015 में विश्व के जिन प्रमुख देशों ने ईरान के साथ परमाणु समझौता किया था उनमें ये तीन देश भी शामिल थे। इस समझौते के बाद ही ईरान पर लगे संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध हटे थे। 2015 के समझौते के अनुसार ईरान को यूरेनियम का केवल 3.67 प्रतिशत तक ही शोधन करना था जो बिजली बनाने के लिए पर्याप्त होता है। जबकि परमाणु हथियार बनाने के लिए 90 प्रतिशत तक शुद्ध यूरेनियम की जरूरत होती है।
माना जाता है कि ईरान समझौते से इतर परमाणु हथियार बनाने लायक शुद्ध यूरेनियम तैयार करने के करीब पहुंच चुका है। ईरान के ताजा कदम से अब परमाणु अप्रसार संधि को लेकर उसकी जवाबदेही पर भी सवाल उठ रहा है। इस संधि के सदस्य के रूप में ईरान परमाणु हथियार का विकास नहीं कर सकता है और उसके परमाणु प्रतिष्ठानों का आईएईए से सहयोग बना रहना भी अनिवार्य है।
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