99 साल की लीज पर चीन के हवाले किया गया था हांगकांग, जानें विवाद की पूरी कहानी...
हांगकांग का विवाद काफी पुराना है। द्वीप पर 1842 से ब्रिटेन का नियंत्रण रहा। ब्रिटिश शासन के बाद हांगकांग को 99 साल की लीज पर चीन के हवाले कर दिया गया था।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। हांगकांग में हिंसक प्रदर्शनों और शांति का दौर खत्म होता नहीं दिख रहा है। विवादित प्रत्यर्पण बिल विरोध से शुरू हुए इन प्रदर्शनों को दो महीने से ज्यादा का वक्त हो का है। अब लोग लोकतंत्र की मांग कर रहे हैं। दो दिन से प्रदर्शनकारियों हांगकांग एयरपोर्ट को अपने कब्जे में ले रखा है। उधर चीन की सरकार प्रदर्शनकारियों की निंदा की है और यह भी कहा है कि वह चुप नहीं ठेगा। हालांकि, यह सब ऐसे ही नहीं हो रहा है। इसमें कई महत्वपूर्ण प्रसंग हैं, जो दशकों पुराने हैं।
99 साल की लीज पर किया गया था चीन के हवाले
दरअसल, हांगकांग अन्य चीनी शहरों से काफी अलग है। 150 साल के ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन के बाद हांगकांग को 99 साल की लीज पर चीन को सौंप दिया गया। हांगकांग द्वीप पर 1842 से ब्रिटेन का नियंत्रण रहा। जबकि द्वितीय विश्व युद्ध में जापान का इस पर अपना नियंत्रण था। यह एक व्यस्त व्यापारिक बंदरगाह बन गया और 1950 में विनिर्माण का केंद्र बनने के बाद इसकी अर्थव्यवस्था में बड़ा उछाल आया। चीन में अस्थिरता, गरीबी या उत्पीड़न से भाग रहे लोग इस क्षेत्र की ओर रुख करने लगे।
1984 में हुआ था सौदा
पिछली सदी के आठवें दशक की शुरुआत में जैसे-जैसे 99 साल की लीज की समयसीमा पास आने लगी ब्रिटेन और चीन ने हांगकांग के भविष्य पर बातचीत शुरू कर दी। चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने तर्क दिया कि हांगकांग को चीनी शासन को वापस कर दिया जाना चाहिए। दोनों पक्षों ने 1984 में एक सौदा किया कि एक देश, दो प्रणाली के सिद्धांत के तहत हांगकांग को 1997 में चीन को सौंप दिया जाएगा। इसका मतलब यह था कि चीन का हिस्सा होने के बाद भी हांगकांग 50 वर्षों तक विदेशी और रक्षा मामलों को छोड़कर स्वायत्तता का आनंद लेगा।
विवाद की जड़
1997 में जब हांगकांग को चीन के हवाले किया गया था तब बीजिंग ने एक देश-दो व्यवस्था की अवधारणा के तहत कम से कम 2047 तक लोगों की स्वतंत्रता और अपनी कानूनी व्यवस्था को बनाए रखने की गारंटी दी थी। लेकिन 2014 में हांगकांग में 79 दिनों तक चले अंब्रेला मूवमेंट के बाद लोकतंत्र का समर्थन करने वालों पर चीनी सरकार कार्रवाई करने लगी। विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोगों को जेल में डाल दिया गया। आजादी का समर्थन करने वाली एक पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
बीजिंग का कब्जा
हांगकांग का अपना कानून और सीमाएं हैं। साथ ही खुद की विधानसभा भी है। लेकिन हांगकांग में नेता, मुख्य कार्यकारी अधिकारी को 1,200 सदस्यीय चुनाव समिति चुनती है। समिति में ज्यादातर बीजिंग समर्थक सदस्य होते हैं। क्षेत्र के विधायी निकाय के सभी 70 सदस्य, विधान परिषद, सीधे हांगकांग के मतदाताओं द्वारा नहीं चुने जाते हैं। बिना चुनाव चुनी गईं सीटों पर बीजिंग समर्थक सांसदों का कब्जा रहता है।
चीनी पहचान से नफरत
हांगकांग में ज्यादातर लोग चीनी नस्ल के हैं। चीन का हिस्सा होने के बावजूद हांगकांग के अधिकांश लोग चीनी के रूप में पहचान नहीं रखना चाहते हैं। खासकर युवा वर्ग। केवल 11 फीसद खुद को चीनी कहते हैं। जबकि 71 फीसद लोग कहते हैं कि वे चीनी नागरिक होने पर गर्व महसूस नहीं करते हैं। यही कारण है कि हांगकांग में हर रोज आजादी के नारे बुलंद हो रहे हैं और प्रदर्शनकारियों ने चीन समर्थित प्रशासन की नाक में दम कर रखा है।