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ताइवान और चीन के बीच रिश्‍तों में फिर सुलगी चिंगारी, इस बार वजह बना अमेरिका

ताइवान को लेकर डोनाल्ड ट्रंप ने जिस बिल को साइन किया है उसको लेकर चीन का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया है। इसने इन दोनों देशों के बीच सुलग रही चिंगारी को भड़काने का काम किया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sat, 17 Mar 2018 05:25 PM (IST)Updated: Sun, 18 Mar 2018 02:09 PM (IST)
ताइवान और चीन के बीच रिश्‍तों में फिर सुलगी चिंगारी, इस बार वजह बना अमेरिका
ताइवान और चीन के बीच रिश्‍तों में फिर सुलगी चिंगारी, इस बार वजह बना अमेरिका

नई दिल्‍ली [स्‍पेशल डेस्‍क]। अमेरिका और चीन के बीच संबंधों को हर कोई अच्‍छी तरह से जानता है। इसके बाद भी दोनों देश एक दूसरे के बीच पैदा हुए तनाव को और बढ़ाने का काम लगातार करते रहते हैं। ऐसा ही कुछ इस बार अमेरिका ने किया है, जिसके बाद चीन का गुस्‍सा बढ़ गया है और उसने इस पर कड़ा ऐतराज जताया है। इन दोनों देशों के बीच इस बार विवाद की वजह अमेरिकी राष्‍ट्रपति द्वारा साइन किया गया ‘द ताइवान ट्रैवल एक्ट’ Taiwan Travel Act है। चीन ने इस पर कड़ी आ‍पत्ति जताते हुए इसको वन चाइना पॉलिसी का उल्‍लंघन बताया है।

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अधिकारियों से मुलाकात की मिल गई इजाजत

दरअसल, यह बिल अमेरिकी अधिकारियों को ताइवान में अपने समकक्ष अधिकारियों से मुलाकात करने के लिए वहां जाने की इजाजत देता है। वहीं चीन का कहना है कि अमेरिका वन चाइना’ पॉलिसी का पालन करे तथा ताइवान के साथ आधिकारिक आवाजाही को बंद करें। आपको यहां पर ये भी बता दें कि चीन और ताइवान के बीच विवाद काफी वर्षों से है। वहीं अमेरिका और चीन के बीच दक्षिण चीन सागर समेत कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर ट्रंप को खासा ऐतराज है। यहां तक कि ट्रंप वन चाइना पॉलिसी पर भी खुलकर विरोध कर चुके हैं।

प्रस्‍ताव पारित करने की वजह

आपको बता दें कि अमेरिका उत्तर कोरिया को लेकर भी चीन पर कई बार आरोप लगा चुका है। वहीं ट्रेवल एक्‍ट पर साइन करने के बाद अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ने के पूरे आसार हैं। दरअसल, अमेरिका और ताइवान के बीच सभी स्तरों पर यात्रा को बढ़ावा देने के लिए अमेरिकी सीनेट ने ताइवान यात्रा कानून पारित किया है। इस विधेयक में कहा गया है कि अमेरिका की यह नीति होनी चाहिए कि ताइवान के उच्च स्तर के अधिकारी अमेरिका आएं, अमेरिकी अधिकारियों से मिलें और देश में कारोबार करें। विधेयक में यह कहा गया कि अमेरिका आने वाले, अमेरिकी अधिकारियों से मुलाकात करने वाले और देश में कारोबार के सिलसिले में आने वाले उच्च स्तरीय ताइवानी अधिकारियों के लिये अमेरिकी नीति होनी चाहिए, लेकिन यही सब चीन के गले नहीं उतर रहा है।

ताइवान से क्‍यों चिढ़ा है चीन

अमेरिका और ताइवान के बीच मजबूत होते संबंधों से नाराज होते चीन का सच जानने के लिए हमें इतिहास के कुछ पन्‍ने पलटने जरूरी हैं। आपको बता दें कि अमेरिका ने ‘एक चीन’ के तहत बीजिंग में कम्यूनिस्ट शासकों को मान्यता देते हुए 1979 में ताइवान से औपचारिक राजनयिक संबंध खत्म कर दिए थे। वहीं चीन ने ताइवान को हमेशा से ऐसे प्रांत के रूप में देखा है जो उससे अलग जरूर हो गया है लेकिन इसके बाद भी चीन मानता रहा है कि भविष्य में ताइवान चीन का हिस्सा बन जाएगा। इससे उलट ताइवान की एक बड़ी आबादी अपने आपको एक अलग देश के रूप में देखना चाहती है। यही बात चीन और ताइवान के बीच विवाद का विषय बन गई है।

ताइवान का ये है इतिहास

वर्ष 1642 से 1661 तक ताइवान नीदरलैंड्स की कॉलोनी था। उसके बाद चीन का चिंग राजवंश वर्ष 1683 से 1895 तक ताइवान पर शासन करता रहा। साल 1895 में जापान के हाथों चीन की हार के बाद ताइवान, जापान के हिस्से में आ गया। दूसरे विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद इसको चीन के चैंग को सौंप दिया गया। लेकिन लेकिन कुछ सालों बाद चैंग काई शेक की सेनाओं को कम्युनिस्ट सेना से हार का सामना करना पड़ा। इससे बचने के लिए चैंग चीन से भागकर ताइवान चले आए। उन्‍होंने यहां पर करीब 15 वर्षों तक राज किया।

ताइवान को स्‍वायत्‍ता देने की बात

कई साल तक चीन और ताइवान के बीच बेहद कड़वे संबंध होने के बाद साल 1980 के दशक में दोनों के रिश्ते बेहतर होने शुरू हुए। तब चीन ने 'वन कंट्री टू सिस्टम' के तहत ताइवान के सामने प्रस्ताव रखा कि अगर वो अपने आपको चीन का हिस्सा मान लेता है तो उसे स्वायत्ता प्रदान कर दी जाएगी। लेकिन ताइवान ने यह प्रस्‍ताव ठुकरा दिया। इसके बाद साल 2000 में चेन श्वाय बियान ताइवान के राष्ट्रपति चुने गए जिन्होंने खुलेआम ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन किया। यहां से चीन और ताइवान के बीच संबंधों में गिरावट आई।

संबंधों में उतार-चढ़ाव का दौर

आपको यहां पर ये भी बता दें कि दूसरे विश्व युद्ध से साल 1979 तक दोनों देशों के संबंध बेहद घनिष्ठ रहे। लेकिन वर्ष 1979 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने चीन से मजबूत संबंधों के चलते ताइवान से अपने राजनयिक संबंध तोड़ लिए थे। हालांकि तब अमेरिकी कांग्रेस ने इसके जवाब में 'ताइवान रिलेशन एक्ट' पास किया था। इसके तहत कहा गया था कि अमेरिका ताइवान को सैन्य हथियार सप्लाई करेगा और अगर चीन ताइवान पर किसी भी तरह का हमला करता है तो अमेरिकी उसे गंभीरता से लेगा। इसके बाद 1996 में भी चीन और ताइवान के बीच संबंधों में तनाव देखा गया था। असल में दोनों देशों के बीच मुख्य मुद्दा यह है कि ताइवान को चीन अपना हिस्सा मानता है लेकिन ताईवान चुपचाप औपचारिक रुप से स्वतंत्र होने की दिशा में बढ़ता जा रहा है। हालांकि 2010 में इन दोनों देशों के बीच व्‍यापार बढ़ाने को लेकर बड़ा समझौता जरूर हुआ था लेकिन उसका ताइवान में विरोध हुआ था।

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