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    करेंसी प्रिंटिंग के लिए चीन का रुख कर रहे भारत के पड़ोसी देश, अमेरिका और ब्रिटेन पर पड़ रहा असर

    Updated: Sat, 15 Nov 2025 04:24 PM (IST)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। चीन करेंसी प्रिंटिंग का नया हब बन रहा है। नेपाल समेत कई देश करेंसी प्रिंटिंग के लिए चीन जा रहे हैं। नेपाल के केंद्रीय बैंक ने 1000 रुपये के 43 करोड़ नोटों की प्रिंटिंग का टेंडर चीन की एक कंपनी को दिया। भारत के पड़ोसी देश जैसे नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, बांग्लादेश अपने नोट चीन में छपवाते हैं। इससे अमेरिका और ब्रिटेन के बाजार पर असर पड़ रहा है।

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    शी चिंगपिंग। (फाइल)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। चीन करेंसी प्रिंटिंग का नया हब बनता जा रहा है। कई अन्य देशों की तरह नेपाल भी करेंसी प्रिंटिंग के लिए चीन का रुख कर रहा है। नेपाल के केंद्रीय बैंक ने 1000 रुपए के 43 करोड़ नोटों की प्रिंटिंग के लिए टेंडर जारी किया था और यह टेंडर चीन की एक कंपनी ने जीत लिया।

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    भारत के कई पड़ोसी जैसे- नेपाल, श्रीलंका, थाइलैंड, बांग्लादेश अपने करेंसी नोट चीन में ही छपवाते हैं। पिछले कुछ सालों में चीन एशियाई देशों में करेंसी प्रिंटिंग का सबसे बड़ा हब बनकर उभरा है। जिसका सीधा असर अमेरिका और ब्रिटेन के प्रिंटिंग मार्केट पर पड़ रहा है।

    पाकिस्तान में घरेलू प्रिंटिंग प्रेस में छापता है करेंसी 

    पाकिस्तान की बात करें तो वो अपनी करेंसी नोट ज्यादातर घरेलू प्रिंटिंग प्रेस में ही छपवाता है, लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि पाकिस्तान चीन से भी इसके लिए सहयोग लेता है।

    चीन में दुनिया का सबसे बड़ा करेंसी प्रिंटर

    सीबीपीएमसी दुनिया का सबसे बड़ा करेंसी प्रिंटर है, जो चीन में स्थित है। इसमें 18,000 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं। अमेरिका और ब्रिटेन की तुलना में चीन में करेंसी प्रिंटिंग काफी सस्ती है। एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के पड़ोसी देश नेपाल की तरह ही चीन की कोलोरडांस तकनीक और 30-40% कम लागत के कारण यहां से अपनी करेंसी प्रिंट करा रहे हैं।

    अमेरिका और ब्रिटेन के बाजार पर पड़ रहा असर

    चीन की सस्ती करेंसी प्रिंटिंग का असर अमेरिका और ब्रिटेन के प्रिंटिंग बाजार पर पड़ रहा है। इन बाजारों की पहुंच विकासशील देशों तक है। चीन में करेंसी प्रिंटिंग की कीमतें अमेरिका और ब्रिटेन के मुकाबले लगभग आधी है और गुणवत्ता समान है। ऐसे में विकासशील देश पश्चिमी कंपनियों से दूरी बना रहे हैं और चीन की ओर रुख कर रहे हैं।

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