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    गुरुग्राम के कलाकार का कमाल, वीजा दिक्कतें और डेडलाइन के बीच कैसे तैयार की कनाडा में 51 फीट ऊंची भगवान राम की प्रतिमा?

    Updated: Wed, 22 Oct 2025 07:04 PM (IST)

    कनाडा के मिसिसॉगा में गुरुग्राम के कलाकार नरेश कुमावत द्वारा बनाई गई 51 फीट ऊंची भगवान राम की प्रतिमा स्थापित की गई। वीजा समस्याओं के बावजूद, उन्होंने मेक्सिको से मजदूरों को बुलाकर इसे पूरा किया। नरेश ने पहले ब्रैम्पटन में शिव की मूर्ति भी स्थापित की थी। उनका सफर प्रेरणादायक है, और अब वे वाशिंगटन में एक नई 100 फीट ऊंची मूर्ति बनाने की योजना बना रहे हैं।

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    गुरुग्राम के कलाकार का कमाल (फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कनाडा के मिसिसॉगा शहर में जब 51 फीट ऊंची भगवान राम की प्रतिमा ने आसमान को छुआ, तो वह सिर्फ भक्ति या कला का प्रतीक नहीं थी, बल्कि भारतीय संस्कृति की पहचान भी बन गई। इस प्रतिमा को गुरुग्राम के कलाकार नरेश कुमार कुमावत ने मनसर के मातूराम आर्ट सेंटर में बनाया। फाइबरग्लास और स्टील से बनी यह मूर्ति उत्तरी अमेरिका में भगवान राम को समर्पित सबसे ऊंची प्रतिमा है।

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    नरेश ने बताया कि काम के दौरान कई मुश्किलें आईं। उन्होंने कहा, हमारे कामगारों को वीजा नहीं मिला। सारा सामान भेज दिया था, तो फिर हमें मेक्सिको से मजदूर बुलाने पड़े। भगवान की कृपा से सब काम पूरा हो गया।

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    मूर्ति अनावरण के मौके पर पहुंची कई हस्तियां

    इस मूर्ति के अनावरण पर कनाडा की कई हस्तियां मौजूद थीं, जिसमें महिला एवं लैंगिक समानता मंत्री रेचर वाल्डेज, ट्रेजरी बोर्ड के अध्यक्ष शफकत अली और अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री मनिंदर सिद्धू सहित कई प्रमुख नेता।

    ब्रैम्पटन में 54 फीट ऊंचे शिव की मूर्ति से मिला आत्मविश्वास

    नरेश का यह पहला विदेशी प्रोजेक्ट नहीं था। कुछ महीने पहले उन्होंने ब्रैम्पटन शहर में 54 फीट ऊंची भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित की थी। यह मूर्ति भवानी शंकर मंदिर द्वारा ऑर्डर की गई थी, जिसे पंडित हरदत्त शर्मा ने कमीशन किया, जिनके परिवार की जड़ें भारत से गयाना होते हुए टोरंटो तक फैली हैं।

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    लेकिन यह प्रोजेक्ट भी आसान नहीं था। भारत-कनाडा के रिश्तों में तनाव के कारण उनके मजदूरों को वीजा नहीं मिला। नरेश ने बताया, "मुझे खुद क्रेन और फोर्कलिफ्ट चलानी पड़ी। लोकल वॉलंटियर्स की मदद से हमने मूर्ति खड़ी की।

    मजदूर से बने विश्व प्रसिद्ध शिल्पकार

    नरेश का सफर बेहद प्रेरणादायक है। वे तीसरी पीढ़ी के कलाकार हैं, पर शुरुआत में डॉक्टर बनने का सपना देखा था। उन्होंने बताया, "मैं परीक्षा में फेल हो गया फिर पापा के स्टूडियो चला गया और मजदूर की तरह काम करते-करते शिल्पकला सीखने लगा।

    बाद में उन्होंने गुजरात के फाइन आर्ट्स कॉलेज, बड़ौदा से कला की पढ़ाई की। वहीं सुरसागर झील के बीच बनी भगवान शिव की मूर्ति ने उनके अंदर कला के प्रति जुनून जगा दिया। धीरे-धीरे उन्होंने आधुनिक तकनीकों, जैसे 3D प्रिंटिंग, CNC मशीन और डिजिटल डिजाइनिंग को अपनाया और खुद को 'नए युग का मूर्तिकार' कहा।

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    आज नरेश के काम 80 से ज्यादा देशों में फैले हैं, जिनमें यूरोप, लैटिन अमेरिका, चिली, कोस्टा रिका, अमेरिका और कनाडा शामिल हैं। कनाडा में उन्होंने अब तक दर्जनभर विशाल मूर्तियां बनाईं, जिनमें हनुमानजी की प्रतिमा और राम-शिव की मूर्तियां प्रमुख हैं।

    प्रधानमंत्री मोदी और सतीश कौशिक के लिए भी बनाई मूर्तियां

    नरेश ने केवल देव प्रतिमाएं ही नहीं, बल्कि कुछ भावनात्मक कलाकृतियां भी बनाईं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीराबेन की प्रतिमा बनाई, जिसे पीएम ने अपने कमरे में रखा। बाद में नरेश ने पीएम मोदी के पिता की मूर्ति भी बनाई।

    इसके अलावा उन्होंने अपने पसंदीदा अभिनेता सतीश कौशिक की मूर्ति भी बनाई, जिसे अनुपम खेर ने अपने ऑफिस में रखा है। उन्होंने कहा, "यह मेरे लिए सम्मान की बात है"

    परिवार की परंपरा

    नरेश के दादा कभी राजघराने के लिए कारीगरी करते थे और उनके पिता ने 1989 में बिरला परिवार के लिए 80 फीट ऊंची शिव मूर्ति बनाई थी। नरेश की बेटी रुद्राक्षी अब अमेरिका में पढ़ रही हैं और जल्द ही फाइन आर्ट्स कॉलेज में दाखिला लेंगी। वह सिरेमिक आर्ट में रुचि रखती हैं।


     
     
     
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    नरेश का गुरुग्राम स्थित स्टूडियो आज दुनिया की सबसे बड़ी फाउंड्री में से एक है, जहां एक दिन में 20 टन तक कास्टिंग की जा सकती है। नरेश अब फाइबरग्लास, ब्रॉन्ज, सिरेमिक और पोर्सिलेन जैसी आधुनिक सामग्रियों के साथ काम करते हैं। उनका मानना है कि भारतीय कला को आधुनिक रूप में दुनिया तक पहुंचाना ही असली साधना है।

    क्या है अगला टारगेट

    उनकी बनाई राजस्थान के नाथद्वारा की 369 फीट ऊंची ‘स्टैच्यू ऑफ बिलीफ’ दुनिया की सबसे ऊंची बैठे हुए शिव प्रतिमा है। यह प्रोजेक्ट उनके करियर का अहम मोड़ साबित हुआ। अब वे एक नए प्रोजेक्ट के लिए वॉशिंगटन जा रहे हैं, जहां 100 फीट ऊंची मूर्ति की योजना है। वे मुस्कुराते हुए कहते हैं, “हर नई प्रतिमा मेरे लिए एक नई यात्रा है।”

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