ये हे वो शख्स जिसके नाम पर रखा गया पार्कर सोलर प्रोब, सबसे लंबा सफर पर निकला
जिस वक्त अमेरिकी गहरी नींद में थे उसी बीच पार्कर सोलर प्रोब सूर्य की अपनी लंबी यात्रा पर निकल पड़ा। इस मिशन का नाम एक वैज्ञानिक के नाम पर रखा गया है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अमेरिका के स्थानीय समयानुसार रात करीब 3:31 बजे नासा का पार्कर सोलर प्रोब इतिहास बनाने की राह पर निकल गया। उस वक्त अमेरिका के लोग गहरी नींद में थे जब नासा का यह ऐतिहासिक यान अपने सफर पर निकला। नासा के लिए यह काफी अहम मिशन है। फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से एलियांस डेल्टा-4 रॉकेट के जरिये इसे इस ऐतिहासिक सफर भेजा गया है। यह यान नासा के सबसे भारी यान में से एक है। स्थानीय समयानुसार सुबह करीब 5:30 बजे इसमें लगे सोलर पैनल खोल दिए गए थे। यह सूरज की रोशनी से ऊर्जा लेकर इसको आगे बढ़ाने में मदद करेंगे। पार्कर सोलर प्रोब की यान की ताकत का अंदाजा इस बात से भी आंका जा सकता है कि मार्स मिशन की ओर निकले यान की तुलना में यह पचास गुणा अधिक एनर्जी जनरेट करता है। इसका वजन कर करीब 15 पाउंड है और आकार की बात करें तो यह एक कार की बराबर है।
आठ वर्षों की मेहनत का नतीजा है ये मिशन
ऐसा पहली बार हो रहा है कि कोई भी यान सूरज के इतने करीब पहुंचने के मिशन पर निकला है। इसे यान के सबसे ऊपरी हिस्से पर लगाया है, जो करीब 62.7 फीट लंबा है। इस प्रोजेक्ट के मिशन साइंटिस्ट एडम सजाबो के मुताबिक इस मिशन के लिए सैकड़ों इंजीनियरों और वैज्ञानिकों ने आठ साल तक काम किया है। यह यान करीब 430,000 मील प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरेगा। इस स्पीड से यदि फिलाडेलफिया से वाशिंगटन डीसी जाया जाए तो महज एक सैकेंड का समय लगेगा। यह यान नासा के इतिहास का सबसे तेज गति से चलने वाला यान है।
मिशन की खासियत
इस मिशन की एक बड़ी खासियत ये भी है कि सूरज के नजदीक जाते हुए पार्कर सोलर प्रोब नजदीकी ग्रह वीनस की ग्रेविटी का इस्तेमाल करेगा। पूरे मिशन के दौरान यह यान करीब सात बार वीनस से होकर गुजरेगा। मिशन से जुड़े वैज्ञानिक सजाबो का कहना है कि इस यान और इसमें लगी मशीनों को सूर्य की तपन से बचाने के लिए फिलहाल कोई तकनीक नहीं है। इसके बावजूद यान पर इससे बचाव के उपाय के तहत शील्ड लगाई गई है। यह शील्ड यान के ऊपरी हिस्से पर लगाई गई है। इसकी वजह से यान के अंदर की मशीन काफी हद तक ठंडी रह सकेगी।
यान पर लगी शील्ड
यह शील्ड करीब 4.5 इंच मोटी है और यह कार्बन कंपोजिट फोम से बनी है। इस शील्ड पर करीब 2500 डिग्री फारेनहाइट का तापमान होगा जबकि यान के अंदर यह तापमान करीब 85 डिग्री फारेनहाइट होगा। नासा ने इस मिशन का नाम डॉक्टर यूगेन पार्कर के नाम पर रखा है। वह पहले ऐसे सोलर फिजीसिस्ट थे जिन्होंने 1958 में सूर्य पर चलती तेज और गर्म हवाओं के बारे में बात की थी। सूर्य के कोरोना से गुजरते हुए पार्कर को भी इसका सामना करना पड़ेगा। कोरोना का अपना ही तापमान लाखों डिग्री है।
सबसे करीब पहला मिशन
नासा का यह पहला ऐसा मिशन है जिसे सूर्य के इतना करीब भेजा गया है। यहां का तापमान और रेडियेशन हमारी सोच से कहीं अधिक है। अकसर पूर्ण सूर्यगहण के दौरान जिस तरह की रोशनी चांद के चारों तरफ दिखाई देती है वही दरअसल कोरोना है। नासा को इस मिशन से काफी उम्मीदें हैं। इस मिशन की सफलता कई तरह के सवालों का जवाब दे सकेगी। इसके अलावा सूर्य को करीब से समझने मे भी मदद मिलेगी।
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