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    बैक्टीरिया की मदद से बनाई कम कैलोरी वाली चीनी, डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए फायदेमंद

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Tue, 26 Nov 2019 08:57 AM (IST)

    टैगाटोज को अमेरिका के खाद्य नियामक एफडीए से मंजूरी मिल चुकी है। कैलोरी कम होने के अलावा सामान्य चीनी (सुक्रोज) की तुलना में टैगाटोज में और भी कई खूबियां हैं।

    बैक्टीरिया की मदद से बनाई कम कैलोरी वाली चीनी, डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए फायदेमंद

    वाशिंगटन, प्रेट्र। वैज्ञानिकों ने बैक्टीरिया की मदद से फलों एवं दुग्ध उत्पादों से ऐसी चीनी बनाई है, जिसमें सामान्य चीनी की तुलना में मात्र 38 फीसद कैलोरी होती है। इस चीनी को टैगाटोज कहा जाता है। अमेरिका की टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि अब तक इस चीनी से किसी तरह का दुष्प्रभाव सामने नहीं आया है। टैगाटोज को अमेरिका के खाद्य नियामक एफडीए से मंजूरी मिल चुकी है। कैलोरी कम होने के अलावा सामान्य चीनी (सुक्रोज) की तुलना में टैगाटोज में और भी कई खूबियां हैं।

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    इस चीनी के इस्तेमाल से दांतों में कैविटी की आशंका कम 

    वैज्ञानिकों का कहना है कि यह चीनी डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए भी फायदेमंद हो सकती है। साथ ही सामान्य चीनी से इतर इस चीनी के इस्तेमाल से दांतों में कैविटी की आशंका भी नहीं रहती है। आमतौर पर टैगाटोज बनाने की प्रक्रिया काफी जटिल होती है। सामान्य चीनी की तुलना में इसका उत्पादन भी बमुश्किल 30 फीसद तक रह पाता है।

    अब टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर निखिल नायर और उनके सहयोगी जोसेफ बोबर ने एक बैक्टीरिया की मदद से इस चीनी को बनाने का नया तरीका ईजाद किया है। इस प्रक्रिया में बैक्टीरिया सूक्ष्म बायोरिएक्टर की तरह काम करता है। इससे सामान्य चीनी की तुलना में 85 फीसद तक टैगाटोज बनाना संभव है।

    डायबिटीज के रोगी क्या करें

    सुबह जल्दी उठना चाहिए।

    व्यायाम के लिए समय निकलना चाहिए।

    सुस्त जीवनशैली के बजाए सक्रिय जीवन शैली अपनाना चाहिए।

    साइक्लिंग, जिमिंग, स्विमिंग जो भी पसंद है उसे 30-40 मिनट तक ज़रूर करने की आदत डालें।

    वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी यह प्रक्रिया प्रयोगशाला तक ही सीमित है, लेकिन यदि इसे वाणिज्यिक रूप से अपनाने में सफलता मिली तो यह कई मामलोंमें फायदेमंद हो सकता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि गैलेक्टोज से टैगाटोज बनाने के लिए जिस एंजाइम का इस्तेमाल होता है, उसके जल्द विघटित हो जाने की वजह से केवल 30 फीसद उत्पादन हो पाता था। अब नया बैक्टीरिया इस एंजाइम को विघटित होने से बचाएगा।

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